“बाबूजी तुम हमें छोड़ कर…..!”
मेरे सपने साथ ले गए
दुख के झंडे हाथ दे गए !
बाबूजी तुम हमें छोड़ कर
नाते-रिश्ते साथ ले गए...?
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काका बाबा मामा ताऊ
सब दरबारी दूर हुए..!
बाद तुम्हारे मानस नाते
ख़ुद ही हमसे दूर हुए.
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अब तो घर में मैं हूँ माँ हैं
और पड़ोस में विधवा काकी
रोज़ रात कटती है भय से
नींद अल्ल-सुबह ही आती.
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क्यों तुम इतना खटते थे बाबा
क्यों दरबार लगाते थे
क्यों हर एक आने वाले को
अपना मीत बताते थे
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सब के सब विदा कर तुमको
तेरहीं तक ही साथ रहे
अब हम दोनों माँ-बेटी के
संग केवल संताप रहे !
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दुनिया दारी यही पिताश्री
सबके मतलब के अभिवादन
बाद आपके हम माँ-बेटी
कर लेगें छोटा अब आँगन !
• गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"
3 comments:
मार्मिक एवं भावपूर्ण.
बहुत अच्छी कविता, कुछ पक्तिंयाँ दिल को छू गई बधाई
मित्र
अनवरत स्नेह
कई दिनों से मेरी सदस्यता इस ब्लॉग पे दिख नहीं पा रही है
क्या कोई तकनीकी खराबी है . अथवा अपने हटा दिया मुझे
या मुझसे कोई तकनीकी गलती हुई है
मैं समझ ही नहीं पा रहा हूँ
इस ब्लॉग से मुझे पुन: जोड़ दीजिए
जहाँ तक मुझे याद है मेरे भतीजे की करतूत होगी जो है तो दस बरस का किंतु मेरी
अनुपस्थिति में नेट से छेड़ कहानी करता है
जो भी हो आप सहयोग कीजिए डेशबोर्ड बिना इस ब्लॉग के खाली लगता है
अनवरत असीम स्नेह के साथ
आपका मुकुल
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