26 May 2008
कर्नाटक विधानसभा की दलगत स्थिति- सिरमौर बनी भाजपा
दल-------- ---वर्ष 2008--------2004
भाजपा------ ---110---------79
कांग्रेस----- ----80----------65
जेडी-एस--- ----28----------58
स्वतंत्र उम्मीदवार --6-----------13
जद-यु------ ---0----------5
सीपीआई(एम)- --0-----------1
आरपीआई--- ---0-----------1
केसीवीपी---- --0-----------1
केएनपी----- --0-----------1
24 May 2008
क्रोध-अंहकार
कभी कभी अच्छा पढ़ने और सुनने का लाभ मिल ही जाता है। एक दिन दीदी मॉं साध्वी ऋताम्भरा का प्रवचन सुन रहा था तो उस प्रवचन में उन्होने एक प्रेरक प्रसंग सुनाया वह आपसे सामने प्रस्तुत करता हूँ-
एक बार एक सेठ पूरे एक वर्ष तक चारों धाम की यात्रा करके आया, और उसने पूरे गॉंव में अपनी एक वर्ष की उपलब्धी का बखान करने के लिये प्रीति भोज का आयोजन किया। सेठ की एक वर्ष की उपलब्धी थी कि वह अपने अंदर से क्रोध-अंहकार को अपने अंदर से बाहर चारों धाम में ही त्याग आये थे। सेठ का एक नौकर था वह बड़ा ही बुद्धिमान था, भोज के आयोजन से तो वह जान गया था कि सेठ अभी अंहकार से मुक्त नही हुआ है किन्तु अभी उसकी क्रोध की परीक्षा लेनी बाकी थी। उसने भरे समाज में सेठ से पूछा कि सेठ जी इस बार आपने क्या क्या छोड़ कर आये है ? सेठ जी ने बड़े उत्साह से कहा - क्रोध-अंहकार त्याग कर आया हूं। फिर कुछ देर बाद नौकर ने वही प्रश्न दोबारा किया और सेठ जी का उत्तर वही था अन्तोगत्वा एक बार प्रश्न पूछने पर सेठ को अपने आपे से बाहर हो गया और नौकर से बोला - दो टके का नौकर, मेरी दिया खाता है, और मेरा ही मजाक कर रहा है। बस इतनी ही देर थी कि नौकर ने भरे समाज में सेठ जी के क्रोध-अंहकार त्याग की पोल खोल कर रख दी। सेठ भरे समाज में अपनी लज्जित चेहरा लेकर रह गया। इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि दिखावे से ज्यादा कर्त्तव्य बोध पर ध्यान देना चाहिए।
प्रेरक प्रंसक
22 May 2008
उस चिडि़या को कहते राज ठाकरें
गांधी तिलक नेता जी कहे,
हम सब है भारतीय।
आज का जन्मा यह राज ठाकरे,
बोले मै हूँ महाराष्ट्रीय।।
मुझको भी यह आज पता चला
कि मौका परस्त किस चिडि़यॉ का नाम,
उस चिडि़या को कहते राज ठाकरें।।
कवि - सारस्वत श्रीवास्तव
प्रयाग संगीत समिति में बासुरी के विद्यार्थी है
17 May 2008
राज्यपाल
भारतीय संविधान के अनुसार भारत के किसी राज्य के राज्यपाल की निम्न अधिकार एवं कर्तव्य है-
153. राज्यों के राज्यपाल- प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल होगा : परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात ही एक व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल नियुक्त किये जाने से निवारित नहीं करेगी ।
154. राज्य की कार्यपालिका शक्ति- (1) राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा ।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात
(क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी के प्रदान किये गये कृत्य राज्यपाल को अंतरित करने वाली नहीं समझी जायेगी, या
(ख) राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान मंडल को निवारित नहीं करेगी ।
155. राज्यपाल की नियुक्ति- राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा ।
156. राज्यपाल की पदावधि- (1) राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा । (2) राज्यपाल, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ।(3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन रहते हुये राज्यपाल अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा ।
परन्तु राज्यपाल, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
157. राज्यपाल नियुक्त होने के लिये अर्हताएं - कोई व्यक्ति राज्यपाल होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है और पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है।
158. (1) राज्यपाल संसद के किसी सदन या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या ऐसे किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो यह समझा जायेगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
(2) राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा ।
(3) राज्यपाल, बिना किराया दिये, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं , हकदार होगा ।
(3d)जहां एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है वहां उस राज्यपाल को संदेय उपलब्धियां और भत्ते उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में आवंटित किये जाएंगे जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे ।
(4) राज्यपाल की उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जायेगे ।
159- राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान- प्रत्येक राज्यपाल और व्यक्ति जो राज्यपाल कें कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले उस राज्य के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष लिखित प्रारूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा ।
160- कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन- राष्ट्रपति ऐसी किसी आकस्मिकता में, जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिये ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है।
161- क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी ।
162. राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार- इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों पर होगा जिनके संबंध में उस राज्य के विधान मंडल को विधि बनाने की शक्ति है:
परन्तु जिस विषय के संबंध में राज्य के विधान-मंडल और संसद को विधि बनाने की शक्ति है उसमें राज्य की कार्यपालिका शक्ति इस संविधान द्वारा, या संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा, संघ या उसके प्राधिकारों को अभिव्यक्त रूप से प्रदत्त कार्यपालिका शक्ति के अधीन और परिसीमित होगी ।
163- राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिये मंत्रि परिषद:
(1) जिन बातों में इस संविधान द्वारा या उसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिये एक मंत्रि परिषद होगी जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा ।
(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं जिसके संबंध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधि मान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जायेगी कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिये था या नहीं ।
(3) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जायेगी क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी , और यदि दी तो क्या दी।
164. मंत्रियों के बारें में अन्य उपबन्ध- (1) मंख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करेंगे ।
परन्तु बिहार,मध्यप्रदेश और उड़ीसा राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भारसाधक होगा ।
(2) मंत्रि परिषद की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी ।
(3) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये गये प्रारूपों के अनुसार उसको पद ओर गोपनीयता की शपथ दिलाएगा ।
(4) कोई मंत्री, जो निरंतर छह मास तक की किसी अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा ।
(5) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होगे जो उस राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा समय समय पर अवधारित करे और जब तक उस राज्य का विधानमंडल इस प्रकार अवधारित नहीं करता है तब तक ऐसे होगे जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हें ।
165- राज्य का महाधिवक्ता-(1) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये अर्हित किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा ।
(2) महाधिवक्ता का यह कर्तव्य होगा कि वह उस राज्य की सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे जो राज्यपाल उनको समय समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवत्त्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गये हों ।
(3) महाधिवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राज्यपाल अवधारित करे ।
166. राज्य सरकार के कार्य का संचालन-(1) किसी राज्य की सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राज्यपाल के नाम से की हुई कही जायेगी ।
(2) राज्यपाल के नाम से किये गये और निष्पादित आदेशों और अन्य लिखित को ऐसी रीति से अधिप्रमाणित किया जायेगा जो राज्यपाल द्वारा बनाए जाने वाले नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए और इस प्रकार अधिप्रमाणित आदेश या लिखत की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जायेगी कि वह राज्यपाल द्वारा किया गया निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है।
(3) राज्यपाल, राज्य सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किये जाने के लिये और जहां तक वह कार्य ऐसा नहीं है जिसके विषय में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह विवेकानुसार कार्य करे वहां तक मंत्रियों में उक्त कार्य के आवंटन के लिये नियम बनाएगा ।
167. राज्यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य- प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह-
(क) राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रि परिषद के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करे,
(ख) राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राज्यपाल मांगे वह दे, और
(ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रि परिषद ने विचार नहीं किया है राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किये जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिये रखे ।
168. राज्यों के विधान मंडलों का गठन - (1) प्रत्येक राजय के लिये एक विधान मंडल होगा जो राज्यपाल और-(क)बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश राज्यों में एक सदनों से, (ख) अन्य राज्यों में एक सदन से मिलकर बनेगा ।
(2) जहां किसी राज्य के विधान मंडल के दो सदन हैं वहां एक का नाम विधान परिषद और दूसरे का नाम विधान सभा होगा और जहां केवल एक सदन है वहां उसका नाम विधान सभा होगा ।
169.राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन- (1) अनुच्छेद 168 में किसी बात के होते हुये भी संसद विधि द्वारा किसी विधान परिषद वाले राज्य में विधान परिषद के उत्सादन के लिये या ऐसे राज्य में जिसमें विधान परिषद नहीं है विधान परिषद के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी यदि उस राज्य की विधान सभा ने इस आशय का संकल्प विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है।
(2) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिये आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिमामिक उपबंध भी अंतविर्षट हो सकेंगे जिन्हें संसद आवश्यक समझे ।
(3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रायोजनों के लिये इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जायेगी ।
170. विधान सभाओं की संरचना - (1) अनुच्छेद 333 के अधीन रहते हुये, प्रत्येक राज्य की विधान सभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाच्न क्षेत्र से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुये पांच सौ से अनधिक और साठ से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी ।
(2) खंड (1) के प्रयोजनों के लिये, प्रत्येक राज्य की प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में ऐसी रीति से विभाजित किया जायेगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनता का उसको आवंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो ।
स्पष्टीकरण- इस खंड में ''जनसंख्या'' पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके आंकड़े प्रकाशित हो गये हैं ।
परन्तु इस स्प्ष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गये हैं , निर्देश का, जब तक सन् 2000 के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हें, यह अर्थ लगाया जायेगा कि वह 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश हैं ।
(3) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का उसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन: समायोजन किया जायेगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे ।
परन्तु ऐसे पुन: समायोजन से विधान सभा में प्रतिनिधत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान विधान सभा का विघटन नहीं हो जाता है ।
परन्तु यह और कि ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक विधान सभा के लिये कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान हैं ।
परन्तु यह ओर भी कि जब तक सन् 2000 के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या का और इस खंड के अधीन ऐसे राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा ।
171-विधान परिषदों की संरचना-(1) विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के (एक तिहाई) से अधिक नहीं होगी । परन्तु किसी राज्य की विधानपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में चालीस से कम नहीं होगी ।
(2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे जब तक किसी राज्य की विधान परिषद की संरचना खंड (3) में उपबंधित रीति से होगी ।
(3) किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या का-
(क) यथाशक्य निकटतम एक तिहाई भाग उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों और अन्य ऐसे स्थानीय प्राधिकारियों के, जो संसद विधि द्वारा विनिर्दिष्ट करे, सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा ।
(ख) यथाशक्य निकटतम बारहवां भाग उस राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा होगा, जो भारत के राजक्षेत्र में किसी विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वर्ष से स्नातक हैं या जिनके पास कम से कम तीन वर्षों से ऐसी अर्हताएं हें जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि या उसके अधीन ऐसे किसी विश्वविद्यालय के स्नातक की अर्हताओं के समतुल्य विहित की गई हों,
(ग) यथाशक्य निकटतम बारहवां भाग ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा जो राज्य के भीतर माध्यमिक पाठशालाओं से अनिम्न स्तर की ऐसी शिक्षा संस्थाओं में, जो संसद द्वारा बनार्इ्र गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जायें, पढ़ाने के काम से कम से कम तीन वर्ष से लगे हुयें हैं ।
(घ) यथाशक्य निकटतम एक तिहाई भाग राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से निर्वाचित होगा जो विधान सभा के सदस्य नहीं हैं ।
(ड.) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खंड (5) के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किये जायेगे।
(4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग)के अधीन निर्वाचित होने वाले सदस्य ऐसे प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में चुने जायेंगे, जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किये जाएं तथा उक्त उपखंडों के और उक्त खंड के उपखंड (घ) के अधीन निर्वाचन आनुपातिक प्रातिनिधत्व पध्दति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होंगे ।
(5) राज्यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ड.) के अधीन नाम निर्देशित किये जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात-
साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा ।
172- राज्यों के विधान मंडलो की अवधि- (1) प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिये नियत तारीख से (पांच वर्ष)तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और (पांच वर्ष) की उक्त अवधि समाप्ति का परिणाम विधान सभा का विघटन होगा ।
परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात कीउदघोषणा प्रवर्तन में है, तब संसद विधि द्वारा ऐसी अवधि के लिये बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उदघोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात किसी दशा में उसका विस्तार छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा ।
(2) राज्य की विधान परिषद का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक तिहाई सदस्य संसद द्वारा विधि द्वारा इस समय निमित्त बनाए गये उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जायेंगे ।
173- राज्य के विधान मंडल की सदस्यता के लिये अर्हताएं- कोई व्यक्ति किसी राज्य के विधान मंडल के लिये किसी स्थान को भरने के लिये चुने जाने के लिये अर्हित तभी होगा जब-(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रायोजन के लिये दिये गये प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।
(ख) वह विधान सभा के स्थान के लिये कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का और विधान परिषद के स्थान के लिये कम से कम तीस वर्ष की आयु का है, और,
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं है जो इस निमित्त संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जायें ।
174- राज्य के विधान मंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन- (1) राज्यपाल समय समय पर राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिये आहूत करेगा किन्तु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक सत्र की प्रथम बैठक के लिये नियत तारीख के बीच छह मास का अन्तर नहीं होगा ।
(2) राज्यपाल समय समय पर- (क) सदन या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा , (ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा ,
175 - सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार- (1) राज्यपाल, विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधान मंडल के किसी सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिये सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा ।
(2) राज्यपाल, राज्य के विधान मंडल में उस समय लंबित किसी विधेयक के सम्बन्ध में संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के विधान मंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिये अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा ।
176- राज्यपाल का विशेष अभिभाषण-(1) राज्यपाल, 40 (विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में) विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान मंडल को उसके आहवान के कारण बतायेगा ।
(2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिये समय नियत करने के लिये 41 उपबंध किया जायेगा ।
177- सदनों के बारें में मंत्रियों ओर महाधिवक्ता के अधिकार- प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में दोेंनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान मंडल की किसी समिति में , जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
14 May 2008
यह आतंकवाद के भूमंडलीय करण की लपटें हैं.जो तेल के कुओं के इर्दगिर्द से घूमतीं हुई जयपुर तलक आ गई ...!
मेरे हिसाब से तिजारत और सियासत दौनों ही जिम्मेदार हैं......इसके लिए............!
आप क्या सोचातें है...?
जयपुर में मजाज़ मैं और धमाके
जयपुर में मजाज़ मैं और धमाके
मैं मजाज़ के साथ सडकों पे टहल रहा था
तभी मजाज़ ने क्या खूब कहा:-
"मस्जिदों में मौलवी खुतबे सुनाते ही रहे
मंदिरों में बिरहमन श्लोक गाते ही रहे
एक न एक दर पर ज़बाने शौक़ घिसती ही रही
आदमियत जुल्म की चक्की में पिसती ही रही
रहबरी जारी रही पैगंबरी जारी रही
दीन के पर्दे में जंगे जरगरी जारी रही!"
हमने देखा " गुलाबी नगरी रक्तरंजित, 65 मरे
कल सुबह तक और भी खबरें आएंगी ।"
मजाज़ भाई
कल मैं दफ्तर जाते हुए अखबार पडूंगा ,
तब जब मैं अपना कल गढूँगा....?
कल तब जब कि मैं
तुम हम सब इंसानियत की दुहाई देते
जयपुर पर वक्तव्य देंगे .......!
तब उगेगी दर्द की लकीरें सीने में
घाव बनातीं आंखों के आँसू सुखातीं
न कोई हिन्दू न मुसलमान
न क्रिस्टी न गुलफाम
कोई नहीं मरेगा
मरेगी तो केवल इंसानियत।
और चंद बयानों की रेज़गारी डाल दी जाएगी
बिलखती रोती माँ की गोद में.....
मजाज़ ने एक लम्बी गहरी साँस ली और बोले :-
"मस्जिदों में मौलवी खुतबे सुनाते ही रहेंगे
मंदिरों में बिरहमन श्लोक गाते ही रहेगें ....!
अब तो हम सब का दिल तुम्हारी तरह यही चाहता है कि :
बढ के इस इन्द्रसभा का साज़-ओ-सामां फूंक दूं
इस का गुलशन फूंक दूं उसका शबिस्तां फूंक दूं
तख्त-ए-सुल्तां क्या मैं सारा क़स्र ए सुल्तां फूंक दूं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करू, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूं "
13 May 2008
चिदम्बरम जी अल्पसंख्यक का मतलब सिर्फ़ मुसलमान नहीं होता…
चिदम्बरम साहब के पिछले बजटों में “अल्पसंख्यक” (Minority) शब्द का उल्लेख बार-बार होता रहा है, लेकिन ताजा बजट में शर्म मिटते-मिटते अब अल्पसंख्यक का मतलब हो गया है सिर्फ़ “मुस्लिम”। कैसे? बताते हैं… 2004-05 के बजट में यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम को 50 करोड़ रुपये दिये थे, बजट में कहा गया था कि ये पैसा अल्पसंख्यक कल्याण, विशेषकर उनकी शिक्षा के लिये खर्च किया जायेगा (यानी कि उनके कल्याण और शिक्षा के लिये नेहरू, इन्दिरा और राजीव ने अब तक कुछ नहीं किया था), कुछ किया तो सिर्फ़ यूपीए ने। यूपीए के दूसरे बजट में कहा गया कि “अल्पसंख्यकों को देश की मुख्य धारा में लाना है…और उनका विकास करना है…” (इसका मतलब भी यही निकलता है कि 15 अगस्त 1947 से 28 फ़रवरी 2006 तक सारे अल्पसंख्यक सभी कांग्रेस सरकारों द्वारा, विकास से दूर ही रखे गये थे)। लड़कियों के लिये स्कूल, अल्पसंख्यक इलाकों में आंगनवाड़ियाँ, अल्पसंख्यक छात्रों को प्रायवेट कोचिंग की सुविधा जैसे कई “अल्पसंख्यक” कल्याण की विभिन्न योजनाओं का उल्लेख और ढिंढोरा था। अब देखिये, अगले बजट में चुपचाप और धीरे-धीरे “अल्पसंख्यक” का मतलब मुसलमान में बदल गया। अगले बजट में 200 करोड़ रुपये मौलाना आजाद शिक्षा फ़ाउंडेशन को दिये गये और 13 करोड़ रुपये उर्दू के विकास के लिये।
ताजा बजट (2008-09) तो खुल्लमखुल्ला “मुसलमानों” के फ़ायदे के लिये एक-सूत्रीय कार्यक्रम में बदल गया। बजट भाषण के पैराग्राफ़ 47 की हेडिंग है “अल्पसंख्यक”, मतलब क्या? अल्पसंख्यक मामलों के लिये बजट प्रावधान 500 करोड़ से बढ़ाकर 1000 करोड़ कर दिया गया, ताकि “सच्चर कमेटी” की सिफ़ारिशों पर तेजी से अमल किया जा सके (सच्चर कमेटी के लिये भी अल्पसंख्यक का अर्थ केवल और केवल मुसलमान ही था)। बजट की अन्य योजनाओं में, 90 अल्पसंख्यक बहुल जिलों (पढ़ें मुस्लिम) में विभिन्न क्षेत्रों के विकास के लिये 3780 करोड़ रुपये, प्री-मेट्रिक स्कॉलरशिप के लिये 80 करोड़ रुपये, मदरसों के आधुनिकीकरण के लिये 45 करोड़, मौलाना आजाद शिक्षा फ़ाउंडेशन को और 60 करोड़ रुपये, तथा सबसे खतरनाक बात यह कि अल्पसंख्यक बहुल इलाकों (इसे पढ़ें ‘मुस्लिम’) में खासतौर से सरकारी क्षेत्र बैंकों की 544 शाखायें (खामख्वाह… धंधा हो या ना हो) खोलना शामिल हैं, यहाँ खत्म नहीं हुआ है अभी… 2008-09 में अल्पसंख्यकों को केन्द्र की अर्ध-सरकारी सेनाओं में अधिक से अधिक नियुक्तियाँ देना भी इस बजट में शामिल है। जाहिर है कि यह सब सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमानों को फ़ायदा पहुँचाने के लिये किया गया, इसमें “अल्पसंख्यक” शब्द का कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी आदि बाकी सभी कांग्रेस के अनुसार “अल्पसंख्यक” की परिभाषा में नहीं आते। यह एक बेहद खतरनाक परम्परा शुरु की गई है और समाज को धर्म के आधार पर बाँटने के कई कदमों में से यह एक है… सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से भी ज्यादा खतरनाक।
लगभग हरेक भारतीय जानता है कि राजनेताओं की घोषणाओं के मंसूबे क्या होते हैं। सारी घोषणायें सिर्फ़ वोट के लिये होती हैं, चाहे इससे समाज कितने ही टुकड़ों में बँट जाये या कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हो जाये, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता है। “अल्पसंख्यक इलाकों” में बैंकों की विशेष शाखायें खोलने के क्या गम्भीर नतीजे हो सकते हैं सेंट्रल बैंक, अम्मापट्टी की इस घटना से सिद्ध हो जायेगा…
तमिलनाडु का एक जिला है पुदुकोट्टई, जिसका एक कस्बा है अम्मापट्टी। यहाँ की सेंट्रल बैंक की शाखा में कुछ मुसलमान युवकों ने बैंक के दो कर्मचारियों को ट्रांसफ़र करने की माँग की। शायद ये कर्मचारी उन मुसलमानों को “लोन देने और अन्य लाभ देने” में अडंगे लगा रहे थे। बैंक मैनेजर ने उनकी माँग सिरे से खारिज कर दी। उन मुसलमान युवकों ने मैनेजर को धमकी दी कि 15 अक्टूबर 2007 तक यदि इन कर्मचारियों का ट्रांसफ़र नहीं किया गया तो वे बैंक को “ताला” लगा देंगे (जी हाँ सही पढ़ा आपने, “ताला लगा देंगे” कहा)। घबराये हुए बैंक मैनेजर ने पुलिस और जिला प्रशासन को शिकायत की और पुलिस सुरक्षा की माँग की। अब देखिये भारत की कानून-व्यवस्था… स्थानीय तहसीलदार के नेतृत्व में “शांति बैठक” आयोजित की गई। सेंट्रल बैंक के जनरल मैनेजर वहाँ शांति से उपस्थित हुए, लेकिन वे मुस्लिम युवक तहसीलदार के दफ़्तर में नहीं आये। उन्होंने माँग की कि पुलिस और बैंक अधिकारी मस्जिद में “जमात” में आयें वहीं बात होगी। बेचारा, जनरल मैनेजर (जो कि किसी अन्य राज्य का था) “जमात” से चर्चा करने को तैयार हो गया, शर्त ये थी कि तहसीलदार, बैंक अधिकारी और जमात के पाँच सदस्य चर्चा करेंगे, लेकिन पाँच की जगह वहाँ सौ से अधिक मुसलमान इकठ्ठा थे। मैनेजर ने चुपचाप उनकी बात सुनी और कहा कि “वह बैंक जाकर उन कर्मचारियों का पक्ष सुनेंगे, उसके बाद नियमानुसार जो होगा वह किया जायेगा”, लेकिन भीड़ ने उनका घेराव कर दिया और उन कर्मचारियों का तत्काल लिखित में ट्रांसफ़र करने की माँग करने लगे। मैनेजर ने यह कहकर मना कर दिया कि ट्रांसफ़र करने के अधिकार उसके पास नहीं हैं। जनरल मैनेजर के बैंक पहुँचने से पहले ही कुछ युवाओं ने बैंक जाकर उसके शटर बन्द कर दिये और ताला लगा दिया, जबकि स्टाफ़ बैंक के अन्दर ही था। वहाँ उपस्थित पुलिस इंस्पेक्टर ने अपने DSP को खबर की, वे खुद आये और बैंक का ताला खोला।
लेकिन मुद्दा हल नहीं हुआ था, बल्कि और बिगड़ गया। मामले की रिपोर्ट एसपी को की गई, जो आधी रात को ताबड़तोड़ अम्मापट्टी पहुँचे और गुस्से में उन मुस्लिम युवकों से कहा कि “आप लोगों का यह काम गैरकानूनी है, जैसे आपने बैंक के कर्मचारियों को बन्द कर दिया है, वैसे ही यदि जमात के सदस्यों को बन्द करें तो आपको कैसा लगेगा?” इस बात पर एक नया मुद्दा भड़क गया कि एसपी ने जमात के खिलाफ़ ऐसा कैसे कहा? कलेक्टर को बीचबचाव करने आना पड़ा, लेकिन जमात की नई माँग थी कि उन कर्मचारियों के ट्रांसफ़र के साथ-साथ एसपी पर भी कार्रवाई होना चाहिये। जबकि बैंक कर्मचारियों की माँग थी कि हमलावरों को गिरफ़्तार किया जाये, वरना एक “नई परम्परा” शुरु हो जायेगी!!! यह सारा वाकया तमिल साप्ताहिक “तुगलक” में दिनांक 31.10.2007 को छप चुका है, यहाँ तक कि “जमात” ने भी इस घटना की पुष्टि की लेकिन विवाद की वजह नहीं बताई। इस समूचे मामले का और भी दुखद पहलू यह है कि किसी अन्य अखबार या पत्रिका ने इस खबर को छापने की “हिम्मत” नहीं दिखाई। रही बात राज्य शासन की तो वह भी उसी तरह चुप्पी साधे रहा जैसा कि सोनिया के सामने मनमोहन साधे रहते हैं या बुश के सामने मुशर्रफ़।
इस घटना के सबक हमारे लिये स्पष्ट हैं, यदि सरकार (कांग्रेस) किसी धर्म विशेष के लोगों के लिये खास उनके “इलाकों” में बैंक खोलती है, तो वह समुदाय (इसे “जमात” पढ़ें) अपनी मनमानी अवश्य करेगा। बैंक अपने नियम-कायदों से नहीं, बल्कि जमात के हुक्म के अनुसार लोन बाँटेंगी या कर्मचारियों के तबादले करेंगी। उन खास इलाकों में धर्म विशेष को सुविधा के नाम पर खोले गये “स्कूल”, आंगनवाड़ी, या बालवाड़ी केन्द्र का हश्र भी कुछ ऐसा ही होगा, जब प्राचार्य को धमकाकर नाजायज काम करवाये जायेंगे। हरेक शहर में एक या दो मोहल्ले ऐसे होते हैं जहाँ मुसलमानों का बाहुल्य होता है, उस मुहल्ले में कभी आयकर छापा नहीं पड़ता, कभी नल नहीं काटे जाते, कभी बिजली चोरी का केस नहीं बनता, कभी अतिक्रमण मुहिम नहीं चलाई जाती, खुलेआम सरकारी सम्पत्ति की मुफ़्तखोरी की जाती है और सरकारें (गुजरात को छोड़कर) पंगु बनकर देखती रहती हैं, सिर्फ़ वोट की खातिर नहीं, बल्कि सरकारों में गलत काम को ठीक करवाने का साहस ही नहीं होता। उससे भी खतरनाक बात यह होती है कि जब दूसरा अल्पसंख्यक समुदाय किसी अन्य अल्पसंख्यक समुदाय को इस प्रकार की “सुविधा” लेता हुआ देखेगा तो उसके मन में या तो गुस्सा आयेगा या निराशा। जी हाँ, चिदम्बरम साहब… आपकी सच्चर समिति और “विशेष बजटीय प्रावधान” कांग्रेस को मुसलमानों के वोट तो दिलवा सकते हैं, लेकिन समाज के बीच बढ़ती खाई को और चौड़ा भी करते जा रहे हैं, इसका आपको जरा भी खयाल नहीं है…
Suresh Chiplunkar
http://sureshchiplunkar.blogspot.com
सन्दर्भ – यह एस.गुरुमूर्ति के एक लेख का संकलन, सम्पादन और अनुवाद है।
12 May 2008
चुटकुले ही चुटकुले
दूसरा मित्र पहले मित्र से - उसके बाद का सपना मैंने देखा कि मैं तुम्हे चाट रहा था और तुम मुझे चाट रहे थे .
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एक पागल दूसरे पागल से - यार मुझे बिना दाँत के कुत्ते ने काट लिया है
दूसरा पागल पहले पागल से - यार सिम्पल सी बात है तुम बिना सुई के चौदह इंजेक्शन लगवा लो.
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पुत्र पिता से - पापा राम कौन थे ?
पापा गुस्से से - वेबकूफ़ तू पढ़ता क्या है तुझे इतना भी नही मालूम जा टेबल पर महाभारत पड़ी है उसे उठाकर ले आ मैं तुझे बताता हूँ कि राम कौन थे .
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एक महिला दूसरी महिला से - क्या तुम्हारी सास बीमार थी कैसे मर गई ?
दूसरी महिला पहली महिला से - दरअसल अतिम संस्कार के समानो मे पचास परसेंट की छूट चल रही थी सो मेरी सास ने उसी का फायदा उठाया और मर गई .
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दो दोस्त आपस मे बात कर रहे थे इतने मे एक छींक आ गई तो बोला मेरी पत्नी ने कहा की जब तुम्हे छींक आये तो तुम मेरे पास चले आना
दूसरा दोस्त बोला अभी तुम्हे छींक आई है तुम अपनी पत्नी के पास जाओ
तो पहला दोस्त बोला - पर मेरी पत्नी का देहांत हो गया है .
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दो पागल आम के पेड़ पर लटके हुए थे अचानक एक पागल नीचे गिर पड़ा
दूसरा पागल बोला - क्या हुआ क्या थक गए हो ?
पहला पागल बोला - अरे नही पक गया हूँ इसीलिए पककर गिर गया हूँ .
10 May 2008
उत्तर प्रदेश
Uttar Pradesh
- भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला प्रदेश उत्तर प्रदेश है।
- उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक लोक सभा व राज्य सभा के सदस्य चुने जाते है।
- उत्तर प्रदेश देश का सबसे अधिक जिलों वाला प्रदेश है।
- उत्तर प्रदेश में कुल 403 विधान सभा सीटे है।
- उत्तर प्रदेश में स्थित इलाहाबाद उच्च न्यायालय एशिया का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है।
- उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिला,देश का एक मात्र ऐसा जिला है जिसकी सीमाएं सर्व चार प्रदेशों को छूती है।
- यह देश को सर्वाधिक प्रधानमंत्री देने वाला प्रदेश है।
नही मिलेगा उड़न खटोला, बंगले की बात मत करना
आज खबर मिली की भारत के माननीय मुख्य न्यायधीश को महामहीम राष्ट्रपति जी की तरह विमान नही मिलेगा। क्यों याचिका खारिज कर दी गई, अच्छा ही हुआ नही तो कल को राष्ट्रपति भवन जैसे भवन की भी मॉंग होने लगती तो दूसरा राष्ट्रपति भवन कहॉं से लाया जाता ? :)
एक बात तो स्पष्ट है कि इस तरह की फिजूल की याचिकाओं पर रोक लगनी चाहिये नही तो कोई न्यायधीश तो कोई किसी के नाम पर याचिका लेकर चला आता है। जब भारतीय संसद खुद इतनी मेहबान रहती है तो भारतीयों को किसी प्रकार की चिन्ता नही करनी चाहिये। सरकार को जितनी चिंता आम आदमी की नही होती है उतनी अधिक अधिकारियों की होती है, और समय समय पर वह नियमों को फेरबदल कर सुविधा लेते देते रहते है।
निश्चित रूप से यह एक अच्छा फैसला है।
फिर मिलना होगा .....
09 May 2008
1857 क्रांति की 150 वी वर्ष गाँठ आज - लोकगीतों मे आजादी की कहानी
1857 एक महज आकडा ही नही बल्कि उसमे देश प्रेम का जबरजस्त जज्बा समाया हुआ है जो हमे स्वयं की आजादी को बनाये रखने के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने की प्रेरणा देता है . डेढ़ सौ वर्ष पूर्व आजादी का बिगुल बजाने वाले बहुत से लोगो को इतिहास ने याद रखा ......बहुतो को भुला दिया गया .
आज 1857 क्रांति की 150 वी वर्षगाँठ है आज 10 मई को ठीक 18.57 बजे पर देश के लिए अपने प्राणों का न्योछावर कर देने वाले शहीदों की स्मृति मे उनको याद करते हुए एक दीपक प्रज्ज्वलित कर दो मिनिट का मौन रखकर उन्हें विनम्र श्रध्दा सुमन अर्पित किए जावेंगे यह सभी भारत वासियो का पुनीत कर्तव्य है हम शहीदों को याद कर उनके प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करे.
संस्काराधानी जबलपुर मे विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा शहीदों की स्मृति मे अनेको कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है आज गली गली चौराहों मे शहीदों की स्मृति मे दीप जलाये जावेंगे और दो मिनिट का सामूहिक मौन रखा जावेगा . धन्य है संस्कार नगरी जो आज अपने देश शहीदों को याद कर इस पुनीत अभियान मे अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेगी .
शहीदों को याद करने और उनको स्मृति मे बनाये रखने मे लोकगीतों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है . जबलपुर शहर मे एक ऐसे भी दीवाने है जिन्होंने तीन दशकों के लोकगीतों का संग्रह किया है . उन लोकगीतों मे आजादी की कहानी समाहित है .
श्री द्वारका गुप्त "गुप्तेस" जाने माने कवि है और मध्यप्रदेश राज्य विधुत मंडल जबलपुर मे कार्यरत है लेकिन लोकगीतों से उनका पुराना प्रेम है उनके इस संग्रह मे सन् 1857 से 1947 तक के बुन्देली 160 लोकगीतों का संग्रह है और इन गीतों मे स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास समाहित है . सामाजिक रीति संस्कार और तीज त्यौहार पर लोकगीतों का उल्लेख हर जगह मिलता है पर राष्ट्रिय भावनाओ से ओतप्रोत लोकगीतों का संग्रह कही मिलता नही था बस इसी को लेकर प्रेरणा प्राप्त हुई और श्री गुप्त द्वारा जनभावानाओ के अनुरूप बुन्देलाखंडी लोकगीतों का संग्रह करना शुरू किया गया और उन्होंने उसे मूर्त रूप भी दिया . इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि लोकगीत किसी घटना के प्रति जनमानस के जेहन मे महत्वपूर्ण बड़ी भूमिका बनाने लोकगीत अब आज के युग मे गुम होते जा रहे है .
लोकगीत किसी घटना के प्रति किसी इतिहासकार का नजरिया नही होते है पर जनभावनाओ की भावनाओं से ओतप्रोत होते है . उनके संग्रह मे खूब लड़ी मर्दानी वो झासी वाली रानी थी .संतावन मे खूब धूम मचाई . संग्रह मे राजा मर्दनसिह बुंदेला, महारानी लक्ष्मी बाई , दुर्गावती पर आधारित कई लोकगीतों का संकलन किया गया है . ऐसे काम विरले लोग ही करना पसंद करते है .इस काम को करने जानने के लिए मध्यप्रदेश के सभी जिलो का भ्रमण कर लोकगीतों का संग्रह किया है और जो काम श्री गुप्त ने कर दिखाया है वे सराहना के पात्र है जिससे संस्कारधानी जबलपुर भी गौरवान्वित हुआ है .
"विवाह में बाधा न डालें किंतु बाल विवाह न होनें दें...!"
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बाराती-घराती भी जाएंगे जेल ... इस बात की जान कारी जिनको नहीं है ऐसे लोगों में शुमार हैं बरेला निवासी आनंद और प्रीती शर्मा। जबलपुर के नज़दीक का कस्बे बरेला के इस परिवार की बिटिया दुर्गा १६ साल की है। ०८/०५/०८ रात मनीष भाई ने बताया :-"पुलिस कंट्रोल रूम आपको बरेला में बाल विवाह रोकने के लिए "
रात ८:०० बजे , निचले स्तर पे खोज बीन हुयी । पता चला कि प्रोबेशनर आई पी एस रूचि श्रीवास्तव टी आई साहिबा को फोन पर मिली ख़बर से पता चला कि वार्ड न ० ११ में कम उम्र की बालिका की शादी की जा रही है, पुलिस अमला भेजा गया, आँगनवाड़ी-कार्यकर्ता सूना चक्रवर्ती ने दोपहर उस परिवार को भेंट देकर बता दिया था कि दुर्गा की शादी उस के लिए शारीरिक,सामाजिक,और कानूनी तौर पर कितनी हानि पहुंचा सकती है,यदि दुर्गा १८ बरस के बाद बिहाई जाए तो कितनी सरकारी मदद भी मिलेगी । समझाइश और कानूनी कार्यवाई के आसन्न खतरे को भांप परिवार गहन मंत्रणा में जुट गया। शाम तक आँगनवाड़ी कार्य कर्ताओं का इक और दल जिसमे शारदेश नंदनी जैन,प्रेम लता मिश्रा [आँगनवाड़ी-वर्कर]शामिल थीं , भाई महेन्द्र जैन, जनपद के उपाद्यक्ष सभी ने पूरी ताक़त लगा के परिवार को राजी कर ही लिया । दुर्गा से शादी कर बरात लेकर आने वाले दूल्हे को वापस लौटना ही पड़ा ।समाज से सरोकार रखने वाले मेरे विभाग , की इन कार्यकर्ताओं की जितनी भी सराहना की जाए कम होगी।
08 May 2008
अर्थशास्त्र की विषय सामग्री - उपभोग
अर्थशास्त्र को प्रो. मार्शल ने अध्ययन की दृष्टि से उपभोग, उत्पादन, विनिमय, और वितरण सहित 4 भागों में बॉंटा है, जबकि प्रो. चैपमैन इसमें संसोधन करते हुऐ राजस्व की एक श्रेणी और बना देते है। उपरोक्त वर्णित पॉंचों के बारे में हम विस्तार से चर्चा करेगें।
उपभोग ( Consumption)
उपभोग मानव की वह आर्थिक होती है जिसमें मनुष्य की आवाश्यकताओं की संतुष्टि होती है। संक्षेप में हम जब कोई मनुष्य किसी आर्थिक वस्तुओं तथा सेवाओं के द्वारा संतुष्टि को प्राप्त करता है तो कहा जाता है उक्त वस्तु या सेवा का उपभोग हुआ। तथा उस वस्तु तथा सेवा से मिलने वाली संतुष्टि को उपयोगिता कहते है। उपभोग मनुष्य क्रियाओं का आदि और अंत सभी है। उपभोग अपनी अवस्था के अनुसार कई प्रकार के हो सकते है, चाहे वह खाद्य पदार्थ के रूप मे चाहे भौतिक सुख सुविधाओं के द्वारा प्राप्त उपभोग।
डाक्टर पी. बसु उपभोग की परिभाषा देते हुए कहते है - ''अर्थशास्त्र में आर्थिक उपयोग ही उपभोग है। ''
नोट - अगले अंक में हम उत्पादन ( production) के बारे में चर्चा करेंगें।
06 May 2008
क्या खूब कही
युवराज के चारों ओर चापलूसों का जमघट लगा रहता है और यदि वे किसी से नाराज़ हों तो उस व्यक्ति को परेशानी उठानी पड़ती है - अखिलेश दास, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, जो हाल में ही कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके है।
04 May 2008
राज ठाकरे का ज़हर
अब सुनिए मेरा यात्रा वृतांत-
मैं अभी २७ से ३० अप्रिल तक मुम्बई में ही था, एक साक्षात्कार के सिलसिले में।साक्षात्कार २८ को हो गया, अतः हमारे पास २ दिन थे मुम्बई के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करने को।
इसी दौरान २९ अप्रैल को मुझे कुछ समय दादर स्टेशन पर बिताने को मिला, वास्तव में मैं अपने दोस्तों के साथ वहाँ रेल का इंतज़ार कर रहा था।हमसब को भूख लग आई थी, अतः हमने सोचा कि कुछ खाते हैं वहाँ लगे स्टाल पर। वहाँ जाकर हमने तीन वडापाओ आर्डर किया और खाने का लुत्फ़ उठाने लगे।
वहीं एक और शख्स वडा पाओ खा रहा था।उसने कुछ और पाओ का आर्डर दिया। आर्डर मिलने पर वो अपना खाना पूरा करने लगा, उसी समय उसने अपनी थाली, जिसमे वो खाना खा रहा था, से एक पाओ स्टाल पर वापस करना चाहा। स्टाल के मालिक ने वापस करने से मना कर दिया क्यूंकि जूठी थाली से खाद्य सामग्री वापस नही होती।
अब ये शख्स चिल्लाने लगा और कहने लगा-
"राज ठाकरे तुम भइया लोगों के साथ ठीक करता है, जब वो तुम लोगों की गा********** (एक बहुत ही गन्दी गाली) करता है।तू क्यों नही लौटाएगा, अब तो मैं तेरे को एक रुपया भी नही देने वाला इस खाने का, और अगर तू ज्यादा बोलेगा तो यहीं थोरी देर में आकार तेरे को मार डालूँगा और तेरा सबकुछ छीन लूँगा।"
मेरा तो ये सुनकर खून खौलने लगा, और मैंने सोचा की मैं यहाँ कुछ बोलूं, पर मेरे दोस्त जो मेरे साथ थे उन्होंने मुझे इशारे से चुप रहने को कहा। बाद में मैंने बात समझी, की अगर मैं वहाँ कुछ बोलता भी, तो घाटा उस स्टाल के मालिक को होती जो शायद मारा जाता या लूट लिया जाता। स्टाल का मालिक, जो उत्तर प्रदेश या बिहार का लगता था, घबरा गया और कुछ देर बाद वो शख्स जो अपने को मराठी कहता था, बिना पैसे दिए वहाँ से गायब हो गया।
पता नही इस ज़हर को रोकने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत कब आगे आयेगी और ऐसे ज़हर का इलाज करेगी, क्यूंकि इस ज़हर का इलाज राजनेता तो करने से रहे।कृपया कर माध्यम से आप सब इस ज़हर को फैलाने वालों, और इस ज़हर के ख़िलाफ़ अपनी राय लोगों तक पहुंचाएं, शायद कहीं किसी सही कान तक आवाज़ पहुँच जाए और ये सब ख़त्म हो जाए भारत से, अन्यथा भारत को टूटने में देर नही लगेगी।
02 May 2008
मीडिया की चाटुकारिता रूप
आज रवीश जी के कस्बे पर एक एक लेख पढ़ा किन्तु दु:ख हुआ कि मीडिया आज चटुकारिता में ही विश्वास करती है। आज देश में सेवा बस्तियों में संघ के विभिन्न संगठनों के द्वारा इतने सेवा कार्य चल रहे है कि यह विश्व का सबसे बड़ा सामुदायिक कार्यो में एक होगा। कि आज कल के कुछ पत्रकारों को मलाईदार आदमी की मलाई खाने और उनकी कवरेज करने के आदी हो रहे है। यही कारण है कि आज मीडिया गर्त में जा रहा है।
इन सब का कारण स्पष्ट है कि इनकी कवरेज करने पर फाईफ स्टार होटल में फ्री में नश्ता पानी की व्यवस्था होती है और संघी कार्यक्रमों के कवरेज में जमीन पर बैठ कर दलितों के मध्य भोजन। तो इन पत्रकारों को काहे न विदेशी करतब दिखेगा।
जहॉं तक ठाकुरो वाली बात है तो भाड़े की मीडिया के भाड़े के टट्टूओं को अराजक न्यूज ही प्रकाशित करनी आती है। अगर मीडिया आपना दायित्व समझे और सही अर्थो में समाज में जो अच्छे काम हो रहे है उसे उजागर करें तो शायद ही मथुरा जैसी घटना घटे।
01 May 2008
भाजपा के यज्ञदत्त शर्मा विजयी
उत्तर प्रदेश विधान परिषद इलाहाबाद-झांसी खण्ड स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डा. यज्ञदत्त शर्मा ने कांटे के संघर्ष में अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी निर्दलीय प्रत्याशी डा. बाबूलाल तिवारी को 3,224 मतों से शिकस्त देकर हैट्रिक बनाई, जबकि द्वितीय मतों की गणना में पीछा करते-करते इण्डियन जस्टिस पार्टी के इन्द्रेश कुमार सोनकर पांचवें, सपा के मुनेश्वर मिश्र 17 वें व कांग्रेस के प्रदीप कुमार मिश्र 20 वें राउण्ड में ही दौड़ से बाहर हो गये।
प्रथम वरीयता मतों की गणना में भाजपा के डा. यज्ञदत्त शर्मा को 9957, निर्दलीय डा.बाबूलाल तिवारी 7927 व शिक्षक नेता लवकुश कुमार मिश्रा को 4811, कांग्रेस के प्रदीप कुमार मिश्र को 3646, सपा के मुनेश्वर मिश्र को 1316, इण्डियन जस्टिस पार्टी के इन्द्रेश कुमार सोनकर को 116 मतों पर सन्तोष करना पड़ा। निर्दलीय प्रत्याशियों में अमर सिंह राठौर 2043, रामआसरे पटेल 1073, गया प्रसाद पटेल 1508, मुनेश्वर मिश्र 1316, केशव देव त्रिपाठी 1233, शरद श्रीवास्तव 1179 मत हासिल कर सके।
गौर तलब हो कि श्री शर्मा इलाहाबाद के मीरापुर के रहने वाले है, और 2001 तक सेवा समिति विद्यामन्दिर के प्रधानाचार्य रहे है। भाजपा को चारों ओर उत्तर प्रदेश में मिल रही हार से उक्त जीत से काफी रहत मिली है और निश्चित रूप से नये ऊर्जा का संचार होगा।
एक दीप शहीदों के नाम दो मिनिट मौन (प्रथम स्वातंत्र्य समर १८५७)
भारतीय जीवनी शक्ति और सामर्थ्य की अक्षय परम्परा से हम और सभी परिचित ही है . जब जब सारा देश संकटग्रस्त हुआ अपमानित हुआ तब-तब उन संकटों के प्रतिकार और अपनी गौरव रक्षा के लिए भारतीय जनमानस जाग्रत होकर कटीवध्द हुआ है. १८५७ का स्वतंत्रता संग्राम इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है. भारतीय सैनिको और समस्त भारतीय जनता ने उस संग्राम मे जो सहस दिखाया ,जो बलिदान किए वे स्मरणीय है. कितने स्त्री पुरुषो आबाल वृद्धो ने अपनी आहुति दी इसका आंकलन कर पाना सम्भव नही है ..यह वर्ष उस महासंग्राम का 150 वां वर्ष है . 1857 के इस बलिदान -यज्ञ का हम उचित रूप से स्मरण करे और अपनी परम्परा के अनुसार यह हो सकता है .कि सारा देश और विदेशो मे रहने वाले भारतीय कि एक दिन उन बलिदानों की स्मृति और उनके प्रति श्रद्धा अर्पण मे दीप प्रज्जवलित करे और दो मिनिट का मौन बलिदानियो के ह्रदय की आग एवम् उनके संकल्प को चिरस्थायी बना सकेगा .
विनम्र अनुरोध है की 1857 के संघर्ष की स्मृति को संजोने इस राष्ट्रिय अभियान मे आप अपनी सक्रिय भागीदारी करे एवम् इस पवित्र यज्ञ मे अपने तन मन के सहयोग की समिधा अर्पण करने का कष्ट करे . यह कार्यक्रम जबलपुर शहर मे गली-गली- चौराहों मे अलग अलग समूहों मे विशाल स्तर पर आयोजित किया जावेगा . आप से अपील करता हूँ कि आप भी अपने शहरों मे शहीदों के प्रति श्रध्धांजलि अर्पित करे और उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाये रखने के लिए श्रद्धा अर्पण मे दीप प्रज्जवलित करे और इस यज्ञ मे सहभागी बने .
इस राष्ट्र यज्ञ मे आप निम्न आधार पर जुड़ सकते है -
नगर मे विभिन्न चौराहों सार्वजनिक स्थानों एवम् महापुरुषों के प्रतिमा स्थलों पर शहीदों की स्मृति मे कार्यक्रम होना अपेक्षित .
आप भी अपनी पार्टी /संस्थाओं की ओर से किसी सार्वजनिक स्थान का इस कार्यक्रम के लिए चयन कर सकते है .
इस कार्यक्रम मे जनसामान्य सहभागी हो ऐसी अपील समाचार के माध्यम से आप प्रसारित कर सकते है .
मुख्य कार्यक्रम का वातावरण बनने की द्रष्टि से 1857 की स्मृति मे पूरक कार्यक्रम आयोजित कर सकते है .
अपनी संस्था की ओर से प्रचार सामग्री मुद्रित कराके वितरित अथवा प्रदर्शित कर सकते है .
दिनक 10 मई 2008-1857 (सायं 6:50 बजे)
भवदीय
आचार्य कृष्ण कान्त चतुवेदी
एक दीप - दो मिनिट शहीदों के नाम
(प्रथम स्वातंत्र्य समर १८५७)
अभियान समिति,जबलपुर
दूरभाष ०७६१- २४१६९६३ फैक्स- ०७६१-4006608