02 April 2008

गज़ल - बडे हम जैसे होते हैं...

गज़ल

बड़े हम जैसे होते हैं तो रिश्ता हर अखरता है ।
यहां बनकर भी अपना क्यूँ भला कोई बिछड़ता है ।

सिमट कर आ गये हैं सारे तारे मेरी झोली में,
कहा मुश्किल हुआ संग चांद अब वह तो अकड़ता है ।

छुपा कान्हा यहीं मै देखती यमुना किनारे पर,
कहीं चुपके से आकर हाथ मेरा अब पकड़ता है ।

घटा छायी है सावन की पिया तुम अब तो आ जाओ,
हुआ मुश्किल है रहना अब बदन सारा जकड़ता है ।

जिसे सौंपा थे मैने हुश्न अपना मान कर सब कुछ,
वही दिन रात देखो हाय अब मुझसे झगड़ता है ।

कवि कुलवंत सिंह
http://kavikulwant.blogspot.com

3 comments:

Anonymous said...

बढि़या गज़ल है, अच्‍छा लगा

MEDIA GURU said...

जिसे सौंपा थे मैने हुश्न अपना मान कर सब कुछ,
वही दिन रात देखो हाय अब मुझसे झगड़ता है

kya bat hai. kulvant ji behtreen rachna.

Pramendra Pratap Singh said...

कवि कुलवंत जी आपकी यह गज़ले बहुत अच्‍छी है बधाई