तुमने हमें भुला दिया,
हम भी तुम्हे भुला देगें।
जो आग लगी दिल में,
किसी रोज बुझा देगे।।
तुमने हमें ..........
तेरी हर अदा दिल में,
तेरी आँखो का नशा दिल में।
तेरे इस नशे को हम,
जाम में मिला देगे।।
तुमने हमें ..........
कितनी तन्हा है मेरे घर की तन्हारी,
कितनी जुदा है ये तेरी जुदाई।
तेरे निशान को हम
एक-एक करके मिटा देगे।
तुमने हमें ..........
हर शाम गुजारते हम यहाँ मयखाने में,
रोज डूब जाते है, छोटे से पैमाने में।
अब तो अपनी तन्हाई को,
हम साकी बना देंगे।।
तुमने हमें ..........
आज रात मेरे ज़ाम में ज़हर होगा,
कल सुबह के बाद जो दुपहर होगा।
ये लोग मुझको उठाकर,
शमशान तक पहुँचा देगे।।
तुमने हमें ..........
By ज़ालिम प्रलयनाथ, दिनाँक 2 अप्रेल 2005
चित्र सभार संग्रह
2 comments:
बहुत अच्छी कविता
बढ़िया है, लिखते रहिये.
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