30 June 2008

सात बातें

  • एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है।- अज्ञात

 

  • किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं।- अज्ञात

 

  • ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा।- विनोबा

 

  • विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।- रवींद्रनाथ ठाकुर

 

  • कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।- प्रेमचंद

 

  • अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते।- अज्ञात

 

  • जिस प्रकार थोड़ी-सी वायु से आग भड़क उठती है, उसी प्रकार थोड़ी-सी मेहनत से किस्मत चमक उठती है।- अज्ञात

27 June 2008

उड़ते पंक्षी

उड़ते पंक्षी इस जीवन में
दुनियां की सैर करते हैं।
ध्यान लगाकर उड़ते जाते,
अपनी मंजिल पर पहुंचा करते है॥

धरा अभूषण देख-देखकर
वहीं रैन बसेरा करतें है।
निश्छल भाव से उड़ते जाते,
नभ से बाते करतें है॥

सूर्य की तपती किरणों से
केवल ऊर्जा पाते जाते है।
जहां रैन बसेरा करना हो,
सुख-चैन की सांसे लेते जाते है॥

प्रेरणा देते पक्षी मानव को
तुम कर्म सदा करते जाओ।
पवित्र भाव के वशीभूत हो,
मानव की सेवा करते जाओ॥

प्रेम से मिलकर तुम रहना
कर्तव्य खूब निभाते जाना।
परस्पर बैर भाव मिटाकर,
श्रध्दा से शीश झुकाते जाना॥

पक्षी गगन में उड़ते जाते
स्वछन्द विचरण करते हैं।
कर्म को उद्देश्य मानकर,
हिमगिरी भी पार करते है॥

प्रेरणा मानव तुम भी लो
आलस्य को दूर भगाना है।
निष्ठा भाव मन में जगाकर,
कर्तव्य निष्ठ बन जाना है॥

उड़ते पंक्षी इस जीवन में
नई अनुभूति सदा करतें है।
आशा की किरणें पाकर ही,
निज कर्म सदा करतें है॥

26 June 2008

इश्क

वफाओं को हमने चाहा,
वफाओं का साथ मिला।
इश्‍क की गलियो में भटकते रहे,
घर आये तो बाबू जी का लात मिला।।

 

घर लातों को तो हम झेल गये,
क्‍योकि यें अन्‍दर की बात थी।
पर इश्‍क का इन्‍ताहँ तब हुई जब,
गर्डेन में उसके भाई का हाथ पड़ा।।

 

इश्‍क का भूत हमनें देखा है,
जब हमारे बाबू जी ने उतारा था।
फिछली द‍ीवाली में पर,
जूतों चप्‍पलों से हमारा भूत उतारा था।।

 

इश्‍क हमारी फितरत में है,
इश्‍क हमारी नस-नस में है।
बाबू की की ध‍मकियों से हम नही डरेगें,
हम तो खुल्‍लम खुल्‍ला प्‍यार करेगें।।

 

अब आये चाहे उसका भाई,
चाहे साथ लेकर चला आये भौजाई।
इश्‍क किया है कोई चोरी नही की,
तुम्हारे बाप के सिवा किसी से सीना जोरी नही की।।

 

कई अरसें से कोई कविता नही लिखी, मित्र शिव ने कहा कि कुछ लिख डालों कुछ भाव नही मिल नही रहे थे किन्‍तु एक शब्द ने पूरी रचना तैयार कर दी, मै इसे कविता नही मानता हूँ, क्‍योकि यह कविता कोटि में नही है, आप चाहे जो कुछ भी इसे नाम दे सकतें है, यह बस किसी के मन को रखने के लिये लिखा गया।

23 June 2008

जब याद आयी घर की

जब याद आयी घर की,
घुट घुट कर रोने लगे।
गिरा कर कुछ बूँदे आसूँओं की,
हम चेहरा भिगोने लगे।
जब नींद टूटी सारी दुनियाँ की,
सिमट कर चादर में हम सोने लगे।
जब याद................
करके टुकड़े हजार दिल के,
बीती यादों को पिरोने लगे।
जब याद................
न छूटे दाग दिल के बारिस की बूँदों से,
लेकर आँसूओं का सहारा,हर दाग दिल का धोने लगे।
जब याद................
बिजलियों का खौफ़,
अब तो रहा ही नही।हो के तन्‍हा,
जिन्‍दगी हम ढ़ोने लगे।
जब याद................
ले लिया ग़म को,
अपने आगोश में,
जब कभी दूर अपनो से होने लगे।
जब याद................
खुल गई सारी जंजीरे,
बदन से हमारे,
जब धुये की तरह,ह
वा में खोने लगे।
जब याद................
Dated – 27 मार्च 2005 by प्रलयनाथ जालिम

19 June 2008

बदस्‍तूर एक छोटी सी

बदस्‍तूर एक छोटी सी,

चिन्‍गारी को हवा दिया।

जो आग लगी सारे शहर में,

पानी से बुझा दिया।।

वो चिल्‍लाते रहे हमारी गली,

पर हमारी आवाज को।

सबने गुस्‍से में दबा दिया।।

बदस्‍तूर ...............

घुट-घुट कर जीना हमें भी आता है,

गर्मियों में पसीना हमें भी आता है।

पर क्‍या करें जब जब दी सलाह हमने,

अपने ही लोगों ने हर मर्तबा ठुकरा दिया।।

बदस्‍तूर ...............

हम शराब को पानी समझे,

हकीकत को कहानी समझे।

जो कोई परिन्‍दा लाया पैगाम,

उसको मुन्‍डेर से हमने ही उड़ा दिया।।

दिन भर जगाया महताब,

रात में सुला दिया।

बदस्‍तूर ...............

चिल्‍लाने से तकदीर नही बदलती,

हाथ कटने से तहरीर नही बदलती।

हमें याद थे सारे किस्से अतीत के,

एक एक करके सबको भुला दिया।।

हमने हर हक़ीकत के जाम में,

ज़हर मिला दिया।।

बदस्‍तूर ...............


Dated – 1 अप्रेल 2005 by प्रलयनाथ जालिम

17 June 2008

अर्पित हूँ अर्पिता को

अर्पित हूँ अर्पिता को,

अर्चित हूँ अर्चिता का।

मंद हूँ मंदिता से,

नंद हूँ नंदिता का।।

स्‍नेह है स्‍नेहा से,

नेह हूँ नेहा का।

पूजा का पुजारी हूँ,

हुस्न का भिखरी हूँ।।

गर्व हूँ गर्विता का,

हर्ष हूँ हर्षिता का।

ऋतु का दीवाना हूँ,

नरगिस से बेगाना हूँ।।

राजा हूँ रानी का,

शिव हूँ शिवानी का।

अनुपम हूँ अनुपमा का।।

राम मै हूँ रमा का,

विद्वान हूँ विद्या से।

नित्‍य ही नित्या से,

प्रेम करता हूँ ख्‍वाब में।

गले लगा कर सबकी यादें,

जहर मिला लूँ शराब में।।


16 June 2008

क्षणिकाऍं - 4

(1)

कभी मयखाने आकर देखों दिल के गम खाली बोतलों में भरे जाते है।

रगों में ताजा पानी और लहू नलो में भरे जाते है।।

(2)

कोई पीकर बेहोश था, कोई बेहोशी में पी रहा था।

सारी महफिल में अकेला मैं मरकर जी रहा था।।

(3)

वे अपने हुस्न से अदाओं को परदा उठाये तो जरा।

प्‍यार की बारिश से दिल की आग बुझाये तो जरा।।

“बाबूजी तुम हमें छोड़ कर…..!”

“बाबूजी तुम हमें छोड़ कर…..!”

मेरे सपने साथ ले गए
दुख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
*********
काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.
*********
अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रोज़ रात कटती है भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.
*********
क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे
*********
सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब हम दोनों माँ-बेटी के
संग केवल संताप रहे !
*********
दुनिया दारी यही पिताश्री
सबके मतलब के अभिवादन
बाद आपके हम माँ-बेटी
कर लेगें छोटा अब आँगन !

• गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"

15 June 2008

छडिकाऍं -3

(1)

सारे शहर में उसकी हैसियत का,

कोई शख्स नही था।

जो मुद्दत से लड़ रहा था मुकद्दर से,

उनकी आँखो में अक़्श नही था।।

(2)

सारा दिन खामोश थे बेहोश थे,

आधी राम को होश आया।

जब लहू बन चला पानी,

जब हमको जोश आया।।

(3)

तेरी भी जिन्‍दगी में, कयामत का आलम आए।

तू भी तड़पे खूब, बेवफा भी मातम मनाए।।

दुरूपयोग

दुरूपयोग शीर्षक से अमित जी की पोस्ट छोटी कितु असर दार है यदि इस बात को कोई समझे तो देश हित में ही होगा !!

14 June 2008

छडिकाऍं - 2

(1)

किन लफ्ज़ो में बताए, किस तरह जी रहे है।

न ज़हर मिला न जाम, अब तो आँसू पी रहे है।।

(2)

जब चूक जाते है निशाने से थोड़ी नज़रसानी होती है।

गलतियाँ जो हम करते है उनको परेशानी होती है।।

(3)

नज़रों से बोलने की कोशिश मै तमाम करता हूँ,

हर सुबह उठता हूँ खुद को दफ़न हर शाम करता हूँ।

लोगों की नज़रों में चुभने लगा हूँ,

जब से शुरू तेरे नाम से, हर काम को करता हूँ।।

13 June 2008

छडि़काएँ - 1

(1)

एक जिन्‍दा लाश सी,अपनी हालत हो गई है,।

घुट घुट कर जीना, अब तो आदत हो गई है।।

(2)

खामोश जिन्‍दगी की एक चीखती कहानी,

गुजरे हुए अतीत की एक भीगती निशानी।

कुछ गुलाबी फूल कुछ हरी पत्तियाँ,

एक हसीना की प्‍यारी फबतियाँ।।

(3)

वो भी जिन्दगी थी, ये भी जिन्दगी है।

हर चीज़ पाक थी वहॉं, यहाँ सिर्फ गन्‍दगी है।।

12 June 2008

हमें तारीफ तो करनी होगी युग्म की

भाई हिंद युग्म & कम्पनी वालो क्या ज़बरदस्त की पांचवीं किश्त जारी करनी पड़ीजिसके प्रतिभागी ये सब=> आकांक्षा यादव सी आर.राजश्री निखिल आनंद गिरि गीतिका भारद्वाज मनीषा वर्मा धर्म प्रकाश जैन मीना जैन अर्पित सिंह परिहार प्रमेन्द्र प्रताप सिंह श्रीमती पुष्पा राणा उत्पल कान्त मिश्रा विश्व दीपक 'तन्हा' कुमार मुकुल अवनीश गौतम अनिता कुमार ।यानी अंतर्जाल पे हिंदी के इत्ते सारे दस्तख़तयानीमुझे सबको भागीदारी के लिए बधाई देना होगातो "मेरी हार्दिक बधाइयां "
इस लिए भी कि युग्म को यहाँ =>दैनिक भास्कर सम्मान मिला
सुधि पाठकों , परिश्रमी लेखकों को भी लख लख बधाईयाँ
प्रतियोगिता:-
"गीत लिखिए" :-"ख़ुद से कैसे भाग सकेगा अंतस पहरेदार कड़क हैं"
इस मुखड़े पे गीत लिख भेजिए अन्तिम तिथि
=>30 जून 2008 से बढा कर 15 जुलाई 2008 कर दी गयी
है
email:- girishbillore@gmail।com अथवा girishbillore@hotmail।com नियमों की प्रतीक्षा कीजिए मुझे आपके एक गीत की प्रतीक्षा है अन्तिम तिथि तक प्राप्त गीत प्रकाशित कर दिए जाएंगे प्रकाशित गीतों पर विशेषज्ञों की राय,(गुणांक),तथा पाठकों की राय (गुणांक) के आधार पर विजेताओं की घोषणा कर दी जावेगी ! पुरूस्कार राशि के रूप में न होकर "...........................!" के रूप में होगा !!

तुमने हमें भुला दिया


तुमने हमें भुला दिया,

हम भी तुम्‍हे भुला देगें।

जो आग लगी दिल में,

किसी रोज बुझा देगे।।

तुमने हमें ..........

तेरी हर अदा दिल में,

तेरी आँखो का नशा दिल में।

तेरे इस नशे को हम,

जाम में मिला देगे।।

तुमने हमें ..........

कितनी तन्‍हा है मेरे घर की तन्‍हारी,

कितनी जुदा है ये तेरी जुदाई।

तेरे निशान को हम

एक-एक करके मिटा देगे।

तुमने हमें ..........

हर शाम गुजारते हम यहाँ मयखाने में,

रोज डूब जाते है, छोटे से पैमाने में।

अब तो अपनी तन्हाई को,

हम साकी बना देंगे।।

तुमने हमें ..........

आज रात मेरे ज़ाम में ज़हर होगा,

कल सुबह के बाद जो दुपहर होगा।

ये लोग मुझको उठाकर,

शमशान तक पहुँचा देगे।।

तुमने हमें ..........

By ज़ालिम प्रलयनाथ, दिनाँक 2 अप्रेल 2005

चित्र सभार संग्रह

11 June 2008

सारे शहर में खुशियाँ ही खुशियाँ

सारे शहर में खुशियाँ ही खुशियाँ,

मेरे घर में मातम है।

दिल मेरे दर्द भरा है,

आँखो में गम ही गम है।।

अपना जीवन कुछ भी नही,

ये नाटक का मंचन है।

सारे शहर में .........


कैसे कैसे किरदार जहॉ में,

कुछ है परेशां, कुछ मस्‍त फिजा में,

कैसे ये खुद को पहचाने

टूटे सारे दर्पण है।

सारे शहर में .........


कुछ है खफ़ा, कुछ नखरे में,

कुछ है आज़ाद खुद पिंजरे में,

कैसे सुनाए हाल-ए-दिल‍हम,

हर दृश्य विहंगम है।

सारे शहर में .........


बादल सारे बिखर गए है

कैसी से ‘प्रलय’ की दुनियाँ,

सुख-दुख का जो संगम है।

सारे शहर में .........


by प्रलयनाथ ज़ालिम, दिनाँक 2 अप्रेल 2005

10 June 2008

प्रेमगीत

प्रेमगीत
बदल-बदल के लिबास पहनो,
जो दिल बदल दो तो वाह कर लूँ !!
#######
न तुम चुराओ नज़र कभी भी,
न कनखियों से निहारो मुझको !
मैं चाहता हूँ प्रिया सहज हो
जहाँ भी चाहो पुकारो मुझको !!
ये इश्क गरचे गुनाह है तो, है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ...?
#######
कहो कि तुमको है इश्क़ हमसे
तो पहली बारिश में जा मैं भीगूँ,!
अगरचे तुम ने कहा नहीं कुछ
तो मैं ज़हर के पियाले पीलूँ !!
ज़हर को पीना गुनाह है तो,है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ...?

ये गुलाबी होंठ , ये शराबी आँखें,


ये गुलाबी होंठ , ये शराबी आँखें,

हमको तेरा दीवाना बनाए।

क्‍यो छिपाए तुमसे कुछ?

हम क्‍यो कोई बहाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


जब से तेरी गली में दाखिल हुए है,

देखकर तेरा हुस्‍न पागल हुए है।

तेरी ये कातिल नजरे,

रोज हमें निशाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


इन जुल्‍फों में हम खो जाए,

तेरे आँचल में हम सो जाए।

तेरी इज़ाजत हो अग

इन आँखों को अपना ठिकाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


तेरे आगे ये शराब कुछ भी नही है

जन्‍नत की परियों का शबाब कुछ भी नही है।

आ जाओं तुम्‍हे हम साकी,

इन आँखों का पैमाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


तुम आकर मेरा हाथ थाम लो

जो खौफ हो, तुम मेरा नाम लो।

चलों कहीं दूर सनम,

हम अपना आशियाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........

Written by प्रलायनाथ ज़ालिम,

दिनाँक- 3 अप्रेल 2004

05 June 2008

गांधी जी ने कहा- हिन्दू धर्म की विशेषता

यही तो हिन्दू धर्म की विशेषता है कि वह बाहर से आने वालों को अपना लेता है। हिन्दू धर्म एक महासागर है। जैसे सागर में सब नदियां मिल जाती हैं, वैसे हिन्दू धर्म में सब समा जाते हैं। हिन्दू धर्म का रहस्य जानना केवल हिन्दुओं का नहीं, सारे भारतीयों का काम है। हिन्दू धर्म अपनी बुनियाद में निहित इसी स्वदेशी की भावना के कारण स्थितिशील और परिणामत: अत्यंत शक्तिशाली बन गया है। चूंकि वह मतान्तरण की नीति में विश्वास नहीं करता इसलिए वह सबसे ज्यादा सहिष्णु है और आज भी वह अपना विस्तार करने में उतना ही समर्थ है, जितना भूतकाल में था। स्वदेशी भावना के कारण हिन्दू अपने धर्म का परिवर्तन करने से इनकार करता है। मैंने हिन्दुत्व के विषय में जो कुछ कहा है, वह मेरे विचार से संसार के सभी मत-पंथों पर लागू है। हां, हिन्दू धर्म के बारे में यह विशेष रूप से सही है।

-महात्मा गांधी (मद्रास में 'स्वदेशी' पर भाषण, 14 फरवरी 1916)

04 June 2008

समर्थ गुरू रामदास का अभिमत

"धैर्य रखो, देखो घबराओं मत, हिम्‍मत से काम लो। समय को देखकर बर्ताव करो। मन से सारे भय को निकाल दो।" 

02 June 2008

प्रतियोगिता:-"गीत लिखिए"

प्रतियोगिता:-"गीत लिखिए" :-
"ख़ुद से कैसे भाग सकेगा अंतस पहरेदार कड़क हैं"
इस मुखड़े पे गीत लिख भेजिए
अन्तिम तिथि 30 जून 2008
email:- girishbillore@gmail.com
अथवा
girishbillore@hotmail.com
नियमों की प्रतीक्षा कीजिए मुझे आपके एक गीत की प्रतीक्षा है
अन्तिम तिथि तक प्राप्त गीत प्रकाशित कर दिए जाएंगे प्रकाशित गीतों पर विशेषज्ञों की राय,(गुणांक),तथा पाठकों की राय (गुणांक) के आधार पर विजेताओं की घोषणा कर दी जावेगी !
पुरूस्कार राशी के रूप में न होकर
"...........................!"
के रूप में होगा !!