02 May 2008

मीडिया की चाटुक‍ारिता रूप

आज रवीश जी के कस्‍बे पर एक  एक लेख पढ़ा किन्‍तु दु:ख हुआ कि मीडिया आज चटुकारिता में ही विश्‍वास करती है। आज देश में सेवा बस्तियों में संघ के विभिन्‍न संगठनों के द्वारा इतने सेवा कार्य चल रहे है कि यह विश्‍व का सबसे बड़ा सामुद‍ायिक कार्यो  में एक होगा।  कि आज कल के कुछ पत्रकारों को मलाईदार आदमी की मलाई खाने और उनकी कवरेज करने के आ‍दी हो रहे है। यही कारण है कि आज मीडिया गर्त में जा रहा है।

इन सब का कारण स्‍पष्‍ट है कि इनकी कवरेज करने पर फाईफ स्‍टार होटल में फ्री में नश्‍ता पानी की व्‍यवस्‍था होती है और संघी कार्यक्रमों के कवरेज में जमीन पर बैठ कर दलितों के मध्‍य भोजन। तो इन पत्रकारों को काहे न विदेशी  करतब दिखेगा।

जहॉं तक ठाकुरो वाली बात है तो भाड़े की मीडिया के भाड़े के टट्टूओं को अराजक न्‍यूज ही प्रकाशित करनी आती है। अगर मीडिया आपना दायित्‍व समझे और सही अर्थो में समाज में जो अच्‍छे काम हो रहे है उसे उजागर करें तो शायद ही मथुरा जैसी घटना घटे।

2 comments:

Anonymous said...

आपका बात बिल्कुल सहि है. देखिये हाथी का दात खाने का अलग होता है और दिखाने का अलग. दुसरा ये १००% बिजनेश का तरिका है. ज्यादा भावुक मत होखिये ऐसी चिजे देख कर. इनको भी दलित या उनके परेशानियो से. याद किजिए राजदिप सर देशाइ का गुजरात का नौटन्की.उसके बाद उनको इतनी फ़न्डिन्ग मिल गयी कि अलग चैनल खोल लिये. उसि चक्कर मे ये लोग लगे रह्ते है.

Anonymous said...

aapne bilkool sahi kahaa hai. arey bhai aajakl kai saare NGO aise chal rahe hain jo christian Missionery ki tarah convesion ke kaam me lage hain. aur inhi logo kaa media me bol-bala hai. Aap ne sahi kahaa hai ki hamaari chatukar midea ko Sangh ke kai prakalpo ke baare mein janane ki fursat bhi bahi hai. Akhir ho bhi kaise vo to din-raat sangh ko badnaam karne ke abhiyaan me jute hain. Isi se toh unka dana-paani chalta hai. aapki lekhani ko naman