महिला दिवस पर एक चिंतन "चिंता नहीं चिंतन की ज़रूरत है"
महिला सशक्तिकरण की चिंता करना और समाज के समग्र विकास में महिलाओं की हिस्सेदारी पर चिंतन करना दो अलग-अलग बिन्दु हैं ऐसा सोचना बिलकुल गलत है । लिंग-भेद भारतीय परिवेश में मध्य-कालीन देन है किन्तु अब तो परिस्थितियाँ बदल रहीं है किन्तु बदलती तासीर में भी महिला वस्तु और अन्य वस्तुओं के विक्रय का साधन बन गयी है। अमूल माचो जैसे विज्ञापन इसके ताज़ा तरीन उदाहरण हैं .क्या विकास के इस फलक पर केवल विज्ञापन ही महिलाओं के लिए एक मात्र ज़गह है...? ऑफिस में सेक्रेटरी,क्लर्क,स्टेनो,स्कूलों में टीचर,बस या इससे आगे भी-"आकाश हैं उनके लिए॥?"हैं तो किन्तु यहाँ सभी को उनकी काबिलियत पे शक होता है .होने का कारण भी है जो औरतैं स्वयम ही प्रदर्शित करतीं हैं जैसे अपने आप को "औरत" घोषित करना यानी प्रिवलेज लेने की तैयारी कि हम महिला हैं अत:...हमको ये हासिल हों हमारा वो हक है , .... जैसा हर समूह करता है।.....बल्कि ये सोच होनी चाहिए कि हम महिलाएं इधर भी सक्षम हैं...उस काम में भी फिट...! यहाँ मेरा सीधा सपाट अर्थ ये है की आप महिला हैं इसका एहसास मत .होने दीजिए ...सामाजिक तौर पे स्वयम को कमजोर मत सिद्ध करिए ... वरन ये कहो की-" विकास में में समान भागीदार हिस्सा हूँ.....!"दरअसल परिवार औरतों को जन्म से औरत होने का आभास कराते हैं घुट्टी के संस्कार सहजता से नहीं जाते ।आगे जाते-जाते ये संस्कार पुख्ता हो जातें हैं।मसला कुल जमा ये है कि महिला के प्रति हमारी सोच को सही दिशा की ज़रूरत है...वो सही दिशा है समग्र विकास के हिस्से के तौर पर महिला और पुरुष को रखने की कोशिश की जाए॥
इस संबंध कानून और सरकारों के अपने-अपने वादे थे सो पूरे किए जा रहे है जैसे महिला उत्पीडन, को रोकने के कानून,भ्रूण हत्या के खिलाफ़ प्रिवेंसन,घरेलू हिंसा को रोकने के लिए कानून, किन्तु समाज में कानूनों का कितना सम्मान किया जा रहा है , कैसे कानून से खुद को बचाने के तरीके खोजे जा रहें हैं सभी समझते हैं। अब तो ज़रूरत है सामाजिक जागरण की यही जागरण महिलाओं की स्थिति में सुधार, को सही दशा और दिशा मिलेगी
5 comments:
आपका कथन सर्वथा सत्य है मित्र, आरक्षण वो मांगते हैं जो खुद को कमजोर मानते हैं....
जिनको खुद पर पूरा विश्वास होता है, उन्हें आरक्षण की जरुरत नहीं होती...और महिलाओं की हालत सुधरने के लिए सारे समाज को गोलबंद होना होगा,
और ये याद करना होगा की भारत मत्रिसत्तात्मक राज्य हुआ करता था, और इस राज्य के लोग अभी भी महिलाओं का सम्मान करते हैं..
वैसे अपने मनुस्मृति से लिया एक श्लोक है जो मैं आप लोगों कोयाद दिलाना चाहता हूँ.....
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः,
यत्र ना पूज्यन्ते, सर्वास्तात्रफ्ला: क्रिया .
महिला अपनी दशा के लिये स्वयं जिम्मेदार है, एक लड़की पैदा होने पर सबसे ज्यादा शोक महिला को ही होता है।
अच्छा लेख है ।
घुघूती बासूती
आप की टिप्पणीयों ने उत्साहित किया है...
अशेष आभार आप का
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