शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 6
नियति ने की थी घड़ी जो नियत,
कण कण जिसके लिये था सतत .
निशि दिन देखते कब से राह,
अरुण उदय होता नित ले चाह .
चंद्र किरण फिर, लगे चमकने,
नभ में तारे, लगें दमकने .
महक कब भरेगी फिर से पवन ?
आँचल फिर कब खिलेंगे चमन ?
उस क्षण को था बेचैन सागर
उस पल को था बेताब अंबर .
सुरभि मंजरी फिर से चाहे,
कल कल सरिता बहना चाहे .
भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने,
पूर्ण विश्व को जागृत करने .
सत्ता को झकझोर डालने,
सुप्त प्राणों में जान डालने .
युग युग का संदेश सुनाने,
जन जन को विश्वास दिलाने .
सूखे दीपों में घृत डालने,
हृदयों में अंगार बाँटने .
देश - भक्ति की धार बहाने,
नयी विभा की चमक जगाने .
जड़ता में चेतनता लाने,
किरणों को आलोक दिलाने .
नस नस में लावा दौड़ाने,
रोम रोम ज्वाला भड़काने .
अवनत भाल अभिमान दिलाने,
झुके गगन का शीश उठाने .
सेंट्रल असेंबली सभागार,
दो बम फोड़े लगातार .
मकसद तीनों काल हिलाना,
नहीं किसी की जान को लेना .
इंकलाब के नारे लगाये,
बिना अपनी पहचान छुपाये .
डटे रहे वह उसी जगह पर,
खुश थे अपनी गिरफ्तारी पर .
भारत भू ने किया अभिसार,
अंबर को फिर मिला विस्तार .
विभा गर्व से झूम रही थी,
दबी आग फिर मचल उठी थी .
जन जन में विश्वास था लौटा,
अभी अंत सत्ता का होगा .
सृष्टि कर रही अमर श्रृंगार
अखिल विश्व का बना सुकुमार .
भारत माँ का सच्चा सपूत,
हर माँ का वह बन गया पूत .
संदेश सुनाने ईश - दूत,
आया था बन कर वीर पूत .
सबकी आँखों का तारा था,
देश - भक्ति का वह नारा था .
जन जन के दिल को प्यारा था,
छटने लगा अब अंधियारा था .
गूँज उठा घर घर भगत सिंह,
राष्ट्र भक्ति प्रतीक भगत सिंह .
सागर का गर्जन भगत सिंह,
सृष्टि का श्रृंगार भगत सिंह .
जनता का विश्वास भगत सिंह,
वीरों का उल्लास भगत सिंह .
प्रलय का आधार भगत सिंह,
कण कण में साकार भगत सिंह .
मूकों की चिंघाड़ भगत सिंह,
युगयुग की हुंकार भगत सिंह .
रुदन का प्रतिकार भगत सिंह,
शक्ति का अवतार भगत सिंह .
अरुण का आलोक भगत सिंह,
किरणों का प्रकाश भगत सिंह .
अंगारों का ताप भगत सिंह,
भारत का सरताज भगत सिंह .
युवकों का आदर्श भगत सिंह,
हृदयों का सम्राट भगत सिंह .
हर कोख की चाहत भगत सिंह,
शहादत की मिसाल भगत सिंह .
कवि कुलवंत सिंह
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