30 April 2009
मेरा देश - मेरा वोट !! (VOTE FOR BRIGHT FUTURE)
लेकिन किसको और क्यों...??
*जो देश की सुरक्षा के सामने कोई समझौते नहीं करे.
*जो देश में बढ़ रहे आतंकवाद को रोकने के लिए कठोर कानून बनाये.
*जो आतंकवादियों और उनको पनाह देने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करे.
*जो देश में तीन करोड़ से ज्यादा घुस आये बंगलादेशी घुसपैठियों पर कार्यवाही कर देश से बाहर करे.
*जो संसद के हमलावर अफज़ल गुरु को बचाने के बजाय फांसी देकर देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करे.
*जो अल्पसंख्यकों की भलाई के नाम पर बने देश विभाजन के नए दस्तावेज सच्चर कमेटी की सिफारिशों को तुरन्त रद्द करे.
*जो युवाओं के लिए रोज़गार के नए अवसर सृजन कर बेरोजगारी दूर करे.
*जो शिक्षा के बाजारीकरण को रोककर उसे भारत केन्द्रित बनाये.
"यह मेरे अपने मुद्दे हैं, फैसला मुझे ही करना है"
वोट डालना आपका संवैधानिक अधिकार ही नहीं अपितु सच्चे राष्ट्रभक्त होने का प्रमाण भी है. आपका वोट '२०२० के विकसित एवं शक्तिशाली भारत' के लिए निर्णायक साबित होगा.
राष्ट्रहित में मतदान अवश्य करें.
साभार
22 April 2009
तेरे इश्क में पागल हुये हम
तेरे इश्क में पागल हुये हम,
तेरे यादो में घायल हुये हम।
तेरी इश्क मे वो कशिश है,
जो आसानी से मिले वो क्या इश्क है।
जमाने के डर से,
हम डर-डर के मिलते है,
हम वो युगल है
जो बे मौसम प्यार की बारिस करते है।
खौफ़ है इश्क के दुश्मनो से,
पर जिस इश्क में डर न हो,
वो इश्क हम नही करते है।।
वो दिन याद करो,
जब मै था और तुम,
रात का आगोस अपने चरम पर था।
मै और सिर्फ तुम,
देखते थे एक दूसरे को।
''काम-रात'' की कल्पना में खोये,
निगाहो में निगाहे मिलाये।
भाजपा को वोट दे
21 April 2009
16 April 2009
बलातकार का सीधा प्रसारण
कितनी अजीव विडम्बना है हमारे देश भारत देश की मीडिया की। मीडिया की बेहुदगी उस समय देखी जा सकती थी जब भारत की वीर सैनिको की स्थियों की सही सही जानकारी ये अपने न्यूज चैलन के जरिये आतंकवादियों को दे रहे थे। इन मीडिया कर्मियों से बेहुदगी से चुल्लु भर पानी भी शर्म से सूख जायेगा।
आज लाईव इन्डिया पर न्यूज सुनना हो रहा था। पूर्व उपसभापति राज्यसभा नज़मा हेप्द्दुला ने मीडिया पर हमला बोलते हो कहा कि आप लोगों ने ही भारत देश की गरिमा गिराने का काम किया। एक आम आदमी को ये मीडिया वाले जूता मारने के कारण हाईलाईट कर देते है और उसे लाईम लाईट में ले आते है। अगर कोई जूता मारने से देश की मीडिया पर आ जाये तो इससे बड़ा काम और क्या हो सकता है ?
आज समय है कि मीडिया अपने लिये आचार सहिंता बनाने, क्या दिखना जरूरी है क्या नही, जब तक यह प्रथा नही शुरू होगी। मीडिया अपने साख को गिरायेगा ही। मुझे उस दिन की प्रतीक्षा है जब वो दिन दूर नही जब, कोई इन मीडिया पर जूता फेकेगा और इसकी न्यूज हमे टीवी पर देखने को मिले। ऐसा नही होगा क्योकि यह मीडिया के लिये कड़आ सच होगा।
15 April 2009
9 साल तक कहाँ सोये थे कांग्रेसी
विमान संख्या IC-814 का अपहरण शाम को लगभग 6:00 बजे हुआ था और उस विमान में 189 सवारी थे। विमान के अपहरण के सूचना के ठिक 1:00 घंटे बाद शाम 7:00 बजे प्रधानमंत्री निवास पर तत्काल एक उच्च स्तरीय समिति की बैठक हुआ, जिसमें हालात का जायजा लिया गया। इधर अपहरण करता विमान में तेल डालने के लिये लगातार विमान में बैठे यात्री को और विमानपतन के अधिकारीयों को धमकाते रहें। भारतीय जनता पार्टी के नेता विमान पर NSG कमाण्डो की कारवाही करना चाहते थे जिसके फल स्वरुप जब विमान अमृतसर हवाई अड्डा पर तेल लेने के लिये उतरा तथा वहाँ पर 45 मिनट खरा रहने के समय NSG अपने कार्यवाही में लगे हुये थे तथा उन्हें और भारतीय राजनेताओं को विमान में बैठे 189 यात्रीयों के बारे में चिन्ता भी था क्यों आतंकी आधुनिक हथियार से लैस थे और NSG कमाण्डों से डरे हुये भी थे वे किसी भी तरह की कार्यवाही पर सबसे पहला निशाना वे विमान के यात्रियों को बनाते और आंतकियों ने वैसा ही किया और रूपेन कत्याल को गोली मार कर हत्या कर दिया गया। अगर उस समय NSG कमाण्डों और किसी भी तरह का कार्यवाही करता और कुछ और यात्री मारे जाते तो आज कांग्रेस के नेता का सुर कुछ दुसरा होता और चिल्ला-चिल्ला कर कहते कि बी.जे.पी. सरकार को हिन्दुस्तान के नागरीकों का चिन्ता नही है। लेकिन यैसा कुछ नही हुआ NSG कमाण्डों का कार्यवाही किसी कारण से नही हो पाया।
लगभग खाली पेट्रोल टैंक सहित हवाई जहाज को लाहौर ले गये। लाहौर में पुनः उन्हें उतरने की अनुमति नहीं दी गई, यहाँ तक कि हवाई पट्टी की लाईटें भी बुझा दी गईं, लेकिन पायलट ने कुशलता और सावधानी से फ़िर भी हवाई जहाज को जबरन लाहौर में उतार दिया। जसवन्त सिंह ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री से बात की कि हवाई जहाज को लाहौर से न उड़ने दिया जाये, लेकिन पाकिस्तानी अधिकारी जानबूझकर मामले से दूरी बनाना चाहते थे, ताकि बाद में वे इससे सम्बन्ध होने से इन्कार कर सकें। वे यह भी नहीं चाहते थे कि लाहौर में NSG के कमाण्डो कोई ऑपरेशन करें, इसलिये उन्होंने तुरन्त हवाई जहाज में पेट्रोल भर दिया और उसे दुबई रवाना कर दिया। दुबई में भी अधिकारियों ने हवाई जहाज को उतरने नहीं दिया। जसवन्त सिंह लगातार फ़ोन पर बने हुए थे, उन्होंने यूएई के अधिकारियों से बातचीत करके अपहर्ताओं से 13 औरतों और 11 बच्चों को विमान से उतारने के लिये राजी कर लिया। रूपेन कत्याल का शव भी साथ में उतार लिया गया, जबकि उनकी नवविवाहिता पत्नी अन्त तक बन्धक रहीं और उन्हें बाद में ही पता चला कि वे विधवा हो चुकी हैं।
ये सभी घटना 24 दिसम्बर की है आगे 25 दिसम्बर को सुबह सुबह विमान अफगानिस्तान के कंधार नामक जगह में छोटे से हवाई अड्डा पर उतार लिया गया था। 25 दिसम्बर को दोपहर होते होते हजारों की सख्या का भीड़ प्रधानमत्री कार्यालय पर जमा होने लगा तथा वे सभी सरकार के अन्दरुनी हालात से वेखबर या अनभिज्ञा लगातार सरकार विरोधी नारे लगाये जा रहे थे और उनके साथ कुछ नेता किस्म के लोग भी थे जो किसी भी हालत में बी.जे.पी. सरकार की किरकिरी कड़वाना चाहते थे इन्हें ना तो देश से मतलब था और ना ही यहाँ के जनता का वे सिर्फ अपना उल्लू सिधा करना चाहते थे ये वही नेता थे जो बंगारु लक्ष्मण को मिडीया का सहारा लेकर झूठे मामले में फंसवाया ये वही नेता थे जो जार्ज फर्नाडीस को ताबूत चोर कहा ये वही नेता हैं जो दिलीप सिंह जुदेव को फंसाया। और यहाँ भी विमान में फंसे यात्रीयों को बरगला कर नारे लगवाने का काम कर रहा था। इसी बीच मुल्ला उमर और उसके विदेशमंत्री(?) मुत्तवकील से बातचीत शुरु हो चुकी थी और शुरुआत में उन्होंने विभिन्न भारतीय जेलों में बन्द 36 आतंकवादियों को छोड़ने की माँग रखी। जिसे की बी.जे.पी के लैहपुरुष श्री लालकृष्ण आड्वाणी जी ने एक झटके के साथ खारिज कर दिया (हमें इस बात को याद रखना चाहिये) आतंकियों को लौहपुरुष श्री लालकृष्ण आडवानी के इस दिलेरी की उम्मीद नही था। आतंकि इस बात पर थोडे़ मायुस हुये लेकिन बी.जे.पी से पहले के सरकार का नपूसंकता उन्हें पता था इस लिये वे हिम्मत नही हारा और बात चीत आगे जाडी़ रखा। इधर प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर तथाकथित नेताओं और 10वी-12वी पास मिडीया पत्रकारों के फौज लगातार हल्लामचा रहा था। इस बीच कही भी कोई कांग्रेस के नेता नजर नही आये। नाही मिडीया के सामने और नाही किसी देशवासी को सांत्वना देने के लिये और नाही इस घटना पर आंतकियों को कोशने के लिये। कहाँ थे सारे काँग्रेसी और उन्के सहयोंगी जो आज 9 साल बाद कांधार मामले में घरियाली आँसू बहा हैं उस समय क्यों सभी नेताओं का गले में घीघी बंध गया था। या फिर किसी नेता के बंगले पर बैठ कर बी.जे.पी नेताओं के हाल पर जाम से जाम टकरा कर पार्टी मनाया जा रहा था क्या है जबाब इस बात का।
प्रधानमंत्री कार्याकल पर लगातार बैठक चल रहा था बाहर विमान में फंसे यात्रीयों के परिवार जन डा. संजीव छिब्बर के नेतृत्व में लगातार नारेबाजी और मिडीया में हल्ला मचा रहा था कि किसी भी किमत पर उन्कें परिवार बालों को बचाया जाये इसके लिये 36 क्या हिन्दुस्तान के सभी आंतकवादियों को छोड़ना परे तो छोड़ काश्मीर देना परे तो दे दो। इसी क्रम में फौजी श्री जसवन्त सिंह शास्त्री भवन में आयोजित प्रेस कांफ़्रेस में आये लेकिन उन्के प्रेस कान्फेन्स में यात्रीयों के परिवार जन घुस आये और जसवन्त सिंह के सामने आ गये उन सभी का नेतृ्त्व डा़. छिब्बर कर रहें थे डा. छिब्बर एक पढे़ लिखे इन्सान और विख्यात सर्जन हैं तथा इस देश के नागरीक भी है ने श्री जसवन्त सिंह के सामने आकर कहा हमारे परिवार बालों को किसी भी किमत पर बचाना है इसके लिये हिन्दुस्तान को जितना किमत चुकाना है चुकाये " जब मुफ्ति की बेटी को बचाने के लिये आंतकी को छोडा़ जा सकता है तो हमारे परिवार वालों को बचाने के लिये क्यों नही" कुछ भी किमत चुकाओ हमारे रिस्तेदारों को छुडाओं चाहे तो पुरा काश्मीर दे दो सारे आंतकियों को छोड़ दों।
इस पुरे घटना कर्म और मेराथैन बैठक करते करते 3 दिन निकल गया 28 तारीख को भा.ज.पा सरकार ने सर्वदलिये बैठक बुलाया जिसमें इस देशके लगभग सभी राजनीतिक पार्टीयों को बुलाया गया उसमें कांग्रेस पार्टी भी बैठी थी उस बैठक में सभी राजनीतिक पार्टीयों ने यह फैसला लिया कि भा.ज.पा सरकार जो भी फैसला लेगी दुसरे राजनीतिक दल उसके साथ है। उस बैठक में आंतकियों के माँग को मानने के लिये सहमति बना। क्यों कि हिन्दुस्तान से पहले भी कई देश विमान अपहरण के घटना के बाद लगभग सभी देशें ने आतंकियों के आगे घुठने टेकने के अलावा और कुछ नही कर पाया हिन्दुस्तान कोई पहला देश नही है जो आतंकियों बात मान करे अपने देश के नागरिकों को बचा कर कोई गुनाह किया हो। आखिर 28 दिसम्बर को सरकार और आतंकवादियों के बीच “डील फ़ाइनल” हुई, जिसके अनुसार मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर, और अहमद उमर शेख को छोड़ा जाना तय हुआ। कांग्रेस भी इस बात से सहमत था कांग्रेसीयों के सहमती पर भी 5 आंतकियों को छोडा गया। इस मामले में अगर कांग्रेस बी.जे.पी को कटघरे में खरा करना चाहता है तो काँग्रेस भी कांधार मामले में दोषी है पाँच आंतकी को छोडने के मामले में कांग्रेसी ज्यादा दोषी है। ना कि बी.जे.पी क्यों कि काँग्रेस सिर्फ इस मुद्दे को वेट बैंक के लिये उठा रहा है ना कि देशहित्त में। पुरे 9 साल चुप्पी के बाद कांधार काण्ड का चर्चा करना सिर्फ काँग्रेस अपने दोष छिपाने के लिये कर रहा है ना कि आतंकवाद के खात्में के लिये।
इस घटना के 9 साल बीत गया इस बीच ना किसी काग्रेसी और ना ही उस के सहयोगी दल को कांधार के मामले पर घरीयालि आसू बहाने का जरुरत महसुस हुआ और ना ही कभी आसू बहाया कारण कांग्रेस खुद है। इस पाँच साल के शासन काल को अगर हम सभी गौर से देखें तो पता चल गायेगा कि आखिर क्या कारण है कि कांग्रेस को इस देश की चिन्ता होने लगा क्या क्या कारण है कि 12 साल तक इस देश का नागरिकता ना लेने बाली सुपर प्रधानमंत्री सोनिया गाँधि को इस देश के जनता का सुध आ गया। आखिर क्या कारण है प्रधानमत्री श्री मनमोहन सिंह पर काधार पर आसू वहाँ रहें हैं क्या कारण है ट्रेनिप्रधानमंत्री राहूल गाँधी जिन्हें हिन्दुस्तान का क्षेत्रफल तक पता नही कांधार के घटना के समय कहाँ बैठे थे किसी को नही पता है उन पाँच आतंकियों के याद में आँसू वहा रहें हैं। कारण और कुछ नही है कांग्रेस को लग रहा है कि इस चुनाव में उसका दुर्गती होने बाला है रायवरेली और वरेली सीट बचाना काँग्रेस के लिये मुसकिल हो रहा है। वैसे भी अब काँग्रेस नेता के नाम पर बचे ही कितने है मोहम्मद अजहरउद्दीन जिसने अपने कारनामों से क्रीकेट का ही नही हिन्दुस्तान के सर पर कंलक लगा दिया, पप्पु यादव जो जेल से सीधे चुनाव मैदान में उतरे हैं, साधु यादव इनके कारनामें के वारे में चर्चा करना हो तो बिहार चले जाइये वहाँ की जनता दौरा-दौरा कर मारेगी, आनन्द मोहन अब इस सभी नेताओं के रहते हुये काँग्रेस तो कंधार जैसा वेसिर - पैर का मुद्दा ही उठायेगा। वैसे भी काग्रेस में स्टार प्रचार तो सिर्फ तीन बचे हैं 1. सोनिया गाँधी, 2 राहुल गाँधी और 3 मिडीय। आतंकवाद के खात्में के नाम पर काग्रेस ने पुरे पाँच साल में किया क्या सिर्फ शिवराज पाटिल को हटाया। अफजल को फांसी देने के नाम पर कांग्रेस के ही नेता दंगा होने की बात कह रहें हैं। कांग्रेस के नेता अगर कांधार मामले को उठा कर यह समझ रहें हैं कि जनता मुर्ख हैं और उनके पाँच साल के कुशासन को माँफ करके काधार मामले के धरियाली आँसु पर काँग्रेस को वेट दे देगा तो काँग्रेस का यह भुल है जनता अब जागरुक हो चुका है और अपना भला बुरा समझने लगा है।
14 April 2009
चंद पक्तिंयाँ
ये बेरूखी किस काम की ?
जो निगाहों से निगाहे मिलने से डरते हो।
खुदा भी उसपे मरता है,
जो अट्टूट रिस्तो की इबादत करता है।।
08 April 2009
एक ब्लॉगर मीट : प्रमेन्द्र प्रताप सिंह (महाशक्ति) से जबलपुर प्रवास के दौरान
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह अपने शहर के निवासी ताराचंद जी (जो बर्तमान में हरिभूमि समाचार पत्र जबलपुर में कार्यरत है) के साथ मेरे निवास स्थान पर ठीक १२ बजे पहुँच गए . ब्लागिंग के सन्दर्भ में और वरिष्ठ ब्लागरो के बारे में काफी समय तक हम दोनों एक दूसरे से बातचीत करते रहे . उन्होंने बताया कि इलाहाबाद में उनके घर के समीप ज्ञान जी (मानसिक हलचल) का निवास स्थान है . उनसे काफी देर तक महाशक्ति ब्लॉग और उससे जुड़े ब्लॉगर नीशूजी (बर्तमान में दिल्ली में} और ताराचंद और अन्य जुड़े सहयोगी ब्लागरो के सम्बन्ध में चर्चा होती रही और यह भी विचार किया कि सार्थक ब्लागिंग हो और हम इसमें क्या सहयोग कर सकते है आदि आदि बातो पर हमने विचार किया . करीब पॉँच घंटे कब गुजर गए पता ही नहीं चला .
उसी दिन समीर जी पुस्तक बिखरे मोती के अंतरिम विमोचन के अवसर पर प्रेमेन्द्र प्रताप जी से फिर रात्री में दूसरी मुलाकात हुई . प्रेमेन्द्र जी सात तारीख को दर्शनीय भेडाघाट प्रपात देखने गए और उन्होंने भेडाघाट प्रपात की जमकर तारीफ की और यहाँ के ब्लागरो की उन्होंने जमकर तारीफ भी की . उन्हें जबलपुर शहर और यहाँ के निवासियो का व्यवहार बहुत ही पसंद आया है और फिर से जबलपुर आने का वादा भी किया है . प्रेमेन्द्र जी निहायत व्यवहार कुशल संस्कारवान उत्साही ब्लॉगर है और ब्लागिंग के क्षेत्र में कुछ नया कर गुजरना चाहते है और बेहद उर्जावान नवयुवक है . उनसे पहली बार मुलाकात कर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मै किसी सुपरिचित से मुलाकात कर रहा हूँ . यह सच है कि ब्लागिंग के माध्यम से आपस में भाई चारा और सम्बन्ध स्थापित होते है.
04 April 2009
संगम जबलपुर में होगा
क्या पूछा आपने हम सब में कौन कौन होंगे ...?
"अरे भाई हम सब यानी हम सब हाँ जी हम सब "
"बाहर से .....?"
जी बाहर से आने वाले हैं ........... महाशक्ति जिसका साफ़ अर्थ है हम सब ।
जो भी होगा कल देर रात बांचियेगा तब तक कुछ सोचने दीजिए ।
मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं के फैसले के खिलाफ अपील पर निर्णय
इलाहाबाद उच्च न्यायायल के न्यायमूर्ति श्री शंभूनाथ श्रीवास्तव के ऐतिहासिक फैसले कि आबादी व ताकत के हिसाब से मुस्लिम अल्पसंख्यक उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक नही फैसले के खिलाफ राज्य सरकार व अन्य की अपीलों पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। न्यायालय के समक्ष बहस की गयी कि याचिका में अल्पसंख्यक विद्यालय की मान्यता व धांधली बरतने की शिकायत की। इसमें जांच की मांग की गयी थी लेकिन न्यायालय ने याचिका के मुद्दे से हटकर मुस्लिम के अल्पसंख्यक होने या न होने के मुद्दे पर फैसला दिया है। इस तकनीकी बहस के अलावा निर्णय के पक्ष में कोई तर्क नहीं दिया गया। हालांकि उ. प्र. अधिवक्ता समन्वय समिति की तरफ से अधिवक्ता भूपेन्द्र नाथ सिंह ने अर्जी दाखिल कर प्रकरण की गम्भीरता को देखते हुए वृहद पीठ के हवाले करने की मांग की है। इस अर्जी की सुनवाई 6 अप्रैल को होगी। श्री बी.एन. सिंह का कहना है कि उन्हें भी सुनने का अवसर दिया जाय।
उ. प्र. सरकार, अल्पसंख्यक आयोग, अंजुमन मदरसा नुरूल इस्लाम दोहरा कलां सहित दर्जनों विशेष अपीलों की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस.आर. आलम तथा न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की खण्डपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति एस.एन. श्रीवास्तव ने अपने फैसले में कहा है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी व ताकत के हिसाब से अल्पसंख्यक नहीं माने जा सकते। साथ ही संविधान सभा ने 5 फीसदी आबादी वाले ग्रुप को ही अल्पसंख्य घोषित करने की सहमति दी थी। उ. प्र. में मुस्लिमों की आबादी एक चौथाई है। जिसमें 2001 की जनगणना को देखा जाय तो तीन फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है। जबकि हिन्दुओं की आबादी 9 फीसदी घटी है। कई ऐसे जिले है जहां मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से अधिक है। संसद व विधान सभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है। एकलपीठ के निर्णय में कहा गया है कि हिन्दुओं के 100 सम्प्रदायों को अलग करके देखा जाय तो मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है। एकल पीठ ने भारत सरकार को कानून में संशोधन का निर्देश दिया था। अपील में निर्णय पर रोक लगी हुई है अब फैसला सुरक्षित हो गया है।
चुनावी माहौल में अनचाहे समय में आये इस फैसले की भनक मीडिया को नही लग सकी, अन्यथा मीडिया के भइयो और खास़ कर उनकी कुछ बहनो के दिलो पर सॉंप लोट गया होता। (जैसा पिछली बार हुआ था, जानने के लिये नीचे के सम्बन्धित आलेख देखिए) कुछ फैसले के विरोध में कुछ पत्रकार ऐसे कोमा में चले गये कि दोबारा टीवी पर नज़र ही नही आये। वैसे ही चिट्ठाकारी से सम्बन्धित ज्यादातर पत्रकार टीवी ही क्या समाचार पत्रों पर भी नही ही आते होगे :) । चुनावी महौल को देखते हुये, आने वाले 6 अप्रेल को चुनाव के साथ-साथ अब मीडिया के नुमाइंदो की निगॉंहे अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के भावी फैसले पर होगी। डिवीजन बेंच के स्वरूप को देखते हुये शायद ही अब मीडिया न्यायालय और न्यायमूर्तियों पर कोई अक्षेप होगा। जैसा कि पिछली बार सेक्यूलर मीडिया के चटुकार पत्रकारों ने किया था।
इस लेख पर सम्बन्धित के पूर्व आलेख -
02 April 2009
उदास मन
कहता है मन उदास,
क्यूँ हो प्रिय तुम उदास?
आशाओं के दीप जला कर,
करो सभी सपने साकार।।
दुनिया का मर्म समझते हो,
पर तुम क्यो बहकते हो ?
तुम में ऐसी शक्ति है,
जो पर्वत को भी तोड़ सकती है।।
अपनो को पहचानों,
क्योकि वो अपने है।
इस दुनिया के रंग निराले,
बन जाते है बेगाने भी अपने।।
रिश्ते रक्त के ही नही होते,
रिश्ते हृदयों से बनते है।
अंजाने किसी मोड़ पर कोई,
अपनो से ज्यादा अपना हो जाता है।।
मत करो उदास अपने मन को,
बढ़ो सदा अपने सत्य पथ पर।
कठिन डगर होगी पर,
मिलेगा कोई तुझको तेरा हितकर।।