जब भी अच्छा काम हो श्रेय ले जाते हैं वे
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं
मैं यों तो छोटा सा है शब्द
मगर फैलाता है बडा दुख- दर्द
मौसम चाहे सर्द हो चाहे हो गर्म
मै ही है सबसे बडा मर्म
" मैं" " मैं" करते लुट गए कई लाख
मिट्टी में मिलकर होना है सबको खाख
मिट्टी में मिलकर भी नही मिटता है मैं
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं
कई बुत व सडकें बनती हैं उनके नाम पर ,
कई बातें गढ़ी जाती हैं उनके काम पर,
समाज में ऊँचा रूतबा होता है उनका ,
लूटते हैं जिसे वे वह होती है जनता,
गुपचुप करते हैं धन्धे चोरी के ,
भाषणों में बनते हैं निन्दक चोरी के ,
कईयों का खाख में मिलाकर ,
अपने रस्ते से मिटाकर ,
जब खुद जाते हैं खाख में ,
तब भी नही मिटता है मैं
क्योंकि उनके सिर चढा है मै, और
हर अच्छे काम का श्रेय ले गये हैं वे।
कवि - श्री तरूण जोशी ''नारद''
1 comment:
श्री तरूण जोशी ''नारद''
bhaut badhia kavita hi, jo vastavikta ka bodh karati hi
shubh kamanai
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