13 June 2015

हिन्‍दू विवाह

हिन्‍दू विवाह एक संस्‍कार हुआ करता था किन्‍तु भारत सरकार के द्वारा हिन्‍दू‍ विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार अब न यह संस्‍कार है और न ही संविदा। अपितु यह दोनो का समन्‍वय हो गया है। भारत सरकार के इस अधिनियम से निश्चित रूप से हिन्‍दू भावाओं को आधात पहुँचा है क्‍योकि यह हिन्‍दू धर्म की मूल भावानाओं का अतिक्रमण करता है तथा संविधान की मूल भावनाओं का उल्‍लंघन करता है।
हिन्‍दू विवाह जहॉ जन्‍मजन्‍मान्‍तर का संबध माना जाता था इसे एक खेल का रूप दे दिया गया है तथा हिन्‍दुओं की प्रचीन पद्धति को न्‍यायालय को मुहाने पर खड़ा कर दिया गया, जिसे परमात्‍मा भी भेद नही सकते थे। महाभारत में स्‍त्री पुरूष का अर्ध भाग है तथा पुरूष बिना स्‍त्री के पूर्णत: प्राप्‍त नही कर सकता है। धर्म के लिये पुरूष तथा उपयोगी होता है जबकि उसके साथ उसकी धर्म प‍त्‍नी साथ हो, अन्‍यथा पुरूष कितना भी शक्तिशाली क्‍यो न हो वह धर्मिक आयोजनों का पात्र नही हो सकता है।
रामायण में भगवान राम भी सीता आभाव में धर्मिक आयोजन के योग्‍य नही हु‍ऐ थे। रामायण कहती है कि पत्नी को पति की आत्‍मा का स्‍वरूप माना गया है। पति अपनी पत्नि भरणपोषण कर्ता तथा रक्षक है।
हिन्दू विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें जो शरीर एकनिष्‍ठ हो जाते है, किन्‍तु वर्तमान कानून हिन्‍दू विवाह की ऐसी तैसी कर दिया है। हिन्‍दू विवाह को संस्‍कार से ज्‍यादा संविदात्‍मक रूप प्रदान कर दिया है जो हिन्‍दू विवाह के स्‍वरूप को नष्‍ट करता है। हिन्‍दू विवाह में कन्‍यादान पिता के रूप में दिया गया सर्वोच्‍च दान होता है इसके जैसा कोई अन्‍य दान नही है।
विवाह के पुश्‍चात एक युवक और एक युवती अपना वर्तमान अस्तित्‍व को छोड़कर नर और नारी को ग्रहण करते है। हिन्‍दू विवाह एक बंधन है न की अनुबंध, विवाह वह पारलौकिक गांठ है जो जीवन ही नही मृत्‍यु पर्यन्‍त ईश्‍वर भी नही मिटा सकता है किन्‍तु भारत के कुछ बुद्धि जीवियों ने  हिन्‍दू विवाह की रेड़ मार कर रख दी है इसको जितना पतित कर सकते थे करने की कोशिश की है। भगवान मनु कहते है कि पति और पत्नि का मिलन जीवन का नही अपितु मृत्‍यु के पश्चात अन्‍य जन्‍मों में भी य सम्‍बन्‍ध बरकरार रहता है। हिन्‍दू विवाह पद्धिति में तलाक और Divorce शब्‍द का उल्‍लेख नही मिलता है जहॉं तक विवाह विच्‍छेन का सम्‍बन्‍ध है तो उसे शब्‍द संधि द्वारा बनाया गया। अत: हिन्‍दु विवाह अपने आप में कभी खत्‍म होने वाला सम्‍बन्‍ध नही है।
वयस्‍कता प्राप्‍त करने पर,संतानों को मनमानी करने का फैसला निश्चित रूप से हिन्‍दू ही नही अपितु पूर भरतीय समाज के लिये गलत था। क्‍या मात्र 18 वर्ष की सीमा पार करने पर ही पिछले 18 वर्षो के संबध की तिलाजंली देने के लिये पर्याप्‍त है? है
1914 के गोपाल कृष्‍ण बनाम वैंकटसर में मद्रान उच्‍च न्‍यायाल ने हिन्‍दु विवाह को स्‍पष्‍ट करते हुये कहा कि हिन्‍दू विधि में विवाह को उन दस संस्‍कारों में एक प्रधान संस्‍कार माना गया है जो शरीर को उसके वंशानुगत दोषों से मुक्‍त करता है।
इस प्रकार हम देखेगें तो पायेगें कि हिन्‍दू विवाह का उद्देश्‍य न तो शारीरिक काम वासना को तृप्‍त करना है वरन धार्मिक उद्देश्‍यों की पूर्ति करना है। आज हिन्‍दू विवाह को कुछ अधिनियमों ने संविदात्मक रूप प्रदान कर दिया है तो हिन्‍दू विवाह के उद्देश्‍यों को छति पहुँचाता है।
अभी बातें खत्‍म नही हुई और बहुत कुछ लिखना और कहना बाकी है। समय मिलने पर इस संदर्भ में बाते रखूँगा।

10 June 2015

दृश्‍य और अदृश्‍य युद्ध

भारत ही है जो इतने प्रकार के हमलो के बावजूद अपनी आत्‍मा को मरने नही देता। यह अपने मूल मे यथावत जीवित है। जीवित ही नही बलकि यह उन तमाम सभ्‍यताओं को आईना दिखाता है जो अपने को श्रेष्‍ट घोषित करने में थकते नही है। अन्‍य सभ्‍यताऐं जहॉं उपासना और उपसना पद्धति के हिसाब से मनुष्‍य को चिन्हित करती है, वहीं भारत मनुष्‍यता और मनुष्‍य को महत्‍व देता है। यही कारण है कि इतिहासकारों ने कहा है कि “ग्रीक मिटे यूनान मिटे कुछ बात है कि हस्‍ती मिटती नही हमारी।”

आज भी भारत पर हमले हो रहे है। ये हमले दृष्‍य और अदृश्‍य दोनो प्रकार के है। दृष्‍य हमला वो है जो दिखाई देता है जैसे अंतकवाद। अदृश्‍य हमला वह है जो दिखाई नही देता है, किन्‍तु इसके व्‍यापक परिणाम होते है। इसके भी पर्याप्‍त उदाहारण है, आपस मे वैमनस्‍य पैदा करना, विश्‍वास का अविश्‍वास में बदलना, आस्‍था को अनास्‍था में बदलना। यह हमला ऐसा हमला है, जिसे हम समझ नही पाते है, किन्‍तु इसे बच पाना अत्‍यनत कठिन है।

आज यही हमला भारत पर हो रहा है इससे सामान्‍य जन ही नही अच्छे से अच्‍छे विद्वानों के मस्तिष्‍क में यह प्रश्‍न खड़ा हो जाता है, कि सच क्‍या है ? हम क्‍या करें ? हम कहॉं खडे़ हो ? सच्‍चाई समझ मे नही आती जिसको जिसने प्रभावित किया वे वैसा ही कहने लगता है। यह प्रभाव क्‍या है और कैसे है ? यह रहस्‍य नही, इसे गोदान में जमीदार और सम्‍पादक की वार्ता से समझा जा सकता है। फर्क बस इतना है कि जमीदार स्‍वयं को बचाना चाहता है और आज कुछ प्रभावी लोग भारत को नीचा दिखाना चाहते है सही कारण है कि डेनमार्क मे बने एक कार्टून के लिए भारत में नंगा नाच हुआ। सभी चुप रहे और किसी ने इसकी भर्तसना नही की। कला की स्‍वतंत्रता की वकालत करने वाली शबाना आज़मी भी कही दिखाई नही दीं।

वहीं कुछ देवी देवताओं की अश्‍लील चित्र बनाये गये तो क्‍या हुआ? यह कहने की आवाश्‍यकता नही है। यह भी एक प्रकार का हमला है, इसकी तह में जाना अभी आवाश्‍यक नही है। यह हमला क्‍यों और किसके द्वारा हो रहा है, इसकी चर्चा फिर कभी करूँगा। इन हमलों के माध्‍यम से आज इस अजेय भारत को कोई जीतना चाहता है यहाँ की मूल आत्‍मा को मार कर वैमनस्‍य के अटल बीज बोने का प्रयास किया जा रहा है। इस हमले से बचाब का क्‍या रास्‍ता है?