भारत में बम विस्फ़ोटों का सिलसिला लगातार जारी है… नेताओं का अनर्गल प्रलाप और खानापूर्ति (यह पोस्ट पढ़ें) भी हमेशा की तरह जारी है, साथ ही जारी है हम भारतीयों (खासकर छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों का प्रलाप और “गाँधीगिरी” नाम की मूर्खता भी – इसे पढ़ें)। पता नहीं हम लोग यह कब मानेंगे कि आतंकवाद अब इस देश में एक कैंसर का रूप ले चुका है। आतंकवाद या आतंकवादियों का निदान अब साधारण तरीकों से सम्भव नहीं रह गया है। अब “असाधारण कदम” उठाने का वक्त आ गया है (वैसे तो वह काफ़ी पहले ही आ चुका है)। जब शरीर का कोई अंग सड़ जाता है तब उसे काटकर फ़ेंक दिया जाता है, एक “बड़ा ऑपरेशन” (Major Surgery) किया जाता है, ठीक यही किये बिना हम आतंकवाद से नहीं लड़ सकते। लचर कानूनों, समय काटती घिसी-पिटी अदालतों, आजीवन सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले “थकेले” धर्मनिरपेक्षतावादियों, भ्रष्ट पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के रहते आतंकवाद समाप्त होने वाला नहीं है। अब इस देश को आवश्यकता है कम से कम पाँच सौ “दया नायक” की, ऐसे पुलिस अफ़सरों की जो देशभक्त और ईमानदार हैं, लेकिन “व्यवस्था” के हाथों मजबूर हैं और कुछ कर नहीं पा रहे। ऐसे पुलिस अफ़सरों को चुपचाप अपना एक तंत्र विकसित करना चाहिये, “समान विचारधारा वाले” अधिकारियों, पुलिस वालों, मुखबिरों आदि को मिलाकर एक टीम बनाना चाहिये। यह टीम आतंकवादियों, उनके खैरख्वाहों, पनाहगाहों पर जाकर हमला बोले, और उन्हें गिरफ़्तार न करते हुए वहीं हाथोंहाथ खत्म करे। यदि हम गिलानी, अफ़जल, मसूद, उमर जैसे लोगों को नहीं पकड़ते तो न हमें उन्हें अपना “दामाद” बनाकर रखना पड़ता, न ही कंधार जैसे प्रकरण होते। क्या कोई बता सकता है कि हमने अब्दुल करीम तेलगी, अबू सलेम आदि को अब तक जीवित क्यों रखा हुआ है? क्यों नहीं उन जैसों को जल्द से जल्द खत्म कर देते हैं? क्या उन जैसे अपराधी सुधरने वाले हैं? या उन जैसे लोग माफ़ी माँगकर देशभक्त बन जाने वाले हैं? या क्या उनके अपराध छोटे से हैं?
आतंकवाद अब देश के कोने-कोने में पहुँच चुका है (courtesy Bangladesh और Pakistan), लेकिन हम उसे कुचलने की बजाय उसका पोषण करते जा रहे हैं, वोट-बैंक के नाम पर। हमें यह स्वीकार करने में झिझक होती है कि रिश्वत के पैसों के कारण भारत अन्दर से खोखला हो चुका है। इस देश में लोग पेंशनधारियों से, श्मशान में मुर्दों की लकड़ियों में, अस्पतालों में बच्चों की दवाइयों में, विकलांगों की ट्राइसिकल में, गरीबों के लिये आने वाले लाल गेहूँ में… यहाँ तक कि देश के लिये अपनी जान कुर्बान कर देने वाले सैनिकों के सामान में भी भ्रष्टाचार करके अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं। देशभक्ति, अनुशासन, त्याग आदि की बातें तो किताबी बनती जा रही हैं, ऐसे में आप आतंकवाद से लड़ने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? इन सड़े हुए अधिकारियों के बल पर? या इस गली हुई व्यवस्था के बल पर, जो एक मामूली जेबकतरे को दस साल तक जेल में बन्द कर सकती है, लेकिन बिजली चोरी करने वाले उद्योगपति को सलाम करती है।
नहीं… अब यह सब खत्म करना होगा। जैसा कि पहले कहा गया कि हमें कम से कम 500 “दया नायक” चाहिये होंगे, जो मुखबिरों के जरिये आतंकवादियों को ढूँढें और बिना शोरशराबे के उन्हें मौत के घाट उतार दे (खासकर हमारे “नकली मीडिया” को पता चले बिना)। और यह काम कुछ हजार ईमानदार पुलिस अधिकारी अपने व्यक्तिगत स्तर पर भी कर सकते हैं। कहा जाता है कि ऐसा कोई अपराध नहीं होता जो पुलिस नहीं जानती, और कुछ हद तक यह सही भी है। पुलिस को पूर्व (रिटायर्ड) अपराधियों की मदद लेना चाहिये, यदि किसी जेबकतरे या उठाईगीरे को छूट भी देनी पड़े तो दे देना चाहिये बशर्ते वह “काम की जानकारी” पुलिस को दे। फ़िर काम की जानकारी मिलते ही टूट पड़ें, और एकदम असली लगने वाले “एनकाउंटर” कैसे किये जाते हैं यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है। अपराधियों, आतंकवादियों का पीछा करके उन्हें नेस्तनाबूद करना होगा, सिर्फ़ आतंकवादी नहीं बल्कि उसके समूचे परिवार का भी सफ़ाया करना होगा। उनका सामाजिक बहिष्कार करना होगा, उनके दुकान-मकान-सम्पत्ति आदि को कुर्क करना होगा, उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर देना चाहिये, तभी हम उन पर मानसिक विजय प्राप्त कर सकेंगे। अभी तो हालत यह है कि पुलिस की टीम या तो भ्रष्ट मानसिकता से ग्रस्त है या फ़िर परास्त मानसिकता से।
“संजू बाबा” नाम के एक महान व्यक्ति ने “गाँधीगिरी” नाम की जो मूर्खता शुरु की थी, उसे जरूर लोगों ने अपना लिया है, क्योंकि यह आसान काम जो ठहरा। एक शहर में ट्रैफ़िक इंस्पेक्टर तक “गाँधीगिरी” दिखा रहे हैं, चौराहे पर खड़े होकर खासकर लड़कियों-महिलाओं को फ़ूल भेंट कर रहे हैं कि “लायसेंस बनवा लीजिये…”, बच्चों को फ़ूल भेंट कर रहे हैं कि “बेटा 18 साल से कम के बच्चे बाइक नहीं चलाते…”… क्या मूर्खता है यह आखिर? क्या इससे कुछ सुधार आने वाला है? इस निकम्मी गाँधीगिरी की बजाय अर्जुन की “गांडीवगिरी” दिखाने से बात बनेगी। सिर्फ़ एक बार, नियम तोड़ने वाले की गाड़ी जब्त कर लो, चौराहे पर ही उसके दोनों पहियों की हवा निकालकर उसे घर से अपने बाप को लाने को कहो, देखो कैसे अगली बार से वह सड़क पर सीधा चलता है या नहीं? लेकिन नहीं, बस लगे हैं चूतियों की तरह “गाँधीगिरी के फ़ूल” देने में। इसी मानसिकता ने देश का कबाड़ा किया हुआ है। आक्रामकता, जीतने का जज्बा और लड़ने का जीवट हममें है ही नहीं, हाँ ऊँची-ऊँची बातें करना अवश्य आता है, “भारत विश्व का गुरु है…”, “भारत ने विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाया…”, “हिन्दू धर्म सहनशील है, सहिष्णु है (मतलब डरपोक है)…” आदि-आदि, लेकिन इस महान देश ने कभी भी स्कूल-कॉलेजों में हर छात्र के लिये कम से कम तीन साल की सैनिक शिक्षा जरूरी नहीं समझी (यौन शिक्षा ज्यादा जरूरी है)।
जब व्यवस्था पूरी तरह से सड़ चुकी हो, उस समय केपीएस गिल, रिबेरो जैसे कुछ जुनूनी व्यक्ति ही देश का बेड़ा पार लगा सकते हैं, आतंकवाद से लड़ाई “मरो या मारो” की होनी चाहिये, “मरो” पर तो वे लोग हमसे अमल करवा ही रहे हैं, हम कब “मारो” पर अमल करेंगे? देश के गुमनाम “दया नायकों” उठ खड़े हो…
Terrorism in India, Ahmedabad, Jaipur Bangalore Bomb Attack, Corruption in Police, Daya Nayak, Removal of Terrorism, Gandhigiri, आतंकवाद, आतंकवादी, भारत और आतंकवाद, जयपुर, बंगलोर, अहमदाबाद बम विस्फ़ोट, गांधीगिरी, पुलिस और भ्रष्टाचार, दया नायक, आतंकवाद का सफ़ाया, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
6 comments:
पहली बार इस तरफ आया, लेकिन आना सार्थक लगा.
ब्लॉग ने रचनाधर्म को निसंदेह नयी दिशा दी है.
आपके लेखन में ताजगी लगी.
कभी समय हो तो इधर रुख करें और
www.hamzabaan.blogspot.com पर पढें खतरे में इसलाम नहीं और www.shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com पर आदमी...
आतंकियों को मौत की सज़ा मिलनी चाहिये। चाहे ऐमनेस्टी कुछ भी कहे। यहां भी देखें
आपकी बात में दम है, गांधी एक पुरूष हो सकते है जो अंहिसा को माध्यम बताते हो। आज गांधी गीरी को एसा जामा पहनाया जाता है कि पूरा देश गांधी गिरी से ही चल रहा है।
यह देश गांधी से ज्यादा राम और कृष्ण की मर्यादाओं और प्रतिज्ञाओं वाला देश है, जो शान्ति के साथ साथ शक्ति सन्तुलन की बात करते है। आज उसी शक्ति सन्तुलन की जरूरत है। आज जरूरत है गांड़ीव उठाने की।
तुम्हारा गुस्सा जायज है लेकिन रास्ते कभी गुस्से से नहीं निकलते. पांच सौ दया नायक और राजबीर क्या करेंगे यह उनकी असली जिंदगी देखोगे तो समझ में आयेगा.
अभी तो समय आ रहा है. गांधी को थोड़ा संजीदगी से पढ़ना. बहुत कुछ समझ में आयेगा. सनातन भारत भी, हिन्दू भी और महात्मा गांधी भी. गांधी को गांधीवादियों के चश्मे से देखने की बजाय अपनी आखों से देखना चाहिए.
Bahut sateek likhaa hai bhai. Aankhe khol di.
mujhe bharosa nahi hota ki sankaradhani se itne nichle star ke lekh aa sakte hai.
logon ki bhavnayen bhadka kar sasti lokpriyta paane ki koshish se ghatiya patrkarita aur kya ho sakti hai?
Post a Comment