जब याद आयी घर की,
घुट घुट कर रोने लगे।
गिरा कर कुछ बूँदे आसूँओं की,
हम चेहरा भिगोने लगे।
जब नींद टूटी सारी दुनियाँ की,
सिमट कर चादर में हम सोने लगे।
जब याद................
करके टुकड़े हजार दिल के,
बीती यादों को पिरोने लगे।
जब याद................
न छूटे दाग दिल के बारिस की बूँदों से,
लेकर आँसूओं का सहारा,हर दाग दिल का धोने लगे।
जब याद................
बिजलियों का खौफ़,
अब तो रहा ही नही।हो के तन्हा,
जिन्दगी हम ढ़ोने लगे।
जब याद................
ले लिया ग़म को,
अपने आगोश में,
जब कभी दूर अपनो से होने लगे।
जब याद................
खुल गई सारी जंजीरे,
बदन से हमारे,
जब धुये की तरह,ह
वा में खोने लगे।
जब याद................
Dated – 27 मार्च 2005 by प्रलयनाथ जालिम
2 comments:
न छूटे दाग दिल के बारिस की बूँदों से,
लेकर आँसूओं का सहारा,हर दाग दिल का धोने लगे।
bhut khub.sundar rachana.badhai ho.
लिखते रहिये.
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