09 May 2008

1857 क्रांति की 150 वी वर्ष गाँठ आज - लोकगीतों मे आजादी की कहानी

1857 क्रांति की 150 वी वर्ष गाँठ आज - लोकगीतों मे आजादी की कहानी


1857 एक महज आकडा ही नही बल्कि उसमे देश प्रेम का जबरजस्त जज्बा समाया हुआ है जो हमे स्वयं की आजादी को बनाये रखने के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने की प्रेरणा देता है . डेढ़ सौ वर्ष पूर्व आजादी का बिगुल बजाने वाले बहुत से लोगो को इतिहास ने याद रखा ......बहुतो को भुला दिया गया .

आज 1857 क्रांति की 150 वी वर्षगाँठ है आज 10 मई को ठीक 18.57 बजे पर देश के लिए अपने प्राणों का न्योछावर कर देने वाले शहीदों की स्मृति मे उनको याद करते हुए एक दीपक प्रज्ज्वलित कर दो मिनिट का मौन रखकर उन्हें विनम्र श्रध्दा सुमन अर्पित किए जावेंगे यह सभी भारत वासियो का पुनीत कर्तव्य है हम शहीदों को याद कर उनके प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करे.

संस्काराधानी जबलपुर मे विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा शहीदों की स्मृति मे अनेको कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है आज गली गली चौराहों मे शहीदों की स्मृति मे दीप जलाये जावेंगे और दो मिनिट का सामूहिक मौन रखा जावेगा . धन्य है संस्कार नगरी जो आज अपने देश शहीदों को याद कर इस पुनीत अभियान मे अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेगी .

शहीदों को याद करने और उनको स्मृति मे बनाये रखने मे लोकगीतों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है . जबलपुर शहर मे एक ऐसे भी दीवाने है जिन्होंने तीन दशकों के लोकगीतों का संग्रह किया है . उन लोकगीतों मे आजादी की कहानी समाहित है .
श्री द्वारका गुप्त "गुप्तेस" जाने माने कवि है और मध्यप्रदेश राज्य विधुत मंडल जबलपुर मे कार्यरत है लेकिन लोकगीतों से उनका पुराना प्रेम है उनके इस संग्रह मे सन् 1857 से 1947 तक के बुन्देली 160 लोकगीतों का संग्रह है और इन गीतों मे स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास समाहित है . सामाजिक रीति संस्कार और तीज त्यौहार पर लोकगीतों का उल्लेख हर जगह मिलता है पर राष्ट्रिय भावनाओ से ओतप्रोत लोकगीतों का संग्रह कही मिलता नही था बस इसी को लेकर प्रेरणा प्राप्त हुई और श्री गुप्त द्वारा जनभावानाओ के अनुरूप बुन्देलाखंडी लोकगीतों का संग्रह करना शुरू किया गया और उन्होंने उसे मूर्त रूप भी दिया . इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि लोकगीत किसी घटना के प्रति जनमानस के जेहन मे महत्वपूर्ण बड़ी भूमिका बनाने लोकगीत अब आज के युग मे गुम होते जा रहे है .

लोकगीत किसी घटना के प्रति किसी इतिहासकार का नजरिया नही होते है पर जनभावनाओ की भावनाओं से ओतप्रोत होते है . उनके संग्रह मे खूब लड़ी मर्दानी वो झासी वाली रानी थी .संतावन मे खूब धूम मचाई . संग्रह मे राजा मर्दनसिह बुंदेला, महारानी लक्ष्मी बाई , दुर्गावती पर आधारित कई लोकगीतों का संकलन किया गया है . ऐसे काम विरले लोग ही करना पसंद करते है .इस काम को करने जानने के लिए मध्यप्रदेश के सभी जिलो का भ्रमण कर लोकगीतों का संग्रह किया है और जो काम श्री गुप्त ने कर दिखाया है वे सराहना के पात्र है जिससे संस्कारधानी जबलपुर भी गौरवान्वित हुआ है .

1 comment:

Pramendra Pratap Singh said...

आजादी के वीर सपूतों को नमन