- इस जन्म में कम से कम इतना काम कर लेना चाहिेये, कि मनुष्य-जन्म से नीची योनि में जन्म न लेना पड़े।
- अपने घर में अन्न शुद्ध कमाई का होना चाहिये।
- धार्मिक पुस्तके घर में पड़े पड़े भी कल्याण करती है।
- स्वार्थ और अभिमान का त्याग करके अभाग्रस्तो को अन्न, जल, वस्त्रादि देना परम सेवा है।
- सत्पुरूष ही सत्प्रेम कर सकता है।
2 comments:
बड़ी अच्छी बातें कहीं हैं.
जी महाराज!!
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