24 July 2015

प. पू. डॉ. हेडगेवार ने कहा -

संगठन ही राष्‍ट्र की प्रमुख शक्ति होती है। संसार में कोई समस्‍या हल करनी हो तो वह शक्ति के आधार पर ही हो सकती है। शक्तिहीन राष्‍ट्र की कोई भी आकांक्षा कभी भी सफन नही होती। पर सामर्थ्‍यशाली राष्‍ट्र कोई भी काम, जब चाहे तब, अपनी इच्‍छानुसार कर सकता है।

16 July 2015

21वीं सदी में मीडिया के समक्ष चुनौतियां व भविष्य

भारतीय लोकतंत्र के स्थाई स्तंभ न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका के बदलते स्वरूप से आज लोकतांत्रिक मूल्यों में दिन पर दिन गिरावट आती जा रही है, जिससे पूरा देश गंभीर संकट के बीच उलझता जा रहा है। पत्रकारिता इसी लोकतंत्र का चौथा स्थाई स्तंभ है। जिसकी सजग भूमिका इस बदलते परिवेश की पृष्ठभूमि को सकारात्मक दिशा की ओर मोड़ सकती है। ऐसे समय में मीडिया जो पत्रकारिता की महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि है, के समक्ष गंभीर चुनौतियों का खड़ा होना स्वाभाविक है तथा उसकी कार्य प्रणाली पर निर्भर है इसका भविष्य। इतिहास साक्षी है। देश पर जब-जब भी गंभीर संकट आया है, पत्रकारिता की सजग पृष्ठभूमि ने ही सही दिशा में मार्ग प्रशस्त कर समूचे देकश को जागृत किया है। इसके आलोक में दुश्मनों को पहचानने एवं उससे लड़ने की उर्जा सदैव मिलती रही है। इसी कारण आज तक इस स्तंभ की साख पूरे देश ही नहीं, विश्व स्तर पर सर्वोच्च बनी हुई है। पूरा तंत्र इससे भयभीत रहता है। तथा इसकी सजग निगाहों के समक्ष खडे होने की किसी में भी गलत तरीके से हिम्मत नहीं होती।
स्वतंत्रता आन्दोलन की पृष्ठभूमि पर नजर डाले तो इसके जागरूक स्वरूप को देखा जा सकता हैं जहां देश को आजाद कराने की दिशा में सक्रिय भूमिका निभाने वाले देशभक्तों ने इसका सहारा लिया। आवाज को जनता तक पहुंचाने उन्हें जाागृत करने में प्रतिबंध लगने के बावजूद भी ऐन-केन प्रकारेण समाचार पत्र निकाले जाने तथा वितरित किये जाने का प्रकरण सभी भली भांति जानते है। लाला लाजपत राय, माखन लाल चतुर्वेदी की कलम को इतिहास कभी भूला नहीं सकता। अनेक गुमनाम एवं चर्चित नाम भी इतिहास के पृष्ठों में अमर पृष्ठभूमि बना चुकें है। जिनकी सजग कलम, प्रखर आवाज ने सदियों की दास्ता से मुक्ति दिलााई। आज फिर से देश गंभीर संकट से गुजर रहा है, जहां लोकतंत्र के स्तंभों में प्रमुख न्यायपालिका, विधायिका, एवं कार्यपालिका का मूल स्वरूप दिन पर दिन स्वार्थ की परिधि में उलझकर बदलता जा रहा है।
विधायिका के बदलते जा रहे स्वरूप का साक्षात प्रमाण यहां के संसद एवं विधायक भवन दे रहें है। जहां गंभीर चिन्तन की जगह असभ्यता के पांव पसारते जा रहे है। दागी ही दगा से पूछ रहा है दागी कौन है। बाहुबल एवं अर्थबल के बढ़ते प्रभाव ने इसकी काया ही बदल गई है। अपराध पर अपराध करते जाइये और जब तक न्यायालय अंतिम रूप से अपराधों न मान लें किसे हिम्मत है जो अपराधी कह दे। न्यायालय भी जब कब्जे मे हो तो निर्णय का मजबूरन पक्ष में होना भी स्वाभाविक है। इस तरह की बदलती पृष्ठभूमि से भी सभी भलीं भांति परिचित है।
जहां न्याय पालिका की बदलती पृष्ठभूमि को आसानी से देखा जा सकता है। आने वाले समय में पक्ष विपक्ष की एकात्मक भूमिका न्यायपालिका के स्वतंत्र वजूद को लील जाने को तैयार बैठी है। कार्य पालिका का स्वरूप भी किसी से अपरिचित नहीं, जिस पर ऐन-केन प्रकारेण विधायिका का वर्चस्व स्वहित में देखा जा सकता है। वैसे कार्य पालिका पर नियन्त्रण हेतु विधायिका होती है, यह पहलू राष्ट्रहित एवं जनहित में सही तो माना जा सकता है। परन्तु जब विधायिका का कार्यपालिका पर नियन्त्रण राष्ट्रहित एवं जनहित को ताक पर रखकर स्वहित में होने लगे तो इस तरह का परिवेश निश्चित रूप से लोकतंत्र के लिए घातक है। आजकल कुछ इसी तरह की पृष्ठभूमि ज्यादा बनती जा रही है। जिसके कारण सरकार बदलते ही कार्यपालिका का स्वरूप बदल जाता है। ऐसे परिवेश में सही कार्य को मूर्त रूप दे पाना कतई संभव नही हो पाता। इस तरह के परिवेश 21वीं सदी की ओर बढ़ते कदम में स्वतंन्त्र सर्वाधिक बनते जा रहे हैं, जहां लोकतंत्र के अस्तित्व के समक्ष गंभीर संकट खड़ा है।
देश में बढ़ता आतंकवाद, भ्रष्टाचार, लूटपाट अनैतिक गतिविधिंयों की भरमार इस बदलते परिवेश की देन हैं। जहां न्यायपालिका भी जब स्वतंत्र पृष्ठभूमि नहीं बना पा रही है। विधायिका क्षेत्र में बढ़ते अनैतिक कदम लोकतंत्र के वास्तविक स्वरूप को ही बदलते जा रहे है। जहां देश का बुध्दिजीवी वर्ग कुंठित हो चला है। यह स्थिति निश्चित रूप से सभी के लिए घातक है। ऐसे परिवेश में जहां विधायिका हर प्रकार से लोकतंत्र के सजग स्तंभों पर हावी होती जा रही है, पत्रकारिता को इस दूषित वातावरण से अपने आपको अलग खड़ा कर अपनी पहचान बनानी होगी, तभी 21वीं सदी में पत्रकारिता का भविष्य सुरक्षित हो पायेगा। आज अर्थयुग का परिवेश चारों तरफ हावी नजर आ रहा है। इस परिवेश के बीच अपने वास्तविक स्वरूप को खड़ा करना एवं उजागर कर पाना मीडिया के समक्ष गंभीर चुनौतिया है, जिसे लीलने को विधायिका तैयार बैठी है। आज समूचा देश फिर से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता की ओर आत्मविश्वास के साथ आत्मरक्षा कवच पाने की लालस देख रहा है। जहां इस भ्रष्ट होती जा रही व्यवस्था को दूर करने का मार्ग प्रशस्त हो सके। यह आजादी पाने की दिशा मेें नई जग की शुरूआत मानी जाएगी। जहां मीडिया को आज तड़क-भड़क आर्थिक युग की पृष्ठभूमि में अपनी पहचान बनाये रखनी होगी। यही 21वीं सदी की मीडिया के समक्ष गंभीर चुनौतियां है। तथा इसकी सफलता में उसका भविष्य सुरक्षित है।

03 July 2015

क्‍या आप सही हिन्‍दी लिख रहे है ?

अक्सर हम हिन्दी को लेकर दुविधा में रहते हैं, कि क्या हम सही बोल/लिख रहे है? इसका मुख्‍य कारण यह है कि हम गलत लिखते है इसलिये गलत उच्चारण भी करते हैं। जैसे कुछ लोग हिन्दी को हिन्दि, मालूम को मालुम या मलूम, विष का विश या विस और स्थान को अस्थान आदि लिखते है। यही कारण है कि वे बोलने में भी लिखने के अनुसार उच्चाकरण करते है। आज से हिन्दी की कक्षा शुरू हो रही है, इस कक्षा में हम कुछ ऐसे ही शब्दों ठीक करने का प्रयास करेगें।
गलत शब्‍द
सही शब्‍द
अस्‍पष्‍ट
स्‍पष्‍ट  
अस्‍कूल
स्‍कूल  
अस्‍थान
स्‍थान  
अछर, अच्‍छर
अक्षर
अस्‍नान
स्‍नान  
अस्‍पर्श 
स्‍पर्श  
गिरस्‍थी
गृहस्‍थी 
बेजजी, बेज्‍जती 
बेइज्ज़ती
स्त्रि, इस्‍त्री     
स्‍त्री
छिन भर, छन भर
छण भर
भगती, भक्‍ती
भक्ति
इस्थिति
स्थिति
छमा   
क्षमा   
मतबल 
मतलब
उधारण 
उदाहरण
ज़बरजस्‍ती     
जबरदस्‍ती
मदत  
मदद
उमर
उम्र   
नखलऊ, लखनउ
लखनऊ
मुकालबे
मुकाबले
अस्‍‍तुति
स्‍तुति
प्रालब्‍ध 
प्रारब्‍ध
शाशन, सासन, साशन,  
शासन 
बिद्या  
विद्या
शाबास 
शाबाश 
ग्यान
ज्ञाऩ
छत्रिय  
क्षत्रिय  
अधिकतर लोग इन शब्‍दों में हमेशा गलती करते है। कुछ ऐसे अक्षर भी जिनके कारण यह गलती हमेशा होती रहती है। वे अक्षर है- इ/ई, उ/ऊ, ए/ऐ, ओ/औ, स/श/ष, घ/ध और क्ष/छ को लिखने में गलती करते है, और यही कारण है कि हम लिखने के साथ बोलने में भी अशुद्धि दिखाते है।
गृहकार्य- यदि आपको भी कुछ ऐसे शब्दो का ज्ञान हो जिनका उच्‍चारण गलत होता है, बताइयेगा ताकि अगली कक्षा में उसे समायोजित किया जाय। अगली कक्षा के गुरूजी प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह रहेगें, बड़े शख्‍़त गुरूजी है उनसे बच कर रहना।