21 October 2008
कितना कठिन है सबको साथ लेकर चलना
"अनूप जी"की एक लाइना देख कर लगता है की एक दूसरे से जुड़ने में कितना आनंद है । 'अनपेक्षित विवाद
को लेकर जो बबाल मचा "उस पर अनूप जी ने बस इतना कहा लिखते रहिए !" वास्तव में लिखने की धारा में कमी न हो उनका उद्द्येश्य है इसके पीछे । इसमें बुराई क्या है अगर बुराई है तो "इनके"कार्यो में रचनात्मकता की चेतना के अभाव को देखा जा सकता है । राज ठाकरे जैसे व्यक्तियों को कितना भी राज़ ठाकरे जी "सादर-अभिवादन"">समझाया जाए हजूर के कानों में जूँ भी न रेंगेगी तो ये भी जान लीजिए हजूर "जिंदगी "से हिसाब मांगती रहेगी कल की घड़ी तब आप भौंचक रह जाएंगे और तब आपके आंसू निकल आएँगे ये तय है। ये हम नहीं लोगों का कहना है जिन को आप क्षेत्र,भाषा,धर्म,प्रांत,के नाम पर तकसीम कर रहें हैं । "वशीकरण, सम्मोहन व आकर्षण हेतु “' किसी यन्त्र, का या "मन्त्र"-का उपयोग करिए । "ताना-बाना"बिनतीं, विघुलता का स्वागत
विघुलता जी एक अच्छी साहित्य कार होने के साथ साथ पत्रकारिता से भी सम्बद्ध हैं तथा सभी ब्लॉगर जो आज की चर्चा में शामिल हैं उनका हार्दिक सम्मान जिनके चिट्ठे छूट गए उनसे क्षमा याचना के साथ
आपका स्नेह एवं कभी कभार कोप भाजन
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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5 comments:
सार्थक। बहुत अच्छा ताना-बाना बुना है आपने। बधाई।
hori bhai
aabhar
वाह जी वहा, अपने भी इस विधा में अपने हाथ साफ कर ही दिया काफी अच्छा लगा, लिंकित पोस्टों को पढ़ कर
सही है। लिखते रहें!
Thanks
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