10 June 2008

ये गुलाबी होंठ , ये शराबी आँखें,


ये गुलाबी होंठ , ये शराबी आँखें,

हमको तेरा दीवाना बनाए।

क्‍यो छिपाए तुमसे कुछ?

हम क्‍यो कोई बहाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


जब से तेरी गली में दाखिल हुए है,

देखकर तेरा हुस्‍न पागल हुए है।

तेरी ये कातिल नजरे,

रोज हमें निशाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


इन जुल्‍फों में हम खो जाए,

तेरे आँचल में हम सो जाए।

तेरी इज़ाजत हो अग

इन आँखों को अपना ठिकाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


तेरे आगे ये शराब कुछ भी नही है

जन्‍नत की परियों का शबाब कुछ भी नही है।

आ जाओं तुम्‍हे हम साकी,

इन आँखों का पैमाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........


तुम आकर मेरा हाथ थाम लो

जो खौफ हो, तुम मेरा नाम लो।

चलों कहीं दूर सनम,

हम अपना आशियाना बनाए।।

ये गुलाबी ...........

Written by प्रलायनाथ ज़ालिम,

दिनाँक- 3 अप्रेल 2004

1 comment:

Pramendra Pratap Singh said...

प्रलय कहर ढारहे हो