शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 4
कदम जवानी धरा भगत ने,
दादा, दादी, माँ, चाची ने,
कहा सभी ने मिल इक स्वर में,
बाँधो इसको अब परिणय में .
घर में पहले बात छिड़ी थी,
गली गाँव फिर घूम चली थी .
यौवन में पग रखता जीवन,
मधुर उमंग से खिलता तन मन .
मंद पवन जब मधु रस भरता,
दर्पण यौवन रस निहारता .
तन मन कलियाँ मादक खिलतीं,
प्रेम लहर जब लह लह चलती .
शबनम जब आहें भरती है,
खुशबू भीनी सी उठती है .
लेते अरमाँ जब अंगड़ाई,
प्रीत वदन दिल में शहनाई .
फूल करें जब दिल मतवाला,
प्रेम सुधा का छलके प्याला .
गान बसंती हृदय सुनाता,
तन मन को आह्लादित करता .
झन झन कर झंकार हृदय में,
पायल सी खनकार हृदय में .
खन - खन खनकें चूड़ी कंगन,
तन मन में उपजे प्रीत अगन .
उद्दाम प्रेम की सहज राह,
सुवास कुसुम नैसर्गिक चाह .
रूप आलिंगन मधु उल्लास,
नव यौवना की बाँह विलास .
यौवन देखे बस सुंदरता,
जगती में बिखरी मादकता .
प्रेम पींग ले काम हिलोरें,
छोड़ें मनसिज बाण छिछोरे . (मनसिज = मदन)
बात भगत जब पड़ी कान में,
बांध रहे परिणय बंधन में .
खिन्न हुआ, यह कर्म नही है,
शादी मेरा धर्म नही है .
गुलाम देश है भारत मेरा,
कर्तव्य पुकार रहा मेरा .
माता मेरी जब बंदी हो,
न्याय व्यवस्था जब अंधी हो .
हथकड़ियाँ हों जब हाथों में,
बेड़ी जकड़ी जब पाँवों में .
बोल मुखर जब नही फूटते,
पथ सच्चों को नही सूझते .
बहनों का सम्मान न होता,
अपमान जहाँ पौरुष होता .
प्रतिकार शक्ति छीनी जाती,
सच्चाई धिक्कारी जाती .
आँसू भय से नही टपकते,
हाय दीन की नही समझते .
आलोक जहाँ छीना जाता,
अभिमान जहाँ रौंदा जाता .
सिंदूर जहाँ मिटाये जाते,
दीपक जहाँ बुझाये जाते .
दुर्दिन को जब देश झेलता,
बढ़ी दरिद्रता नित्य देखता .
प्रकृति संपदा भारत खोता,
दुर्भिक्ष के दिन रोज सहता .
आह, कराहें सुनी न जातीं,
पीड़ा, आँख से बह न पाती
पराधीनता श्राप बड़ा है,
दूजा कोई न पाप बड़ा है .
देश गुलामी में जकड़ा है,
जैसे गर्दन को पकड़ा है .
कर्तव्य सर्वप्रथम निभाना,
देश को आजादी दिलाना .
शादी की अब बात न करना,
परिणय का संवाद न करना .
देश गुलामी में जब तक है,
एक मृत्यु को मुझ पर हक है .
कोई नही बन सकती पत्नी,
मौत सिर्फ हो सकती पत्नी .
कवि कुलवंत सिंह
No comments:
Post a Comment