01 March 2008

आज का एक वाकया है जिसने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया की भारत विकासशील देश है या नहीं?

यह वाकया था ट्रैफिक सिग्नल पर तमाशा दिखा कर पैसे कमाने वाले छोटे बच्चों का:
हुआ कुछ ऐसा की एक साक्षात्कार के सिलसिले में मैं गुरगांव से गाजिअबाद गया था। लौटते समय मैंने ग्रेटर कैलाश के आस पास ट्रैफिक सिग्नल पर कुछ बहुत छोटे बच्चों को तमाशा दिखा कर पैसे मांगते देखा जिसने मेरा ध्यान आकर्षित किया। दृश्य के केन्द्र में एक मैलेकुच्ले कपडों में बच्ची थी, जो शरीर से करतब दिखा कर गुजरती गाड़ी वालों से पैसे मांग रही थी।पास की ही बस्ती में प्लास्टिक के तम्बुओं में शायद उसपे माता पिता रहते थे

दूसरा दृश्य जिसने मेरा ध्यान भंग किया जब मेरी गाड़ी आगे बढ़ी वो कुछ ऐसे था:
ये दृश्य था बच्चों द्वारा ट्रैफिक पर भीख मांगने का। साकेत का था ये किस्सा । इस घटना ने मुझे ये सोचने पर मजबूर किया की अगर विकासशील देश की राजधानी में धन का इतना असमान वितरण है टू बाकि शहरों का अंदाजा लगना कठिन नहीं है ।
क्या इन लोगों को देश के आर्थिक विकास का फायदा कभी मिलेगा?
क्या देश के विकास का फायदा लेने के अधिकारी वे लोग नहीं हैं? या देश के आर्थिक विकास का फायदा वो ही लोग हैं जिनके कारण दिल्ली की सडकों पर गाड़ियों और ट्रैफिक की दिक्कत हो गई है?
हमारी सरकारें दावा करती हैं प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की, और देश के धनवान बनने का, तो क्या उन्हें ये याद नही रहता कि देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग ऐसे ही गरीब लोगों का है । क्या हमें उन्हें ये याद नही दिलाना चाहिए?
क्या वे बच्चे स्कूल जाना नहीं चाहते होंगे?क्या वे इस काबिल nahi बन सकते कि समाज के दुसरे लोगों के साथ बात सकें?ऐसे बहुत से सवाल हैं जो यह साबित करते हैं कि भारत अभी कम विकसित देश है। ये तो कोई और देश है जो विकासशील है, शायद इसी देश का नाम इंडिया है, क्यूंकि इस देश में वो लोग रहते हैं जो कान्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं, और गरीबों को कीडे मकोडे समझते हैं। इस देश इंडिया के लोगों कि एक और खासियत है:
ये देश के साथ जुड़े बहुत सी बातों को जानते भी नहीं,मसलन:
इनमे से बहुत से लोग तो राष्ट्रगान राष्ट्रीय गीत कहते हैं।
इनको देश के राष्ट्रीय पशु, पक्षी, वगैरह किसी चीज़ से कोई सरोकार नही , और ना ये इन सब चीजों के बरे में जानते हैं॥
क्या इंडिया ही विकास करेगा , भारत नहीं?
ये सवाल कब अपना उत्तर पायेगा , ये तो अभी देखना है, हमें आपको, और भारत देश की करोड़ों अरबों की जनसंख्या को..

4 comments:

रीतेश रंजन said...

कृपया भाषा से जुडी अशुद्धियों को नज़रंदाज़ करें, ना चाहते हुए भी ये रह गयीं हैं..इसके लिए मुझे माफ़ करें.

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत अच्‍छा लिखा है, आज मैने एक और बात देखी एक बारात में गया था वहॉं कुछ बच्‍चे लाईट बल्‍ल उठाये हुऐ थे जो 10 से 16 साल के थे। क्‍या यही है भारत का विकाश

Anonymous said...
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परमजीत सिहँ बाली said...

यह बिकुल सच है कि हम कितना भी ढंढोरा विकासशीलता का पीटॆ,लेकिन गरीब और अमीर के बीच की खाई और बड़ती जा रही है।