20 April 2008

जबलपुर का आभास पाकिस्तान में छा गया




संतुलित शिला



धुआं धार
बावरे फकीरा के गायक "आभास जोशी" के पाकिस्तान के संगीत प्रेमियों ने हाथों हाथ लिया , अलका याग्निक,कुमार शानू, और जबलपुर के लाड़ले आभास ने 19/04/08 को करांची में एक रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया। आभास के पिता श्री रविन्द्र जोशी एवं उनकी वयोवृद्ध मातु श्री पुष्पा जोशी आभास की इस उड़ान को देख कर बेहद अभिभूत हैं।जबलपुर का यह नन्हाँ बच्चा देखते-देखते इतना बड़ा हो जाएगा किसी ने कभी सोचा न था । आभास को पसंद करने वाले लोगों की सूची बेहद लम्बी है।

आभास तुम् धुआं धार की तरह गाओ........किंतु संतुलन मत खोना ........जबलपुर से रिश्ते का संतुलन जबलपुरिया होने का एहसास है इसे मत भूलना ।

5 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मतलब ये कि अब गैर उत्पादक चीजों से संस्कारधानी की शान बढ़ा करेगी. जबलपुर की शिनाख्त और लाज बचाने के लिए अब आभाष जोशी बचा है. आपने अपने तईं उन लोगों का ज़िक्र किया है जो जबलपुर की शान और प्रतिष्ठा थे. लेकिन कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि आप भी समय के दबाव में बहे चले जा रहे हैं. नर्मदा की लहर की आपको चिंता ही नहीं.
कम से कम चौंसठ जोगिनी मन्दिर का जिक्र ही कर देते कभी. स्त्रियों के जितने विविध रूप आज वहाँ जिंदा हैं उतने तो खजुराहो में भी नहीं हैं दोस्त. वह पूरे विश्व के लिए भारतीय नारी के अध्ययन का केन्द्र बन सकता है. न्रितत्वशास्त्रियों के लिए भी. मगर अफ़सोस. मुझे शर्म आने लगी है कि जबलपुर में मेरी ससुराल है.

सुभद्रा कुमारी चौहान का नगर आज किस तरह दहशतगर्दी और कुसंस्कारधानी में तब्दील हो गया है, इसकी आप चर्चा तक नहीं करते. इसीको कहते हैं- आँख के अंधे नाम नयनसुख! आभाष जोशी आपको मुबारक हो!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

..,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,.और तुम बिल्लौरे हो???????????? तुम्हें मालूम है किकिस तरह गिरेश बिल्लौरे कटनी रेलवे स्टेशन पर भूख-प्यास के मारे प्लेटफॉर्म पर ही मर गया था. बाद में उसको हिन्दी कविता का सबसे प्रतिष्ठित भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (उस समय, अब तो लोग कवियों का नाम भी नहीं जानते कि किसे मिला है) मिला था (मरणोपरांत, जो किसी परमवीर चक्र से कम नहीं है). अगली बार उसकी वह कविता ढूंढकर अपने ब्लॉग पर चढाओ.

Pramendra Pratap Singh said...

विजय शंकर जी

मै आपकी भावनाओं की कर्द्र करता हूँ। हर व्‍यक्ति के नाम के साथ उस जगह का नाम जुड़ा होता है। आपकी बात पूरी तरह जायज है किन्‍तु मै इतना ही कहना चाहूँगा कि आज इलाहाबाद का नाम काफी हद तक लोग हरिवंश राय बच्‍चन और अमिताभ के कारण जानते है। और भी बहुत सी महानतम हस्‍ती हुई है उनके योगदान को नही नकारा जा सकता है। आज अभास उग रहा है तो कल और भी सूरज उगेगें।

बस समय है इनके उत्‍साह वर्धन का।

Pramendra Pratap Singh said...

विजय शंकर जी

मै आपकी भावनाओं की कर्द्र करता हूँ। हर व्‍यक्ति के नाम के साथ उस जगह का नाम जुड़ा होता है। आपकी बात पूरी तरह जायज है किन्‍तु मै इतना ही कहना चाहूँगा कि आज इलाहाबाद का नाम काफी हद तक लोग हरिवंश राय बच्‍चन और अमिताभ के कारण जानते है। और भी बहुत सी महानतम हस्‍ती हुई है उनके योगदान को नही नकारा जा सकता है। आज अभास उग रहा है तो कल और भी सूरज उगेगें।

बस समय है इनके उत्‍साह वर्धन का।

Girish Kumar Billore said...

विजयशंकर जी
सादर प्रणाम
मेरे अग्रज शरद बिल्लोरे की यादें ताज़ा कराने आपका आभार आप को मेरे ब्लॉग'स के बारे में जानकारी कम ही है
सिर्फ़ और सिर्फ़ आभास के कारण मैंने अन्तरज़ाल का प्रयोग आरंभ किया . आभास ने वो कर दिया जो मैं क्या कोई भी सहजता से नहीं करता. जब वो १६ वर्ष का था तब उसने मेरा एलबम 'बावरे-फकीरा'गाया ये वही एलबम है जो पोलियो ग्रस्त बच्चों के लिए मदद जुटाएगा.
अर्ध-सत्य ही उत्तेजना की वज़ह होते हैं....आप को विनम्र सलाह है की हाथी को पूरा देखने की आदत डालिए. आपको मालूम नहीं इस एलबम के सभी कलाकारों ने संस्कार वश नि:शुल्क सेवाएं दीं .
आपके सहज विचारों के लिए आपका आभारी हूँ ......