11 April 2010

!वो बचपन याद आता है!

आज भी मुझे अपना वो बचपन याद आता है,
खेलते थे जहाँ क्रिकेट, वो आँगन याद आता है..
बचपन के उन यारों को मैं भूला नहीं,
ये सावन के बाद पेड़ों से हट जाने वाला झूला नहीं...

नए खिलोने देख कर, पुराने भूलना याद आता है,
माँ कि लोरियां सुनके सो जाना याद आता है..
वो नानी कि परियों की कहानी मैं अभी भूला नहीं,
भोर में पंछियों का वो चहचहाना याद आता है..

वो शरारतों के बाद, डर जाना याद आता है,
माँ के पहलू में फिर, छुप जाना याद आता है..
वो आँगन की मिटटी की खुशबू अभी भूला नहीं,
ऐसा तो कोई नहीं, जो यादों में झूला नहीं..

वो छोटी छोटी बात पर, रूठ जाना याद आता है,
माँ का तब प्यार से, वो मानना याद आता है...
पापा की प्यार भरी मार अभी भूला नहीं,
आंसुओं में तब गीला होना याद आता है..

बात बात में दोस्तों से हुई लड़ाई याद है मुझे,
फिर ये सब भूल कर ली हर अंगड़ाई याद है मुझे..
वो बचपन की गलियों का हर तराना याद आता है,
दोस्ती का, नाराज़गी का हर फ़साना याद आता है....

06 April 2010

साप्‍तहिक वंदेमातरम् पत्रिका मे - प्रमेन्‍्द्र प्रताप सिंह और मिथलेश दूबे

पाक्षिक पत्रिका वंदेमातरम् के अप्रेल अंक मे दो ब्‍लागरो के आलेक छपे है जिन्‍हे आप बड़ा कर पढ़ सकते है -