17 January 2008

खेलती हूँ खेल ऐसा

खेलती हूँ खेल ऐसा,
जीत जिसमे हो हमेशा।
दिल में प्यार हो,
आखों में हो हौसला।।

खेल मेरी जिन्दगी है,
खेल मेरी मौत है।
खेल ही खेल में,
खेल की हार-जीत है।

खेल कों खेला है मैने,
केवल जीत के वास्तें,
उस जीत का मतलब है क्या ?
जो रोक किसी के रास्तें।

मै खिलाड़ी हूँ ,
खेल मेरी रग रग में है।
जीत का अपना मजा है,
कुछ अलग मजा है हार का।

3 comments:

ghughutibasuti said...

सुन्दर कविता ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

बहुत अच्छे रुचि जी....

जिन्दगी मे हार हो या जीत,
ये तो मुझे खबर नहीं,
पर ये वादा है तुझसे जिन्दगी,
तुझे कभी अफसोस ना करने दुगॉ.
अगर जीत गया तो,
खुशी को,दुनिया मे बॉट दुगॉ,
अगर हार गया तो,
गमों को खुद मे समेट लुग़ॉ.

महाशक्ति समूह मे स्वागत है.

रीतेश रंजन said...

मित्र खेल्भाव्ना का बिलकुल सही चित्रण किया है आपकी इस कविता ने..
आपको बधाई !