21 October 2008

राष्ट्रीय एकता परिषद का राजनीतिक दुरुपयोग

कांग्रेस सरकार राष्ट्रीय एकता परिषद के मंच का राजनीतिक दुरुपयोग कर रहा है। यह राष्ट्रीय एकता का ढकोसला है। विगत सप्ताह एकता परिषद की दिल्ली में हुई बैठक के एजेंडे से ही यह झलक मिल रही थी कि यह बैठक बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद को घरने के दुराग्रह के साथ आयोजित की जा रही थी क्योंकि आज देश के सामने जो सबसे गंभीर संकट है अर्थात आतंकवाद, वह इस बैठक के एजेंडे में ही नहीं था। बल्कि उड़ीसा और कर्नाटक की हिंसक घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में साम्प्रदायिकता को बैठक का केन्द्रीय विषय बनाया गया। यह स्पष्ट है कि परिषद की यह बैठक आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर साम्प्रदायिकता के नाम पर हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों और भाजपा को आरोपित कर छद्म सेकुलर जमात अल्पसंख्यक समुदायों को यह संदेश देना चाहती थी कि वही उनकी हिमायती है। बजरंग दल के खिलाफ स्वर को मुखर करने के लिए समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह को परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया जबकि अमर सिंह ने आतंकवादियों के खिलाफ पुलिस मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस अधिकारी शहादत पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। अमर सिंह जैसे लोगों को परिषद में शामिल कर सरकार क्या संदेश देना चाहती है। इस बैठक की गंभीरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बैठक में विशष आमंत्रित के रूप में बुलाए गए कामरेड ज्योति बसु ने स्वयं उपस्थित न होकर अपना जो संदेश भेजा वह परिषद की कार्यशैली व भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। भाजपा द्वारा आतंकवाद जैसे गंभीर विषय को बैठक के एजेंडे में शामिल करने के लिए जोर देने पर सरकार ने चरम पंथ को एजेंडे में शामिल किया क्यों कि संप्रग सरकार व उसके छद्म धर्मनिरपेक्ष घटक दल जानते हैं कि आतंकवाद पर व्यापक बहस हुई तो उन सबकी पोल खुलेगी और फिर देश की जनता जानेगी कि सोनिया पार्टी की सरकार और लालू,पासवान व मुलायम सिंह जैसे उसके सहयोगी किस तरह मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए न केवल आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने से कतरा रहे हैं बल्कि आतंकवादी समूहों के पैरोकारी कर रहे हैं।
http://ckshindu.blogspot.com

1 comment:

Pramendra Pratap Singh said...

राष्ट्रीय एकता परिषद के मंच पर जिस प्रकार नेतागण अनेकता में बटे दिखे यह देश के लिये घातक था। हमें सोचना चाहिये कि इन नेताओं की मंशा का हल क्या हो ?