प्रिया बसी है सांस में मादक नयन कमान
छब मन भाई,आपकी रूप भयो बलवान।
सौतन से प्रिय मिल गए,बचन भूल के सात
बिरहन को बैरी लगे,क्या दिन अरु का रात
प्रेमिल मंद फुहार से, टूट गयो बैराग,
सात बचन भी बिसर गए,मदन दिलाए हार ।
एक गीत नित प्रीत का,रचे कवि मन रोज,
प्रेम आधारी विश्व की , करते जोगी खोज । ।
तन मै जागी बासना,मन जोगी समुझाए-
चरण राम के रत रहो , जनम सफल हों जाए । ।
दधि मथ माखन काढ़ते,जे परगति के वीर,
बाक-बिलासी सब भए,लड़ें बिना शमशीर .
बांयें दाएं हाथ का , जुद्ध परस्पर होड़
पूंजी पति के सामने,खड़े जुगल कर जोड़
4 comments:
बढ़िया दोहे हैं.
THANKS
बहुत बेहतरीन दोहे हैं।सभी दोहे अच्छॆ लगे। लिखते रहें।
बहुत ही खूबसूरत रख्चना रची है आपने बधाई।
मुझे नही लगता कि इन्हे दोहे कहे जाने चाहिऐ क्योकि दोहे को जब मांत्रा की कसौटी पर रखा जाता है तो प्रथमऔर तीसरे भाग में 13-13 तथा दूसरे और चौथे भाग में 11-11 मात्राएँ होती है।
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