जब भी अच्छा काम हो श्रेय ले जाते हैं वे,
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं!
मैं यों तो छोटा सा है शब्द,
मगर फैलाता है बडा दुख- दर्द!
मौसम चाहे सर्द हो चाहे हो गर्म,
मै ही है सबसे बडा मर्म!
" मैं" " मैं" करते लुट गए कई लाख,
मिट्टी में मिलकर होना है सबको खाख!
मिट्टी में मिलकर भी नही मिटता है मैं,
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं!
कई बुत व सडकें बनती हैं उनके नाम पर,
कई बातें गढ़ी जाती हैं उनके काम पर,
समाज में ऊँचा रूतबा होता है उनका,
लूटते हैं जिसे वे वह होती है जनता,
गुपचुप करते हैं धन्धे चोरी के,
भाषणों में बनते हैं निन्दक चोरी के ,
कईयों का खाख में मिलाकर ,
अपने रस्ते से मिटाकर ,
जब खुद जाते हैं खाख में ,
तब भी नही मिटता है मैं
क्योंकि उनके सिर चढा है मै ,
और हर अच्छे काम का श्रेय ले गये हैं वे।
already published before some time by mahashakti group bcoz I'm unable to post it posted on 24th jan. 08
4 comments:
tarun ji aapne "mai" ki bahut achhi vykhya ki hai. kis tarah se mai kary karta hai kisi ke upar. bahut sundar.
satya kaha,Main nahi mitta...Is "main" ke sayam par hi jagat tika hai.Yahi "main" skaratmak roop me sarjak hota hai aur asayamit ho jaye to vidhwans karta hai.
सही है-बढ़िया.
कई जगहो पर देखने में आता है कि मै हम पर हावी होता है, इस मै के कारण कई बार हमारे काम खराब होते है।
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