19 February 2015

भिक्षा


छत्रपति शिवाजी के गुरुदेव, समर्थ गुरु रामदास एक दिन गुरुभिक्षा लेने जा रहे थे। उन पर शिवाजी की नजर पड़ी!मेरेगुरु और भिक्षा!मैं नहीं देख सकता!प्रणाम किया! बोले-"हे गुरदेव!मैं अपना पूरा राज पाठ आपके कटोरे में दाल रहा हूँ !..अब से मेरा राज्य आपका हुआ!"तब गुरु रामदास ने कहा-"सच्चे मन से दे रहे हो! वापस लेने की इच्छा तो नहीं?"
"बिलकुल नहीं !यह सारा राज्य आपका हुआ!"
"तो ठीक है! यह लो...!"कहते कहते गुरु ने अपना चोला फाड़ दिया! उसमे से एक टुकडा निकाला!भगवे रंग का कपडा था वह !इस कपडे को शिवाजी के मुकुट पर बाँध दिया और कहा -"लो!! मैं अपना राज्य तुम्हे सौंपता हूँ-चलाने के लिए!देखभाल के लिए!""मेरे नाम पर राज्य करो! मेरी धरोहर समझ कर! मेरी अमानत रहेगी तुम्हारे पास !"
"गुरदेव ! आप तो लौटा रहें है मेरी भेंट!" कहते कहते शिवाजी की ऑंखें गीली हो गयी!
"ऐसा नहीं!कहा न मेरी अमानत है!मेरे नाम पर राज्य करो! इसे धरम राज्य बनाए रखना, यही मेरी इच्छा है!"
"ठीक है गुरुदेव! इस राज्य का झंडा सदा भगवे रंग का रहेगा! इसे देखकर आपकी तथा आपकी आदर्शों की याद आती रहेगी!"
"सदा सुखी रहो ! कहकर गुरु रामदास भिक्षा हेतु चले दिए!

संकलित प्रेरक प्रसंग

05 February 2015

इश्क

जिन्दगी के हर मोड़ में,
तन्हाई ने पकड़ रखा है।
इश्क प्यार और मोहब्बत के,
बुखार ने मुझको जकड़ रखा है।
न किसी वैद्य की दवा,
न किसी मौलबी की दुवा।
मर्ज पर काम करती है,
दिलबर का दीदार,
हजार रोग ठीक करता है।
परदे के ओट के सहारे,
एक झलक पाने को बेताब हूँ,
जमाने के दर्द को झेल कर,
किसी रांझा की हीर बनने को तैयार हूँ।