""तमाम पुरुषो के लिए अपनी स्त्री के सिवा अन्य सभी स्त्री माता के समान
होनी चाहिए , जब मै अपने आस-पास नजर करता हु और जिसे आप "स्त्रीसन्मान"
कहते है वो देखता हू तो उसे देखकर मेरा आत्मा घृणा से भर जाता है ! जब तक
आप स्त्रीपुरूष मे भेद के प्रश्नको लक्ष मे लेना छोड देके सर्वसामान्य
मानवता की भूमिका पर मिलना नहीं सिखते तब तक आपका स्त्री समाज सच्चा विकास
नहीं करेगा , वहा तक वो खिलौने से विशेष कुछ नही ! लग्न-विच्छेद या तलाक का
कारण ये ही सब है !!
आपका पुरुष-वर्ग नीचे झुक के कुर्सी देता है और
दूसरे ही पल वो उसके रुप की प्रशंसा करने लगता है और कहता है,"ओह मैडम
,तुम्हारे नैन कितने सुन्दर है ! "-ऐसा करने का आपको क्या अधिकार है ?
पुरूष इतना आगे बढने की धृष्ठता कैसे कर सकता है ? और आप स्त्री-वर्ग ऐसी
छुट कैसे दे सकते है ?
ऐसी घटना मानवता के अधम पक्ष को उत्तेजना देता है , उद्दात आदर्शो को ये पोषता नहीं. "-----स्वामी विवेकानन्द
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