(1)
एक जिन्दा लाश सी,अपनी हालत हो गई है,।
घुट घुट कर जीना, अब तो आदत हो गई है।।
(2)
खामोश जिन्दगी की एक चीखती कहानी,
गुजरे हुए अतीत की एक भीगती निशानी।
कुछ गुलाबी फूल कुछ हरी पत्तियाँ,
एक हसीना की प्यारी फबतियाँ।।
(3)
वो भी जिन्दगी थी, ये भी जिन्दगी है।
हर चीज़ पाक थी वहॉं, यहाँ सिर्फ गन्दगी है।।
2 comments:
छडिकायें शीर्षक अच्छा लगा, अच्छी रचनायें..
***राजीव रंजन प्रसाद
दूसरी छडिका की अन्तिम दो पक्तिंयॉ अच्छी लगी, बधाई
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