29 April 2015

स्त्री-पुरुष चरित्र विचार -स्वामी विवेकानन्द

""तमाम पुरुषो के लिए अपनी स्त्री के सिवा अन्य सभी स्त्री माता के समान होनी चाहिए , जब मै अपने आस-पास नजर करता हु और जिसे आप "स्त्रीसन्मान" कहते है वो देखता हू तो उसे देखकर मेरा आत्मा घृणा से भर जाता है ! जब तक आप स्त्रीपुरूष मे भेद के प्रश्नको लक्ष मे लेना छोड देके सर्वसामान्य मानवता की भूमिका पर मिलना नहीं सिखते तब तक आपका स्त्री समाज सच्चा विकास नहीं करेगा , वहा तक वो खिलौने से विशेष कुछ नही ! लग्न-विच्छेद या तलाक का कारण ये ही सब है !!
आपका पुरुष-वर्ग नीचे झुक के कुर्सी देता है और दूसरे ही पल वो उसके रुप की प्रशंसा करने लगता है और कहता है,"ओह मैडम ,तुम्हारे नैन कितने सुन्दर है ! "-ऐसा करने का आपको क्या अधिकार है ? पुरूष इतना आगे बढने की धृष्ठता कैसे कर सकता है ? और आप स्त्री-वर्ग ऐसी छुट कैसे दे सकते है ?
ऐसी घटना मानवता के अधम पक्ष को उत्तेजना देता है , उद्दात आदर्शो को ये पोषता नहीं. "-----स्वामी विवेकानन्द

17 April 2015

एक भोर,

एक भोर,
दूजी भोर,
तीजी भोर,
लगातार होती भोर.....
आज तक मेरे आँगन मी लगे बिही के पेड़ पर
बैठ कर कौए की
कोई कांव-कांव नहीं !
एक शाम
दूजी शाम,
तीजी शाम,
मैं कभी न खड़ी हो सकी
प्रिय की प्रतीक्षा में ,
घर की चौखट पे ....!!
एक-एक कर सारे तीज त्यौहार निकल गए,
मैं विधवा आज भी बेडियों से जकड़ी
आख़िरी दिन के इंतज़ार में हूँ,