जिन्दगी के हर मोड़ में,
तन्हाई ने पकड़ रखा है।
इश्क प्यार और मोहब्बत के,
बुखार ने मुझको जकड़ रखा है।
न किसी वैद्य की दवा,
न किसी मौलबी की दुवा।
मर्ज पर काम करती है,
दिलबर का दीदार,
हजार रोग ठीक करता है।
परदे के ओट के सहारे,
एक झलक पाने को बेताब हूँ,
जमाने के दर्द को झेल कर,
किसी रांझा की हीर बनने को तैयार हूँ।
1 comment:
nice poem. lekin dekh lena ki aapka ranjha, ranjha hi hai ..;)
-tarun
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