31 August 2008

मोब्लू आन्दोलन


अगर आप भी इनकी तरह मोब्लू बनना चाहते है तो देर किस बात की चिपके रहिये अपने मोबाईल से और शामिल हो जाइये मोब्लू की फेह्रित में।
भाग १








18 August 2008

बेइंतहा प्यार है तुमसे तुम्हारी दौलत से नही

बेइंतहा प्यार है तुमसे तुम्हारी दौलत से नही....

बेइंतहा प्यार है तुमसे तुम्हारी दौलत से नही
मौहब्बत है तुम्हारे दिल से दौलत से नही.

गर सितारा न होता अगर चाँदनी नही होती
गर लड़की न होती तो लडके आवारा न होते.

मुहब्बत के बीज बोकर गम ए फसल काटी
बाकी जिंदगी हमने इसी अफसोस में काटी.

फूल भंवरो को देखकर महक जाते है दोस्तों
सुंदर फूलो को देखकर. भंवरे बहक जाते है.

शबाबे मुहब्बत हकीकत में नशीली बहुत है
अभी तक असर है....दिल पर जो हमने पी.

..........

16 August 2008

रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई

भाई बहन के प्यार के अटूट बंधन के पर्व रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई!  

14 August 2008

मान तुझे प्रणाम मान तुझे सलाम

माँ....तुझे प्रणाम...माँ तुझे सलाम
न सिर्फ प्रणाम न सिर्फ सलाम
सच
६१ बरस की आज़ादी और हम
कितने संवेदन हीन से हैं
मै तुम् ये वो
मिल कर "हम" न हो सके तो
सच हम मादरे-वतन के वफादार बच्चे नहीं
फिर भी कोशिश जारी रहे
वन्दे मातरम

दोस्‍ती

दिल के रिश्तों को करीब से देखो,
तो दोस्ती नज़र आती है।
दोस्तों की नज़र में दोस्ती,
मात्र कोई शब्द नही है।
जिधर चल दिये दो पग,
उधर चल दिया दोस्ती का कारवां।
बढ़ती जायेगी उम्र,
लेकिन ये कारवाँ न रूकेगा।

11 August 2008

कल का बहता लहूँ और आज का उठता धुआँ

भारत की वर्तमान परिदृश्‍य को देख कर लगता है कि देश को आजादी की कोई जरूरत नही थी। आज देश जिस प्रकार पश्चात सभ्‍यता के सिकंजे से जकड़ी हुई है। देश उस समय अंग्रेजो का प्रत्‍यक्ष शारीरिक गुलाम था किन्‍तु आज स्थिति यह है कि हमारे देश की पीढ़ी शारीरिक के साथ साथ मानसिक रूप से गुलाम हो गई है। आज कुछ भी नही बदला है किन्‍तु वातावरण बदल गया था तब आजादी के लिये लड़ रहे थे आज गुलामी के शिकजे में खुद गिरफ्त होते जा रहे है। 

तब का दौर था के भगत सिंह के दिल में देश के लिये कुछ करने का जज्‍बा था किन्‍तु आज के दौर मे इसी उम्र का युवा भगत सिंह पर बनी फिल्‍म रंग दे बंसती को की तारीफ करता है किन्‍तु भगत सिंह जैसा जज्‍बा दिखाने में झिझकता है, और कुछ करने से पहले अपने अगर बगल देखता है कि कोई देख तो नही रहा है। आज हमारे लिये शहीद के मायने 15 अगस्‍त और 26 जनवरी को पुष्‍पाजंली अर्पित करने तक ही रह गई है। एक दिन हम इन्‍हे याद कर अपने कर्तव्‍यों से मुक्‍त हो जाते है। 

एक बहुत बड़ा प्रश्‍न यह उठता है कि आज देश के लिये जो शहीद हुये है उनके लिये ऑंसू बहाने का समय है ? कि उन शहीदों के सफनों के सपनो को साकार करने के लिये ऑंखों में देश के प्रति कर्तव्य पालन के लिये आँखों में अंगार सुलगाये रखने का समय है?  आज देश को अपनी सोच में परिवर्तन करने का समय है। हमारे शहीदों की सही श्रृंद्धाजली आँखो में पानी भरने से न होगी, सच्‍ची श्रृद्धाजंली तो तब होगी जब देश की तरफ शत्रु आँख उठा कर न देख पाये, जो आँख कभी उठे भी उसे दोबारा उठने लायक न छोड़ा जाये। 

आज के दौर हो सकता है कि गांधीवाद के रास्‍ते से शान्ति स्‍थापित की जा सकती है, किन्‍तु हमारी सरकार गांधीवाद की गांरटी लेने को तैयार नही है? जिस गांधीवाद के जरिये शान्ति का ढिड़ोरा पीटा जा रहा है। गांधीवाद प्रसंगगत ही ठीक लगता है इसकी वास्‍तविकता से कल्‍पना करना राई के पहाड़ बनाने के तुल्‍य होगा। राई का पहाड़ तभी सम्‍भव होगा जब कि बलिदान रूपी मूसर से उस बार कर उसकी गोलाई को नष्‍ट न किया जाये। 

जब किसी बात की शुरूवात होती है तो उसका अंत करना काफी कठिन होता है, देश की आजादी में सिर्फ गांधीवाद के ढकोले को श्रेय दिया जाता है। जबकि गाँधी जी की गांधी जी जिद्दी और तानाशाही प्रवृति के के कारण भगतसिंह, नेताजी और लौहपुरूष पटेल को किनारे रखा गया। गांधी जी की आपने आपको मसीहा साबित करने की नी‍ति का कारण था कि वे पाकिस्तान को बटवाने के समय ५५ करोड़ दिलाने के लिए उन्होंने अनशन किया, जबकि सब इसे देने के खिलाफ थे। १९४२ का सफल चल रहा आन्दोलन उन्होंने एक छोटी सी घटना के कारण वापस ले लिया, जबकि सभी ने ऐसा न करने की सलाह दी। और भी कई उदाहरण हैं, गाँधी जी सब जगह अपनी ही मर्जी चलाते थे। नही तो क्‍या जिस आजादी के लिये लाखो लोगों ने अपनी प्राण देने में नही हिचके, उन गांधी जी ने देश की आखंड़ता को ताक पर रखकर देश का बटवारा कर दिया। भले ही गांधीवाद को अपने प्राण प्‍यारे थे किन्‍तु देश में वीर सावरकर और देशभक्‍त नाथूराम जैसे अनेको देशभक्‍त देश की अखंड़ता के लिये संषर्घ करने को तैयार थे किन्‍तु गांधी जी की नेहरू को प्रधानमंत्री रूप में देखने की लालसा ही भारत विभाजन का कारण बनी। गांधी जी को तत्‍कालीन हिंसा तो दिखी, किन्‍तु उन्‍होने नेहरूवाद की पट्टी से उनकी आँखे बाद थी जिसका कारण यह था कि आज तक भारत ने इनते प्राणों का आंतकवाद की आग में प्राण गवा दिये जितनी की कल्‍पना गांधी जी को न रही होगी। 
हमने वीरों के बलिदानों से आजादी तो प्राप्‍त की किन्‍तु तत्‍कालीन नेताओं ने अपनी माहत्‍वकांक्षाओं की पूर्ति का साधन आजादी को मान लिया था, आजादी मिलते ही देश का नेतृत्‍व ऐसे हाथों में चला गया जिसने जीवन भर विलासिता का जीवन ही जिया, उसे आजादी और अखंडता से क्‍या मतलब था ? आज भारत देश की सबसे बड़ी कमजोरी उसका कमजोर नेतृत्‍व था। हम उस प्रधानमंत्री से क्‍या आस लगा सकते है जो पर स्‍त्री एडविना के प्रेम का दीवना था। एक तरफ भगत सिंह जैसे देशभक्त ने आजादी को अपनी दुल्‍हन माना था वही नेहरू को दूसरे की मेहरिया का रखैला बनने में आंनद था। हम किसी विलासित व्‍यक्ति से और अपेक्षा क्‍या कर सकते है? अगर भारत अंग्रेजों का गुलाम था तो नेहरू एक अंग्रेज स्त्री का। और एक विदेशी स्त्री के गुलाम व्यक्ति से हम अपेक्षा ही क्‍या कर सकते है ? सभी को पता है कि भारत विभाजन में सबसे महत्‍वपूर्ण कड़ी माउंटबेटन थे और ये उसी एडबिना के पति थे। भारत विभाजन की के परिपेक्ष में नेहरू-एडविना-माउंटबेटन की केमेस्‍ट्री का खुलासा होना चाहिये था किन्‍तु हमारा तंत्र उन्‍ही के हाथो में रहा जो अपराधी थे। जिस भारत की अंखड़ता को 2000 साल के आक्रमणकारी नही नष्‍ट कर पाये, कुछ चाटुकारों ने मिलकर नष्‍ट कर दिया। 
सही है कि कलयुग आ गया है, कहावत है जिसकी लाठी उसी की भैंस होती है। हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था को अंग्रेजी शासन में इतना तहस नहस नही किया गया जितना की स्‍वतंत्र भारत की प्राथमिक सरकार ने किया। हमारे इतिहास में तिलक, सुभाष को बंद दरवाजे में डाल दिया गया, बचे तो सिर्फ गांधी और गांधी। गांधी जी के सम्‍मान में 2 अक्‍टूबर की राष्‍ट्रीय अवकाश के मायने को स्‍पष्‍ट किया जाना चाहिये। गांधी व्‍यक्ति का आगमन 1915 में हुआ, क्‍या इससे पहले का आन्‍दोलन नही हुआ? गाधी नेहरू की आड़ में बहुत सम्‍माननीय राष्‍ट्रभक्‍तों को किनारे का रास्‍ता दिखा दिया गया। नेहरू-गांधी परिवार का इतिहास रहा है कि वह वह अपने हितों को साधने के लिये किसी भी नेता को हासिये पर डालते रहे है। अतीत से वर्तमान तक की गांधी परिवार को देखे तो पायेगे कि जो काम आजादी के पहले सुभाष बाबू और सरदार पटेल के साथ गाधी और नेहरू के उद्भव के लिये किया गया वही काम इदिरा के लिये लालबहादुर शास्त्री के साथ तथा वर्तमान में सोनिया-राहुल के लिये नरसिह्मा राव और सीता राम केसरी के साथ किया और अभी भी कितनों के साथ किया जा रहा है। यह देश की आड़ में व्‍यक्तिगत हित साधना नही तो और क्या है? 
आज भारत की तकदीर बदलनी है तो हमें व्‍यक्तिवाद को समाप्‍त करना होगा, भारत के महापुरूषों का अपमान करके कभी भी भारत की उन्‍नति के मार्ग को नही बनाया जा सकता है। बड़े शर्म की बात है कि हमारे देश की सर्वोच्‍च प्रशासनिक परीक्षा में भगत सिंह का आतंकवादी बताया जाता है। जिस देश की शिक्षा प्रणाली से बच्‍चों को भगत सिंह से दूर रखने का प्रयास किया जा रहा है। वहॉं पर गांधीवाद नाम का अनर्गल प्रलाप ही किया जा सकता है। गांधीवाद की प्रशासंगिकता का समझना होगा कि कहाँ इसका उपयोग किया जायेगा। किसी दुश्‍मन देश के साथ गांधीवाद के जरिये कोई मसला नही हल किया जा सकता है, कम से कम पाकिस्‍तान और चीन के साथ तो कभी भी नही। 
बातों को कहना जिनता आसान होता है करना उतना ही कठिन, हृदय में स्‍वतंत्र भारत को शवशैया पर देखकर दुख होता है कि आजादी के 70 सालों में ही वह दम तोड़ने लगा है। आज हमें अपनी आजादी के मायनों के बारें में सोचना होगा। हम विश्व गुरू कहालाते थे कि आज हम अच्‍छे शिष्‍य भी नही बन पा रहे है। नेताजी, भगतसिंह ने ऐसी आजादी की कल्‍पना नही की होगी जिसमें जिसमें भ्रष्‍टाचार, वैमस्‍य और रिश्वतखोरी हो। आज देश की आजादी के लिये लाखों सेनानियों की रक्‍त कुर्बानियों को आज की युवा पीढ़ी सिगरेट के धुयें में उड़ाती चले जा रही है। 

04 August 2008

हम भी चाहते हैं कश्मीर आज़ाद हो जाये…

(भाग-1 : कश्मीर - नेहरु परिवार द्वारा भारत की छाती पर रखा बोझ… से जारी)

अपनी इन्हीं देशद्रोही नीतियों की वजह से कश्मीरी नेताओं और जनता ने देखिये क्या-क्या हासिल कर लिया है–
1) कश्मीर घाटी से गैर-मुस्लिमों का पूरी तरह से सफ़ाया कर दिया गया है।
2) कई आतंकवादी, जिन्हें सुरक्षाबलों ने जान की बाजी लगाकर पकड़ा था, पैसा, बिरयानी आदि लेकर जेल से बाहर आजाद घूम रहे हैं।
3) कश्मीर घाटी में अलगाववादी भावनायें जोरों पर हैं, चाहे वह “खुद का प्रधानमंत्री” हो या फ़िर छः साल की विधानसभा।
4) पश्चिमी मीडिया (खासकर बीबीसी) के सामने हमेशा कश्मीरी मुसलमान रोते-गाते नजर आते हैं कि “हम पर भारतीय सुरक्षा बल बहुत अत्याचार करते हैं…”
5) केन्द्र से मिली मदद, सबसिडी और छूट का फ़ायदा उठाने (यानी हमारा खून चूसने) में ये “पिस्सू” सबसे आगे रहते हैं।
6) “कश्मीरियत” का झूठा राग सतत् अलापते रहते हैं, जबकि अब कश्मीरियत मतलब सिर्फ़ इस्लाम हो चुका है।
7) कश्मीरी सारे भारत में कहीं भी रह सकते हैं, कहीं भी जमीने खरीद सकते हैं, लेकिन कश्मीर में वे किसी को बर्दाश्त नहीं करते।

कुल मिलाकर कश्मीरियों के लिये यह “विन-विन” की स्थिति है (दोनो हाथों में लड्डू), फ़िर क्या वे मूर्ख हैं जो इतनी आसानी से ये सुविधायें अपने हाथों से जाने देंगे? ढोंगी मुफ़्ती मुहम्मद चाहते हैं कि आतंकवादियों के परिवारों का पुनर्वास किया जाये (जाहिर है कि केन्द्र के पैसे से, यानी हमारे-आपके पैसे से) जिसके लिये एक करोड़ों की योजना उन्होंने केन्द्र को भेजी है। हमेशा की तरह इस योजना को मानवाधिकारवदियों और धर्मनिरपेक्षतावादियों ने हाथोंहाथ लपक लिया है। इनसे पूछना चाहिये कि आखिर किस बात का पुनर्वास और मुआवजा? तुम्हारा लड़का हमसे पूछकर तो आतंकवादी नहीं बना था। वह तो ज़न्नत में 72 परियों के लालच में “जेहादी” बना था ना? फ़िर हमारे खून-पसीने की कमाई पर तुम क्यों ऐश करोगे? जरा इसराइल से सबक लो, वहाँ स्पष्ट नीति है कि आतंकवादी के पूरे परिवार को दण्ड दिया जाता है, बुलडोजर से उसका घर-बार उखाड़ दिया जाता है और आतंकवादी के परिवार वाले फ़िलीस्तीन की सड़कों पर भीख माँगते हैं। शायद सड़क पर भीख माँगती अपनी माँ को देखकर किसी कट्टर आतंकवादी का दिल पिघले…। जले पर नमक छिड़कने की इंतहा तो यह कि महबूबा मुफ़्ती कहती हैं कि घाटी से गये पंडितों का स्वागत है, हम उनकी सुरक्षा का पूरा खयाल रखेंगे, लेकिन महबूबा ने यह नहीं बताया कि पंडितों की जिस सम्पत्ति और मकानों पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया था, वह उन्हें वापस मिलेगा या नहीं। है ना दोगलापन…

अब देखते हैं कि कैसे कश्मीरी मुसलमान हमारा खून चूस रहे हैं… कश्मीर के बारे में आर्थिक आँकड़े टटोलने की कोशिश कीजिये आपकी आँखें फ़टी की फ़टी रह जायेंगी। आप क्या सोचते हैं कि कश्मीर में गरीबी की दर क्या हो सकती है, बाकी भारत के मुकाबले कम या ज्यादा? 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत? तमाम छातीकूट दावों के बावजूद हकीकत यह है कि कश्मीर में गरीबी की दर है सिर्फ़ 3.4 प्रतिशत जबकि भारत की गरीबी दर है अधिकतम 26 प्रतिशत (बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों में), और ऐसा क्यों है, क्योंकि उन्हें पर्यटन (जो कि 90% भारतीय पर्यटक ही हैं), सूखे मेवों और पशमीना शॉलों के निर्यात से भारी कमाई होती है। ऊपर से तुर्रा यह कि कश्मीर को केन्द्र की तरफ़ से भारी मात्रा में पैसा मिलता है, मदद, सबसिडी और सहायता के नाम पर…

CAGR की रिपोर्ट के अनुसार 1991 में कश्मीर को 1,244 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया जो कि सन् 2002 तक आते-आते बढ़कर 4,578 करोड़ रुपये हो गया था (सन्दर्भ-इंडिया टुडे 14 अक्टूबर 2002)। 1991 से 2002 के बीच केन्द्र सरकार द्वारा कश्मीर को दी गई मदद कुल जीडीपी का 5 प्रतिशत से भी अधिक बैठता है। इसका मतलब है कि कश्मीर को देश के बाकी राज्यों के मुकाबले ज्यादा हिस्सा दिया जाता है, किसी भी अनुपात से ज्यादा। यह कुछ ऐसा ही है जैसे किसी परिवार के सबसे निकम्मे और उद्दण्ड लड़के को पिता का सबसे अधिक पैसा मिले “मदद(?) के नाम पर”। क्या आपको बचपन में सुनी हुई कोयल और कौवे की कहानी याद नहीं आई? जिसमें कोयल अपने अंडे कौवे के घोंसले में रख देती है, और कौवा उसके अंडे तो सेता ही है, कोयल के बच्चे भी जोर-जोर से भूख-भूख चिल्लाकर कौवे के बच्चों से अधिक भोजन प्राप्त कर लेते हैं, ठीक यही कश्मीर में हो रहा है, “वे” हमारे पैसों पर पाले जा रहे हैं, और वे इसे अपना “हक”(?) बताकर और ज्यादा हासिल करने की कोशिश में लगे रहते हैं। भारत के ईमानदार करदाताओं का पैसा इस तरह से नाली में बहाया जा रहा है। जब नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि “गुजरात से कोई टैक्स न लो और न ही केन्द्र कोई मदद गुजरात को दे” तो कांग्रेस इसे तत्काल देशद्रोही बयान बताती है। अर्थात यदि देश का कोई पहला राज्य, जो हिम्मत करके कहता है कि “मैं अपने पैरों पर खड़ा हूँ…” तो उसे तारीफ़ की बजाय उलाहने और आलोचना दी जाती है, जबकि गत बीस वर्षों से भी अधिक समय से “जोंक” की तरह देश का खून चूसने वाला कश्मीर “बेचारा” और “धर्मनिरपेक्ष”?

एक बार रेलयात्रा में गृह मंत्रालय के एक अधिकारी मिले थे, उन्होंने आपसी चर्चा में बताया कि कश्मीर में आतंकवाद कभी भी खत्म नहीं होगा, क्योंकि “आतंकवाद के धंधे” से जुड़े लगभग सभी पक्ष नहीं चाहते कि इसका खात्मा हो!!! और खुलासा चाहने पर उन्होंने बताया कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर कश्मीर में पुलिस, BSF, CRPF और सेना को केन्द्र से प्रतिवर्ष 600 से 800 करोड़ रुपया “सस्पेंस अकाउंट” में दिया जाता है, जिसका कोई ऑडिट नहीं किया जाता, न ही इस बारे में अधिकारियों से कोई सवाल किया जाता है कि वह पैसा कहाँ और कैसे खर्चा हुआ। इसी प्रकार का “सस्पेंस अकाउंट” प्रत्येक राज्य की पुलिस को मुखबिरों को पैसा देने के लिये दिया जाता है (अब वह पैसा मुखबिरों तक कितना पहुँचता है, भगवान जाने)।

अब इसे दूसरी तरह से देखें तो, कश्मीर के प्रत्येक व्यक्ति पर केन्द्र सरकार 10,000 रुपये की सबसिडी देती है, जो कि अन्य राज्यों के मुकाबले लगभग 40% ज्यादा है, और यह विशाल धनराशि राज्य को सीधे खर्च करने को दी जाती है (कोई भी सामान्य व्यक्ति आसानी से गणित लगा सकता है कि कश्मीरी नेताओं, हुर्रियत अल्गाववादियों, आतंकवादियों और अफ़सरों की जेब में कितना मोटा हिस्सा आता होगा, “ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल” की ताजा रिपोर्ट में कश्मीर को सबसे भ्रष्ट राज्य का दर्जा इसीलिये मिला हुआ है)। इसके अलावा अरबों रुपये की विभिन्न योजनायें, जैसे रेल्वे की जम्मू-उधमपुर योजना 600 करोड़, उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला योजना 5000 करोड़, विभिन्न पहाड़ी सड़कों पर 2000 करोड़, सलाई पावर प्रोजेक्ट 900 करोड़, दुलहस्ती हाइड्रो प्रोजेक्ट 6000 करोड़, डल झील सफ़ाई योजना 150 करोड़ आदि-आदि-आदि, यानी कि पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, लेकिन एक अंधे कुँए में… तो इस बात पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि वहाँ की आम जनता की आर्थिक हालत तमाम आतंकवादी कार्रवाईयों के बावजूद, देश के बाकी राज्यों के गरीबों के मुकाबले काफ़ी बेहतर है।

(भाग-3 में कश्मीर समस्या का एक हल “जरा हट के”…)
(भाग-3 में जारी रहेगा…)

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उपयोगी बातें

  • स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है।- विनोबा
  • जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। - मुक्ता
  • दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। - डॉ. रामकुमार वर्मा
  • डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है।- अज्ञात
  • सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। - अज्ञात
  • अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती।- अज्ञात
  • जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सबकुछ जीता। - अज्ञात
  • अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का।- कहावत
  • जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते।- वेदव्यास
  • नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है।- वेदव्यास
  • जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं।- अमृतलाल नागर

 

संकलन

आतंक का अंत



आज एक और आतंक का अंत हो गया मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में आतंक का पर्याय बन चुके अम्बिका पटेल उर्फ़ ठोकिया का आज स्पेसल टास्क फोर्स नेचित्रकूट के घने जंगलो में इस पाँच लाख के इनामी डकैत को मर गिराया । इसके ऊपर १५० से अधिक मुकदमे लूट डकैती चोरी अपहरण और छिनैती के दर्ज थे। पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंघ ने अस्तिफ के अधिकारीयों को १ - १ लाख रुपये नकद इनाम दिए हैं। एस टी ऍफ़ के एस एस पी अमिताब यस् ने पूरी कमान को संभाली थी। इससे पहले शिव कुमार पटेल उर्फ़ ददुआ का भी यही अंजाम हुआ था ।

02 August 2008

क्या देखती हो ?

साधो अजीब इतफाक था मैं जब इसे देखता हूँ यह सिर्फ उधर ही देखती ही ऐसा क्यों जब कोई अपना हो जाये तब भी.