माता-पिता, लक्ष्मी-नारायण के रूप हैं। उनका सदा बन्दन करना चाहिये।
सदाचारी पुत्र माता-पिता को सद्गति प्रदान करता है।
माता, पिता, गुरू, अतिथि और सूर्य ये प्रत्यक्ष देव है इसनकी सेवा करनी चाहिये।
बालक से निर्दोषता की सीख मिलती है।
माता सुशिक्षिता हो तो बालको को हजार शिक्षको से अधिक ज्ञान दे सकती है।
दूसरे के सुख में सुखी होना ही प्रेम का लक्षण है।
बड़ो के प्रति सहनशील, छोटो के प्रति दया, समवयस्कों के साथ मित्रता एवं जीवों के साथ समान व्यवहार करने से सर्वात्मा श्रीहरि प्रसन्न होते हैं।
1 comment:
बहुत ही अच्छा । पढकर बहुत अच्छा लगा ।
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