जो अच्छाईयाँ हैं तुममें -
सर्वत्र बिखेर दो !
महका दो -
गुलाब की तरह!
जो पाये -
अपना ले !
महक मिले जिसे -
बहक जाए !
बस अच्छाईयाँ बिखराए।
.
जो बुराईयाँ हैं तुममें -
उन्हें समेट लो !
दबा दो -
कफन में !
सुला दो -
चिर निद्रा में !
न उठने पाएं,
न दिखने पाएं,
न दूसरों को बहका पाएं!
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कवि कुलवंत सिंह
2 comments:
aapki yh panktiya shanti ka sandesh lekar aayi hai. badhai
आपकी कविता में सामाजिक समरसता का भाव प्रवा हो रहा है, अच्छा लिखा है।
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