31 December 2007

दुनिया बोले 'हैप्पी न्यू ईयर'

आज नये साल की नई शुरूआत है। आप लोग विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम तैयार किये होंगे। कल की रात धूम-धड़ाके के साथ बिताने के बाद फिर से नई ताजगी का अनुभव कर रहे है। अगर मस्ती के साथ-साथ कुछ जानकारी हो जाये तो क्या बात हैं! तो चलिए जानते है न्यू ईयर सेलिब्रेशन के बारे में जो अनेक देशों में किस प्रकार मनाते है।

न्यू ईयर सेलिब्रेशन की शुरूआत बेबीलोन में लगभग चार हजार साल पहले हुयी थी। पुराने समय में बेबीलोन में नये साल का आगमन बसंत के बाद निकलने वाले चंद्रमा के समय से माना जाता था। वसंत को बेबीलोन में 'वर्नल एक्यूनिक्स' कहा जाता है। स्प्रिंग के बाद नया साल इसलिए माना जाता है, क्योंकि इसी ऋतु के बाद दोबारा सभी ऋतुएं शुरू होती है, नई फसल उगती है और चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिलते है। यहां पर न्यू ईयर सेलिब्रेशन ग्यारह दिनों तक चलता है। इसके बाद रोम के राजा जूलियस सीजर ने ही नये कैलेंडर को भी बनाया था, जिसमें वर्ष को बारह महीनों में बांटा था, जिसमें साल की शुरूआत जनवरी महीने से होती थी। इसी के अनुसार एक जनवरी को ही नया साल माना जाने लगा, जो आज तक ज्यादातर देशों में प्रचलित है।

पश्चिमी देशों जैसे ब्राजील, वेनेजुएला, फिलीपींस, अर्जेटाइना, यूके, यूएस आदि देशों में 31 दिसम्बर की रात से पहली जनवरी तक न्यू ईयर सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन यहां छुट्टी भी होती है अगर नए साल के इस पहले दिन शनिवार या रविवार होता है, तो इससे एक दिन पहले ही छुट्टी की घोषणा कर दी जाती है।

नये साल को मनाने का अंदाज चीन में साल का पहला चंद्रमा जब निकलता है, तभी से नया साल माना जाता है, जिसे 'यूआन टेन' कहा जाता है यह 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच कभी भी पड़ सकता है। इस दिन छुट्टी होती है। यहा न्यू ईयर पर खूब पटाखे चलाने के साथ ही कई जगहों पर परेड या स्ट्रीट प्रॉसेशंस आदि का आयोजन भी किया जाता है।

वियतनाम में भी चीन की तरह ही नया साल मनाया जाता है। यहां भी नये साल की शुरूआत चंद्रमा के निकलने से ही होती हैं। चीन के लोग मानते है कि इस दिन चलाए जाने वाले पटाखों से डरकर बुराइंया भाग जाती है। कई बार ये लोग अपने घर के खिड़की व दरवाजों को पेपर से सील कर देते हैं ताकि डरकर भाग रही बुराइयां कहीं घर में प्रवेश न कर जायें।

भारतीय या हिंदू नववर्ष तो दीपावली के दो दिन बाद से ही शुरू हो जाता है। इस तरह यह अधिकतर नवंबर में ही पड़ता है। हां, एक जनवरी को न्यू ईयर इसलिए मनाया जाता है क्योंकि जनवरी से दिसम्बर वाला कैलेंडर ही ज्यादातर देशों में मान्य है, जैसे इंग्लिश लैंग्वेज को इंटरनेशनल कहा गया है, वैसे ही यह कैलेंडर भी इंटरनेशनल हैं। हमारे देश में भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से नया साल मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में नये साल पर पिंक, रेड, पर्पल या वाइट ड्रेसेज पहनी जाती है। यहां की लड़कियां पीले रंग के कपड़े पहनना पसंद करती हैं, जो बसंत का द्योतक माना जाता है। केरल में मम्मी-पापा अपने बच्चों को एक सुंदर सी ट्रे में छोटे-छोटे गिफ्टस रखकर देती है।

कैलीफोर्निया, यूनाइटेड स्टेट आदि में एक जनवरी को परेड का आयोजन किया जाता है, जिसे रोज परेड कहा जाता है। इस परेड को वहां टीवी, रेडियो पर टेलीकास्ट भी किया जाता है और लाखों लोग इसे बड़े चाव से देखतें है।

न्यूयार्क मे एक क्रिस्टल बॉल को 31 दिसम्बर की रात ग्यारह बजकर उनसठ मिनट पर उछाला जाता है और यह बारह बजे वापस आती है। इस बॉल के वापस आने का इंतजार किया जाता है और जब यह वापस आ जाती है, तो शुरू हो जाता है न्यूयार्क का नया साल।

साउथ कोरिया में वहां की फेमस जगह 'जंग डोंग जिन' तक लोग ट्रेवल करते हैं क्योकि यहां से साल के पहले दिन उगते हुए सूरज को सबसे पहले देखा जा सकता है और इसे देखना कोरियन लोगों के अनुसार बहुत शुभ माना जाता है।

आस्ट्रेलिया का न्यू ईयर सेलिब्रेशन दुनिया का सबसे अच्छा सेलिब्रेशन कहा जाता है। इस दिन यहां के लोग सिडनी के हार्बर ब्रिज पर इकट्ठे होकर हजारों पटाखे चलातें है।

थाईलैंड में 13 अप्रैल से 15 अप्रैल तक नये साल का स्वागत किया जाता है। इनका न्यू ईयर सेलिब्रेट करने का तरीका भी बहुत अलग है। यहां के लोग इस दिन एक-दूसरे पर पानी डालतें है। कंबोडिया मे भी 13 से 15 अप्रैल तक यह सेलिब्रेशन होता है।

जर्मनी और इंग्लैंड में क्रिसमस के साथ ही न्यू ईयर भी स्टार्ट हो जाता है। इस तरह से 25 दिसम्बर को ही नये साल का वेलकम करते है।

यूके में लोग एडिनबर्ग नाम की एक जगह पर पार्टी के लिए इकट्ठे होते है। कुछ लोग फेमस हिल्स या कैसल्स आदि पर जाकर न्यू ईयर सेलिब्रेट करना पसंद करते है। नये दिन की शुरूआत होने पर टीवी और रेडियो पर ब्रॉडकास्ट करने के साथ ही सभी लोग एक ट्रेडिशनल सांन्ग गाते है।

स्पेन में लोग एक खास जगह 'ला पुअर्टा डेल सोल' में इकट्ठे होकर नये साल के शुरू होने का इंतजार करते है। सभी लोग टीवी पर रात के ग्यारह बजकर, उनसठ मिनट, अड़तालिस सेकंड पर उल्टी गिनती सुनते हुए हर एक सेकंड के लिए एक-एक ग्रीन अंगूर खाते है।

रोम में एक मार्च को नये साल की शुरूआत मानी जाती थी। एक जनवरी को नये साल की शुरूआत यहां जूलियस सीजर ने 46 बीसी में की थी।

फ्रांस के लोगों की मान्यता है कि नये साल को मरे हुए लोग, जो भूत बन जाते हैं, वे इस दिन जिंदा लोगों को मारने की कोशिश करते है। इस दिन ये इन भूतों को भगाने के लिए पूजा करते है। यहां नये साल की शुरूआत अक्तूबर माह में मानी जाती है।

नववर्ष आपके लिये मंगलमय हो...

सजधज के जैसे ही नववर्ष मनाने हम घर से निकले,
राह मे अचानक एक बच्चे को देख कदम संभल गये,
नहीं नही वो बच्चा मामूली नही था,
वह कूडों के ढेर मे, अपना भविष्य खोज रहा था,
बचपने मे ही, बडों जैसी सिलवटे उसके माथे पर दिख रहा था.
मेरे दिल मे अचानक ख्याल आया, हर तरफ नये वर्ष की धूम है,
फिर ये छोटा सा बच्चा, क्यों इतना खामोश और गुम है??
और मैने डरते डरते उससे ये सवाल पूछ डाला,
उसने बडी मासूमियत से मुझको देखा, और बोला,
साहब हजारों की सूट पहनने के बाद, आपको खामोशी दिखती है,
पर वो भूख नही दिखता,
जो मै इन कचडों से भरने की कोशिश कर रहा हुँ,
और आप किस नये साल की बात कर रहे हैं,
हमारे लिये तो हर दिन एक भूख ले कर आता है,
और जिस दिन, बगैर गाली और मार के,
भर पेट खाना मिल जाता है,
हमारा तो नया साल उसी दिन आ जाता है.
हॉ साहब मुझे पता है, आज करोडो रुपये,
कबाब,शावाब और पार्टी के नाम पर उडाये जायेगें,
और जो नेता,अभिनेता,समाजसेवक नये वर्ष मे,
कहीं नये भारत की बात कर रहे होगें,
आज अपनी जूठन इसी कचडे मे फेंक कर जायेगें,
और कल हम भी उसी जुठन से अपने पेट को भर,
शायद नये साल का जश्न मनायेगें.
और आप जो खुद को युवा पीढी बोलते हो,
मेरी बात सुन दो मिनट के लिये शायद सोच मे पड जाओगे,
और फिर कुछ नही बदलने वाला है,ये बोल,आप भी सब कुछ भूल जाओगे.

नववर्ष आपके लिये मंगलमय हो...

नववर्ष मंगलमय हो

"महाशक्ति समूह" परिवार की ओर से आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऐं। नववर्ष आप, आपके परिवार वह आपके मित्र जनों के लिये मंगलकारी हो। ऐसी ईश्‍वर से प्रार्थना है।

                                                 महाशक्ति समूह

29 December 2007

आज रूबरू हम उनके जज्‍बात से होंगे

आज रूबरू हम उनके जज्‍बात से होंगे,
मना लेंगे अगर खफ़ा किसी बात से होगें,

आज शाम उनका दीदार करेंगें,
मिलकर उनसे कुछ इज़हार करेंगें
जो कभी नही हुए बो परेशां आज रात से होगें,
आज रूबरू.....

जब आँखों में आँखें डालकर,
शर्म का पर्दा उतारकर,
मिलेंगें हम,
वो भर कर आहें इस मुलाकात से होगें।
आज रूबरू.....

जब उड़ेगा उनका दुपट्टा हवाओं सें,
हम घायल होंगें उनकी अदाओं सें,
हम दोंनों के दिल में कुछ एक हादसें होगें
आज आज रूबरू.....

कभी बालों को बिखेरकर,
होठों पे अगुंलियॉं फेरकर,
लेकर हाथों में हाथ उनका,
आज हम आजाद से होगें,
आज रूबरू.....

26 December 2007

क्रिसमस पर 242 ईसाई परिवारों की घर वापसी

क्रिसमस के अवसर पर उत्तर प्रदेश और उड़ीसा के 242 ईसाई परिवारों ने हिंदू धर्म में वापसी की। जो यह बात दर्शाती है कि आज के दौर में धर्मान्‍तरण जबरन हो रहा है। जो भी ये ईसाई हिन्‍दू बने है भूत में उन्‍हे बरगला फुसलाकर ईसाईत्‍व का जामा पहनाया गया था। आज इनकी वापसी इसलिये हो पाई है कि इनकी आस्‍था पर आज भी राम और कृष्‍ण है और ये हृदय से भारतीय है।

खबर है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के तीस गांवों के दो सौ ईसाई परिवारों ने मंगलवार को हिंदू धर्म अपनाया।ये परिवार धर्म जागरण समिति के बैनर तले सरस्वती विद्या मंदिर में जमा थे। विद्यालय परिसर में हवन यज्ञ का आयोजन हुआ। इन लोगों का कहना है कि ईसाई मिशनरी ने प्रलोभन देकर ईसाई धर्म ग्रहण कराया था।

राउरकेला से मिली खबर के अनुसार, मंगलवार को विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में 42 परिवारों के 187 सदस्यों ने हिंदू धर्म में वापसी की। मंगलवार को जिले के नुआगांव ब्लाक स्थित चिकिटिया गांव में विहिप ने परावर्तन कार्यक्रम का आयोजन किया था। यहां पंडितों ने इन परिवारों का शुद्धिकरण किया। उसके बाद इन लोगों को हिंदू देवी-देवताओं के लाकेट एवं फोटो दिए गए। हिंदू धर्म में वापसी करने वाले सभी आस पास के गांवों के निवासी हैं।

सभी के हिन्‍दू धर्म में पुन: शा‍मिल होने पर हार्दिक बधाई।

25 December 2007

हिन्‍दुओं को समाप्‍त करना जरूरी

म्‍यामार का हिन्‍दू यदि अपने अधिकारों की बात करता है तो उसे बुरे परिणाम के लिये तैयार रहने का कहा जाता है। वह समानता की बात कह नही सकता, उसे समानता मिल नही सकती, वह वहॉं पूजा करने को स्‍वतंत्र नही को‍ई सर्वाजनिक उपासना नही कर सकता है। घर में भी वह घन्‍टी नही बजा सकता है। उस पर कई तरह के प्रतिबन्‍ध है। यह प्रतिबन्‍ध एक मुस्लिम राष्‍ट्र का प्रतिबन्‍ध है। यहॉं उदारता भाई चारा सौहार्द जैसे शब्‍द नही है। यहॉं किसी की धर्मिक भावना को कोई मतलब नही, यहॉं अभिव्‍यक्ति की स्‍वत्रंत्रता भी नही, यहॉं कलाकारों की कला भी स्‍वतंत्रता नही है। इससे मिलता जुलता हाल तमाम मुस्लिम राष्‍ट्रों को है। वो जहॉं ताकत में है वहॉं दूसरो की कोई आवाज नही है।

हिन्‍दुओं को संगरक्षण देने का काम केवल भारत ही कर सकता है। किन्‍तु यहॉं के हाल अत्‍यन्‍त खराब है हजारों वर्ष से लुटता पिटता और संघर्ष करता हिन्‍दू आज सच्‍चाई समझ नही पा रहा है। वह आज भी शान्ति शद्भाव व भाई चारे की बात करता है। ‘सर्वभवन्‍तु सुखिन:’ उसका शीर्ष वाक्‍य है। ऐसे में कुछ ऐसे हिन्‍दु नाम भी है जो छुद्र लाभ के लिये हिन्‍दुओं को ही गाली देते है। कितना भी बड़ा आधात हिन्‍दुओं पर हो उन्‍हे आघात नही लगता। वह नही जनता कि शान्ति शान्ति कहने से शान्ति नही मिलती है। शान्ति निर्माध के लिये अशान्ति के विषबीज को समाप्‍त करना होता है। शायद इसी शान्ति के चाहत में हमने पा‍किस्‍तान बनाया, इसी शान्ति के चाहत में अनुच्‍छेद 370 लगाया इसी शन्ति के चाहत में अनेको तरह की छूट दी, किन्‍तु यह शान्ति हमसे दूर होती चली गई। हम अपने आपकेा अब सम्‍हाल नही सकते। हमें नही पता है कि हम सुबह घर से निकलने के बाद वापस भी आयेगे कि नही।

यह कहना अत्‍यन्‍त कठिन है कि देश में प्रचार-प्रसार पर किसका असर है? किसके इसारे पर यहॉं कि अपनी मीडिया ही अपने लोगों को डराने का काम कर रही है? हाल ही में तीन कचेहरियो में हुऐ बम विस्‍फोट के बाद मीडिया ने कहना प्रारम्‍भ किया कि आंतकवादियों ने वकीलों से बदला ले लिया। यह बदले की कार्यवाही है। वकीलों ने आंतकवादियों का केस न लड़ कर उन्‍हे नाराज कर दिया। एक ऐसा माहौल बनाया गया कि यहॉं के लोग यहॉं कि इस घटना से भयभीत हो जहॉं आतंकवादियों को जवाब देने के लिये, उनका मुकदमा न लडने के लिये साहस दिखने के लिये वकीलों की प्रशंसा होनी चाहिए थी वहॉं इनके साहस की प्रसंशा के स्‍थान पर आतंकवादियों की बुझदिली कुछ को वकीलों के मुँह पर तमाचा बताया गया1 यह बात मीडिया के भूमिका पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगाता है।

चौतरफा के हमलों से आज भारत लड़ रहा है। इसके जीवन वृत्‍त में युद्ध एक अहम् हिस्‍सा हो गया है अपेक्षा थी कि 1947 के अलगरव के बाद अमन और होगा किन्‍तु हमसे अमन औरर शान्ति दूर ही जा रही है। इस राष्‍ट्र की राजनीति के अन्‍दर राष्‍ट्र और राजनीति के वुनाव में राष्‍ट्र काफी पीछे जा रहा है। राष्‍ट्रीय विचारों की बात करने पर मीडिया हाय तौबा मचाता है। उसे राष्‍ट्रीय विचार धारा लोगों को सताने वाली लगती है।आज की मीडिया को क्रान्तिकारियों और आतंकवादियों में कोई अन्‍तर नही समझ आता। ये क्रान्तिकारियों की तुलना आतंकवादियों से करने है, नही पता ऐसा करने से इन्‍हे कैसी शान्ति प्राप्‍त होती है? किन्‍तु इससे यह स्‍पष्‍ट होता है कि यहॉं कट्टरता बढ़ रही है। इस देश में दिल्‍ली से कन्‍याकुमारी तक का मुस्‍लमान 370 का पक्ष लेता है। इस देश के मुसलमानों के दबाव में तसलीमा की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता तार तार होती है। इस देश के मुसलमानों के डर से सलमान रूशदी को देश छोड़ना पड़ा। इस देश के मुसलमानों के भय से ही सरकार अफजल को फांसी देने से कतरा रही है किन्‍तु अतने के बाद भी मुसलमान इस देश का है। सारी घटना के लिये हिन्‍दू दोषी है। तभी तो सिर्फ और सिर्फ देश में दो ही दंगे हुऐ एक गुजराज का दूसरा मुम्‍बई का बाकी पूरा देश शान्‍त बना रहा। किसी दंगे में कोई हिन्‍दू मारा गया तो भी भी दंगा है। इसी लिये मऊ, कानपुर हैदराबाद, अलीगढ़ भोपाल, नागपुर और केरल आदि के दंका कही कोई जिक्र नही होता। खुले आम कुछ लोग आतंकवाद को सहारा दे रहे है उन पर कोई ऊँगली नही उठाता। फूलपुर के आंतकवादी की गिरफतारी के बाद घंटो जाम हुआ यह चर्चा का विषय नही होता।

आज हिन्‍दू अपने सीमित संसाधन से पूरे विश्‍व को शान्ति का संदेश दे रहा है। अनेकता में एकता का उदाहरण दे रहा है। विविध विचारों के बावजूद युद्धहीन समाज के निर्माण का अनोखा उदाहरण विश्‍वमें एक मात्र यही है। विकास-विचारों की स्‍वतंत्रता से होता है जहाँ हर किसी को सम्‍मान मिले वही प्रतिभा पनफती है इन सभी विशेषता के बावजूद हिनूद को समाप्‍त करना आज कुछ लोगों को जरूरी लग रहा है क्‍योकि यही वह विचार धारा है जो उनके मनसूबे पर पानी फेरता है। इसलिये इसे भारत में पल्‍लवित होना ही चाहिऐ और भारत को विश्‍व के किसी भी हिन्‍दू पर हो रहे अत्‍याचार के खुल का बोलना चाहिए।

23 December 2007

विकास का सौदागर

भोर की पहली किरण जवान होने के साथ ही गुजरात की जनता को चिंता सताने लगी थी कि कमल खिलेगा या पंजा। लेकिन धीरे-धीरे कमल की पंखुड़िया जागृत होने लगी और दोपहर तक कमल रूपी सूर्य का उदय हो गया। कमल खिला परन्तु इसके पंखुड़ियों में कमी के साथ मुरझाया रहा।
गुजरात विधान सभा चुनाव के 182 सीटों का परिणाम 23 दिसम्बर को सुबह आठ बजे मतगणना के साथ प्रारम्भ हुआ। आम जनता और विभिन्न पार्टियों के शीर्ष नेताओं तथा कार्यकर्ताओं ने अपनी पार्टी की जीत के लिए प्रार्थना करते नजर आये। सारी अटकलों, विवादास्पद बयानों, वाकयुध्दों के बीच समाप्त हुए इस चुनाव को विराम लगाते हुए भाजपा ने अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी कांग्रेस को बुरी तरह परास्त कर दिया। 182 सीटों में भारतीय जनता पार्टी ने 117, कांग्रेस ने 62 तथा अन्य ने तीन सीटें प्राप्त की। इनके अलावा अन्य कोई बड़ी राष्ट्रीय पार्टी ने खाता भी नही खोल पायी। भाजपा ने पिछली बार 127 एवं कांग्रेस ने 51 सीटें प्राप्त की थी। जब कि बहुमत के लिए 92 सीटों की जरूरत थी।
गुजरात राजनीति की नब्ज टटोलने वाले नरेंन्द्र मोदी ने लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री का ताज पहना। चुनावी सभाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने विकास का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाया था। इसी का परिणाम रहा कि नरेन्द्र मोदी ने अपने निकटम प्रतिध्दंदी कांग्रेसी पटेल को सत्तासी हजार के बड़े अन्तर से हराया। इस निर्णायक जीत में गुजरात की जनता ने मुख्यमंत्री के विकासवादी दृष्टिकोण को काफी पसंद किया और दो तिहाई से अधिक बहुमत दिलाकर एक बार फिर 'विकास के सौदागर' को गुजरात की गद्दी सौंपी है। मोदी ने स्पष्ट बहुमत पाने के बाद प्रदेश वासियों को बधाई देते हुए कहा कि नये-नये शब्द प्रयोगों के बावजूद हमने गुजरात विरोधियों को परास्त किया। और 'जीतेगा गुजरात' का नारा सफल हुआ।
गुजरात की जागरूक जनता ने नकारात्मकता को नकारा। हिन्दुत्व और विवादास्पद भाषणों, सोहराबुद्दीन हत्याकांड जैसे विभिन्न मामलों से अपने को अलग रखते हुए एक नैतिक, विकासशील, प्रबुध्द चिंतन विचारधारा वाले व्यक्ति को सत्ता की बागडोर सौंपी है। इसमें कहीं कोई संदेह नही है कि गुजरात में यदि पांच वर्षो में सिर्फ एक बार बड़ी हिंसा होती है या अन्य सरकार के रहते हुए प्रत्येक वर्ष में छोटे-छोटे कई हिंसात्मक घटनाएं होती है तो कौन उचित होता है?
चुनावी सभाओं के दौरान मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को 'मौत का सौदागर' संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था लेकिन मोदी अब 'विकास का सौदागर' कहलायेंगे। कल ही चुनाव आचार संहिता के उलंघन में चुनाव आयोग ने उन्हे कड़ी चेतावनी देते हुए क्षमा कर दिया।
बार-बार के तख्तापलट से विकास के गति में अवरोध उतपन्न होता। लेकिन तीसरी बार बन रहे मुख्यमंत्री से गुजरात जैसे प्रदेश को विकास की गति मिलेगी। अपने साथ सभी पार्टियों को लेकर कार्य करेगें वादा भी किया। मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ताईस दिसम्बर को शपथ ग्रहण लेंगे। मोदी की इस जीत पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मोदी को बधाई देने से न रह सकें। यह मोदी के मोदित्‍व को ही दर्शाता है, कि गुजरात में हिन्‍दुत्‍व की गंगा के साथ विकास की नर्मदा भी बही है।

नरेन्द्र मोदी की जीत की बधाई सन्देश



भारत मां की पीड़ा का स्वर, फिर आज चुनौती देता है।
अब निर्णय बहुत लाजमी है, मत शब्दों में धिक्कारो।
सारे भ्रष्टों को चुन-चुन कर, चौराहों पर गोली मारो।
हो अपने हाथों परिवर्तन, तन में शोणित का ज्वार उठे।
विप्लव का फिर हो शंखनाद, अगणित योद्धा ललकार उठें।

यह जीत ना केवल नरेन्द्र मोदी की है यह जीत अच्छाई की बुराई पर जीत है। सच्चाई की झुठ पर है| यह जीत मौत के सौदागर का नही नवप्राण देने वाले का है। यह जीत भारतीय जनता पर्टी का नही हिन्दुस्तान मे रहने वाले हर देशभक्त का। राम का जीत है रावण पर। कृष्ण का जीत है कन्स पर।

नरेन्द्र मोदी एवम गुजरात की जनता जिन्होने नरेन्द्र मोदी को जीत मे सहयोग किया सभी वधाई के पात्र है।

21 December 2007

गंगा

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कहीं जल गई हैं लाशें,
कहीं राख उड़ती रही है।
कहीं फैलाकर तबाही का आलम,
ये गंगा किनारे में सिकुड़ती रही है।।

जोड़कर शहर से शहर,
हर दिल जुड़ती रही है।
तोड़कर पहाड़ी चट्टाने,
बेपरवाह मुड़ती रही है।।

चमकाकर मेरा देश हीरे की तरह,
हरियाली का पन्ना जड़ती रही है।
देकर हर दिल को खुशियों के पंख,
ये गंगा मन से मन तक उड़ती रही है।।
  • 30 नवम्‍बर 2004
कूछ दिनों पूर्व प्रमेन्द्र जी की गंगा मैने पढ़ी थी वह भी आपके साथ शेयर कर रहा हूँ। अगर अलग समय में लिखी दोनो कविताओं में मुझे भाव में काफी कुछ समानता दिखी है।

कल-कल करती छल-छल करती,
वह गंगा की जल धारा है।
लिये हृदय मे विश्‍वास सदा,
वह पवित्र जल धारा है।।

टकराती पाषण खण्‍डो से,
वह कभी न विचलित होती।
लिये विश्‍वास आत्‍मशक्ति का,
गंगा सदा प्रशन्‍नचित रहती।।

लिये सकल पाप-पापी मनुष्‍य का,
गंगा कभी न पापी बनती।
लिये आदर्श मनुष्‍य के आगे,
एक श्रेष्‍ठ उदाहरण देती।।

निर्मल जल की गंगा धारा,
जो साहस मार्ग सदा बताती।
खाकर ठोकर छिन्‍न भिन्‍न होकर,
फिर वह एक जल धारा बन जाती।।
  • जनवरी 2001

20 December 2007

अधिवक्‍ता बनाम मुंशी क्रिकेट मैच

विगत वर्षो की भातिं इस बार भी महाशक्ति क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इस क्रिकेट प्रतियोगिता में अधिवक्‍ता, मुंशी व उनके परिवार जनों की भागीदारी रहेगी।

मैच का आयोजन दिनॉंक 21/12/2007 को लूकरगंज खेल के मैदान में प्रात: 8 बजे से होगा। मैच के पश्‍चात करीब 12 बजे के बाद मुन्सियों के द्वारा समूहिक श्रमदान के के साथ बाटी चोखा की भी व्‍यस्‍था रहेगी। :) मैच तथा कार्यक्रम की अन्‍य जानकारियाँ आप तक पहुँचाई जायेगी।

कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि श्री भूपेन्‍द्र नाथ सिंह अधिवक्‍ता भारत निर्वाचन आयोग व पूर्व वरिष्‍ठ स्‍थाई अधिवक्‍ता भारत सरकार रहेगें।

19 December 2007

तुम


नज़र मुझे जब भी आये तुम,
मेरी घड़कनों में उतर आये तुम
अपनी ऑंखों मे शराब छिपाए तुम,
खोजते-खोजते जब मेरे पास आये तुम।।

मुझे लगता है आज रात आओंगें तुम,
मेरे सपने में एक झलक दिख जाओगें तुम
मेरे दिल की सुलगती आग को ब़ुझाओंगे तुम,
रात भर का सफर बिताकर नयी सुबह लाओंगे तुम

खोजता हूँ जहॉं जहाँ वहाँ हो तुम,
तुम्हाहरा हुस्ना है बेपनाह कहॉं हो तुम ?
ये जान लो मेरे दिल जहॉं हो तुम,
आईना बोलता होगा- तुम हसीं हो जवॉं हो तुम।।

मेरे राज हो, आवाज हो, आगाज तुम,
मेरे जीवन की मंजिज होसाजतुम।।
मेरे दिल में सोये आशिक के अंदाज तुम,
मेरे करीब हो मेरे तख्तेआ-ताज तुम।।

घर-घर से गुजरती डगर पर मेरे हम सफर तुम,
मेरे जान से ऊँचे मेरे जिगर तुम,
इधर उधर आस-पास जाते तुम,
कुछ पल गुजरे है अब तो आओं नज़र तुम।।

18 December 2007

महाशक्ति से ज्ञान

महान होना ही शक्ति है ‘महान’ जिसमें ‘म’ छोटा है और ‘ह’ बड़ा तथा ‘न’ भी छोटा है। तात्प र्य यह है कि जो छोटे (बच्चों ) को बड़ो (नौजवानों) और फिर प्रौढ़ों (बुर्जुगों) को साथ लेकर कार्य करता है। वही शक्तिशाली होता है एवं महान कहलाता है। कोई भी व्य क्ति महान तभी बन सकता है जब लोग उसे महान कहेगें, लोग आपको महान तभी कहेगें तब आप महान काम करेगें। महान करने के लिये आपके विचार भी महान होने चाहिऐ। केवल विचार महान होने से कार्य पूर्ण हाने वाला नही है। आप उस परिकल्प ना को मूर्त रूप दीजिए क्येा कि जब आपको सोचना है तो क्यों। न अच्छाल सोचे और आपको ही कार्य करना है तो क्योय न बड़ा करे। किसी भी कार्य को खूबसूरती से करने के लिये स्वकयं को ही करना चाहिऐं। कोई चीज पूर्ण नही होती है उसे सम्पूबर्ण बनाना होता है। हमें महाशक्ति बनना है तो खुद के विचार एवं कार्य को महानता से करना ही चाहिए। चाहे वह काम वह समाजिक, निजी या कैसा भी हो।

क्रमश: ..

17 December 2007

एक छोटी से प्रेम कहानी

आज सात साल बाद अचानक रुबिया को देख मनोहर के पॉव जैस थम से गये थे, और वह उसके सामने जा, इस हक से खडा हो गया जैसे आखिर उसकी तपस्या रंग ले आयी हो, और अब उसको रुबिया को अपना बनाने से दुनिया की कोई मजहबी दीवार नही रोक सकती.
उसे सात साल पहले के वो मंजर याद आ गये जब उसने पहली बार रुबिया को अपने कॉलेज मे देखा था, ठीक इसी तरह उस दिन भी तो वो अचानक खडा हो गया था और बस रुबिया को देखता जा रहा था, और रुबिया उसके बगल से स्टुपिड बोल हॅसती हुई चली गई थी. प्रेम धर्म और मजहब की दीवार को नही मानता, यही सोच मनोहर ने रुबिया के दिल मे प्यार जगाने के लिये क्या क्या जतन नही किये थे. रुबिया के छोटे पंसद से ले बडे पंसद के अनुसार खुद को बदल डाला था और एक दिन रुबिया के दिल मे प्यार के दिये को जला ही दिया था, और फिर रुबिया ने भी तो खुद को पुरी तरह से मनोहर के अनुसार ढाल लिया था .
पर प्रेम धर्म और मजहब की दीवार को नही मानता जैसी बातें सिर्फ मोटी मोटी किताबें और धर्मग्रंर्थ मे ही शोभा देती है. मनोहर और रुबिया के प्यार मे भी आखिर धर्म के ठेकेदारों ने अपनी ठेकेदारी के झंडे गाड ही दिये. मनोहर के पिता ने साफ साफ शब्दों मे कह दिया था की, उसे या तो अपने परिवार को चुनना होगा या रुबिया को. वहीं किस्सा रुबिया के घर पर भी था, रुबिया की मॉ ने तो ऐलान कर दिया था की, अगर रुबिया मनोहर से निकाह करती है तो,उनके घर से एक साथ दो लोग निकलेगें, एक तो रुबिया अपनी डोली मे, तो दुसरी उसकी मॉ की अपनी जनाजे मे.
कहा जाता है, जहॉ चाह वहॉ राह. अगर प्यार में सच्चाई हो तो, प्यार की ही जीत हमेशा होती है. और वही हुआ. बहुत मान मन्नौवल के बाद मनोहर के पिता और रुबिया की अम्मी, दोनो ने इनके प्यार पर अपनी मोहर लगाने की इज्जाजत दे दी थी, पर शर्त सिर्फ एक थी - मनोहर के पिता के अनुसार अगर रुबिया हिन्दु धर्म अपनाने को तैयार हो जाती है तो उन्हें कोई ऐतराज नही है, ठीक उसी तरह रुबिया की अम्मी की शर्त थी की, मनोहर को मुस्लिम धर्म अपनाना होगा.
शादी के नये फ्रॉमुले को सुन मनोहर और रुबिया एक दुसरे को देख पहले तो बहुत देर तक हॅसते रहे, फिर उतनी ही देर वो एक दुसरे को पकड रोते भी रहे. और फिर उन दोनो ने भी वही फैसला लिया जो हमेशा से होता आया है. अपनी घर वालों के खातिर उन दोनों का अलग होना ही अच्छा है.
आज सात साल बाद अचानक रुबिया को देख मनोहर के खुशी का कोई ठिकाना नही था और रुबिया तो युं चहक रही थी की जैसे आज सारा आसमॉ उसका हो. दोनो ने एक साथ एक दुसरे से पुछा - कैसे हो मनोहर, कैसी हो रुबिया??? थोडी देर की खामोशी के बाद... रुबिया ने कंपकंपाती आवाज मे कहा - मनोहर अब मै रुबिया नही हुं, मैने अपना धर्म बदल लिया है, और अब मै हिन्दु हुं, और मेरा नाम रुपा है, बोल वो बहुत तेज तेज हॅसने लगी जैसे की वो धर्म के ठेकेदारों के मुहॅ पर तमाचा मार रही हो, और कह रही हो, देखो मैने अपने प्यार को आखिर पा ही लिया. पर मनोहर के ऑसु तो थमने के नाम ही नहीं ले रहे थे, वो तो बस अपनी ड्बडबायी ऑखों से अपनी रुबिया नही रुपा को देखता जा रहा था, और अचानक पीछे मुड जाने लगा. रुबिया नही रुपा पीछे से उसे अवाज देती रही पर मनोहर अपने कदमों की रफ्तार को और तेज करता हुआ, सोचता जा रहा था, की वो किस मुहॅ से अपनी रुबिया नही रुपा को बताये की, मजहब तो उसने भी अपना बदल लिया है और अब वो मुस्लमान है और उसका नाम मौहम्म्द मुस्स्तफा है. और मजहब की दीवार आज भी जस कि तस बरकरार है, बस दिशायें बदल गई हैं.

बिखरा दिल

मर गये हैं जलकर कुछ अरमॉं, कुछ का मरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।
डर लगता है जीने से,
खड़ी है मुश्किले करीने से,
हर देर से लौट चुके हम, तेरे घर से गुजरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।
मेरा ये दिल तोड़कर,
चले गये तुम मुझे छोड़कर,

रो रोकर ऊब चुके हम, बस ऑंखे भरना बाकी है।

सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।

सुनकर मेरे गीत को,
याद करना अतीत को,
तुमने वादा तोड़ दिया, मेरा ही मुकरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।
मेरे हाथ से जो तेरा हाथ छूटा,
दिल के संद मै भी टूटा,
मै बिखरा हूँ तन्‍हाई में बस दिल का बिखरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।

16 December 2007

मोदी का भूत

आज के दौर में मोदी का भूत प्रधानमंत्री को भी दिखने लग गया है। भूत की बात से यह याद आया कि जब भारतीय दौरे पर आस्‍ट्रेलिया टीम आई थी और शेन वर्न की तेन्‍दुलकर ने जमकर पीटाई की थी तो शेन को भी सपने में तेन्‍दुलकर नज़र आने लगे थे। मोदी के भूत के भय से आज सोनिया, राहुल, काग्रेस समेत प्रधानमंत्री भी भय ग्रस्‍त है।

हाल के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री को भी अपने कद के आगे मोदी का कद भारी दिखने लगा था। और यह जायज भी था क्‍येाकि जो व्‍यक्ति प्रत्‍यक्ष राष्‍ट्रवाद की बात करता है उसका कद अपने आप ही बढ़ जाता है। राष्‍ट्रवाद में किसी एक मजहब की बात नही होती है अपितु राष्‍ट्रवाद में समग्र राष्‍ट्र का चिंतन निहित रहता है। यही कारण है कि आज मोदी को न सिर्फ हिन्‍दुओं का अपितु देश के समस्‍त राष्‍ट्रवादी जनता का हाथ मोदी के साथ है। जो व्‍यक्ति या नेता देश की भावनाओं के साथ जुड़ कर काम करता है लोग उसे सिर आखों पर बैठाते है। यह हमें लाल बहादुर शास्‍त्री और रथयात्रा के दौरान लाल कृष्‍ण आडवानी के साथ देखने को मिलती है।

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प्रधानमंत्री का यह बयान की मोदी से भाजपा डर गई है। यह बताता है कि मोदी को प्रधानमंत्री एक बड़ा नेता मान चुके है। अगर मोदी का कद बढ़ता है तो इससे भाजपा को खुशी ही होगी कि पार्टी का एक कार्यकर्ता पार्टी के कद से उपर हो गया है। अगर किसी संगठन से सम्‍बन्‍ध कोई व्‍यक्ति बड़ा हो जाता है तो संगठन अपने आप बड़ा हो जाता है। प्रधानमंत्री का यह बयान निश्चित रूप से भाजपा का सीना चौड़ा करने वाला है।

वैसे गुजरात में भगवा लहराने का समय है, और वह लहरायेगा भी, इसमें कोई दो राय नही है, क्‍योकि हाल में का्ग्रेस के महासचिव राहुल गांधी के दो अलग अलग जगहो पर दिये गये 5 दिन के अन्‍तर पर एक ही भाषण सुनने को मिला जिसे पता चलता है कि काग्रेज बेमन से इस चुनाव में लगी है। क्‍योकि उसे परिणाम पता है। कांग्रेस का यह कहना कि यह गुजराज का विकास केन्‍द्र के दिये पैसो से हुआ है तो वह अपने 13 राज्‍यों की सरकार से क्‍यो‍ नही पूछती कि वह विकास उनके राज्‍य में क्‍यो नही हुआ? सत्‍ता चालना और सत्‍ता भोगना दोनो अलग अलग चीजे है। मोदी ने सत्‍ता पर राज किया है जबकि अन्‍यों ने सता का भोग किया है।

13 December 2007

ईशावास्‍योपनिषद - प्रथम मंत्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥  

ॐ ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥१॥

व्‍याख्‍या :- अखिल विश्‍व मे जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब मे ईश्‍वर अपनी गतिशीलता के साथ व्‍याप्‍त है उस ईश्‍वर से सम्‍पन्‍न होते हुये से तुम त्‍याग भावना पूर्वक भोग करो। आसक्‍त मत हो कि धन अथवा भोग्‍य पदार्थ किसके है अथार्थ किसी के भी नही है ? अत: किसी अन्‍य के धन का लोभ मत करो क्‍योकि सभी वस्‍तुऐ ईश्‍वर की है। तुम्‍हारा क्‍या है क्‍या लाये थे और क्‍या ले जाओगे।

12 December 2007

हास्य

प्रेमगीत भी लिख लिया मैनें,
समाज के दर्द को भी समेट लिया है मैनें,
आज दिल मे ख्याल आता है,
क्यों ना आज कुछ हास्य लिखूँ,
तेरे चिपके हुये होठों को खोल,
एक मुस्कान लिखूँ.

पर हास्य के नाम पर ही कलम क्यों रुक जाती है?
दर्द और खुशी की खाई और बढ़ती हुई नज़र आती है,
हॉ मैने कल देखा था अपने लल्लनन काका को हँसते हुये,
बेतहाशा हँसे जा रहे थे, पेट मे दर्द था फिर भी ठहाके लगा रहे थे,
कवि मन बेचैन हो गया, चलो हास्य का विषय मिल गया,
मैने पुछा, काका क्या बात है, इतना मुस्कुरा रहे हो??
मुन्निया के हाथ पीले कर दिया या,
अपना बड़का आइएस के परीक्षा मे अपना नाम कर दिया है?
सुन चाचा के मुस्कान मे कुछ बैचेनी नजर आई,
और बोले, नही रहे पगले,
वो अपना मल्लू है ना, वही अपना पड़ोसी,
कल उसकी बिटिया, एक क्षुद्र के साथ भाग गई है.
चन्दू ,जो हर शाम मंडी मे अपनी दुकान लगाता है,
उसकी बीबी कई महीनों से एक ही चरपाई पर है.
और वो हरीराम, जो खुद को साहूकार बोलता था,
उसका बेटा,कल जुये मे,अपना आखिरी खेत भी हार आया है.
सुन हँसी की ये नयी परिभाषा, मेरा दिल रोने को हो आया,
हास्य का विषय तो नही मिला,
पर समाज का एक और रंग आज मैं देख आया.

कहानी पढने के लिये क्लिक करें... "अधुरा ख्वाब - एक अधुरी कहानी"

11 December 2007

UPA Government Special

अब संप्रग का प्रसंग है केन्द्रि में,
राजग का राज बेकार हुआ।
मनमोहन को टिकता देख,
बिहारी का अटल शर्मसार हुआ।।

लालू की ट्रेन चल पड़ी,
खोया पाकर खुश बिहार हुआ।
देखता रहा यूपी मुँह बाए,
मुलायम-माया का उद्धार हुआ।

2004 लोक सभा चुनाव के बाद लिखा गया

10 December 2007

कभी कोशिश मत करना

कभी कोशिश मत करना,
मेरे दिल को गुलाम बनाने की।
बहुतों ने कोशिश की है,
मुझे मजनूँ और गुलफ़ाम बनाने की।
हर चीज से नफ़रत है मुझे,
जो पैबन्द इस जम़ाने की।
तेरे जेहन को नही मालूम,
सराय मेरे ठिकाने की।
कोशिश करते रहना और भी,
मेरे बारे में पता लगाने की।

08 December 2007

तुम मुझे उस दिन प्यार करना.












जब तुम्हे मुझ पर यक़ीन हो जाये,
मेरी बातों में तुमको सच्चाई दिखने लग जाये,
मेरी ऑखों के आँसू पानी है,जब ये भ्रम टूट जाये,
जब तुमको लगे की,तुम बिल्कुल अकेली हो,
तुम मुझे उस दिन प्यार करना.

जब तुम्हारे पास जीने की कोई उम्मीद ना हो,
तुम्हारे ऑसू पोछने के लिये कोई तुम्हारे करीब ना हो,
जब तुमको लगे की अब अकेले चलना नामुमकिन है,
ये जिन्दगी का रास्ता अब बहुत कठीन है,
तुम मुझे उस दिन प्यार करना.

जब तुमको तुम्हारा अकेलापन सताने लगे,
किसी की याद तुमको रुलाने लगे,
जब तुम्हारे ऑखों मे ऑसु सूख जाये,
और ऑखे रोने के लिये व्याकुल हो जाये,
तुम मुझे उस दिन प्यार करना.

जब कोई तुम्हारा हृदय तोड़ दे,
बीच राह मे तुम्हे छोड़ दे,
तुम्हारी सॉसे उखड़ने लगे,
और तुम्हे मेरी याद आने लगे,
तुम मुझे उस दिन प्यार करना.

मेरा प्यार इस जमाने के प्यार जैसा निश्चल नही है,
क्योंकी मेरा प्यार खुद मेरे लिये नहीं है,
इस प्यार के दिये को तेरी खातिर जलाया है,
जब इस दिये को लौ टिमटिमाने लग जाये,
तुम मुझे उस दिन प्यार करना.

07 December 2007

हत्या का जश्न

ब्रिटिस सरकार ने 15 अगस्‍त 1947 को भारत के आजाद होने की घोषण की। यह घोषणा उस सरकार ने किया था, जिसने अत्‍यन्‍त ही चतुराई से इस देश पर कब्‍जा किया था ऐसे लोग जो छल को ही वीरता मानते है, जो अपने ही कहीं बात के विपरीत हो जाते है जिसके चरित्र में ही घोखा हो, वह भला ईमानदारी पूर्वक कोई काम कैसे कर सकता है? अंग्रेजों में उक्‍त सभी गुण थे। भला वो ईमानदारी से अपनी हार कैसे मान लेते? कैसे यह घोषणा कर देते कि हम भारत के क्रान्तिकारियों से भयभीत हो गये है? इन क्रान्तिकारियों के भय से हम देश छोड़कर जा रहे है। इस भय का अंदाजा उस समय भारत में रह रहे अंग्रेजो के पत्रों से लगाया जा सकता है। एक अंग्रेज अपने पत्र में लिखा था कि – जी चाहता है कि यहॉं के सब लोगों को गोली से उठा दूँ अथवा मै स्‍वंय अत्‍महत्‍या कर लूँ।

इस परिस्थिति में भारत को आज़ाद होने से भला कौन रोक सकता है? यदि Freedom of India Act के माध्‍यम से अंग्रेज इस देश को आजाद न करते तो निश्‍चय ही छला को जीते गये हिन्‍दुस्‍थान को यहॉं के जांबाज नौयुवक उन्‍हे छका कर जीत लेते। ऐसे में भारत से शायद ही कोई अंग्रेज हताहत हुऐ बिना जा पाता। यहाँ के योद्धा अपनी वीरता और शौर्य से ऐसा करते उससे पहले ही अंग्रेजों ने एक ऐसी चाल चली, जिसका खामियाजा आज भी देश भोग रहा है। देश के तमाम बुद्धिजीवी, विचारवान क्रान्तिकारी और योद्धा नेपथ्‍य में चले गये। उनकी राष्‍ट्रीय विचारधारा के अंकुर को आज़ाद भारत ने कभी पनफने नही दिया। सत्‍ता परिवर्तन के नाटक के साथ एक बड़ी घटना हुई, वह घटना थी वर्तमान पाकिस्‍तान में लाखों निरीह लोगों की हत्‍या, महिलाओं का बलात्‍कार और अपहरण। इस संकट के काल में जहॉं एक हिन्‍दुस्‍थानी मर रहा था, वही दूसरा आज़ादी का जश्‍न मना रहा था, स्‍वतंत्र देश का रेडियों परतंत्र ही रहा, उसपर सिर्फ उत्‍सव के समाचार ही दिये जाते रहे।

हिन्‍दुस्‍थान के पाकिस्‍तानी हिस्‍से में जो कुछ हुआ, वह तो हो ही गया, भले ही किसी सान्‍तवना के एक भी शब्‍द नही कहे। किन्तु जो भारत में हुआ वह तत्‍कालीन शासन कर्ताओं के संवेदन हीनता का प्रबल उदाहरण है। यह घटना इस बात का भी उदाहरण है कि तात्‍कालीन महान लोग कितने महान थे ? उनकी देश भक्ति क्‍या और कैसी थी? आज मेरे सामने यह प्रश्‍न है कि कहीं महान बनाने का गुप्‍त अभियान तो नही चलाया गया था? क्‍योकि कोई भी संवेदनशील व्‍यक्ति, देश भक्‍त, सच्‍चा नेत्तृव कर्ता कभी यह स्‍वीकार न करता कि एक ओर देश के निर्माण करने वाले जन की हानि हो रही हो, और दूसरी ओर ये सत्‍ता लोलुप लोग जश्‍न मना रहे हो। यह जश्न मारे जा रहे लोगों का था अथवा उनके सत्‍ता प्राप्त करने का अथवा दोनो का ? यह पूरे राष्‍ट्र को अभी समझना है।

देखो ये आवारे

देखो ये आवारे,
मोहब्‍बत के नाम पर ख़ून,
बहाने चले है।

ये मनचले आगोश में,
अपना जनाज़ा उठाने चले है।
अपने दुश्‍मनों को,
दिल की हर बात बताने चले है।

भूल कर अपना रास्‍ता,
गैरो को मंजिल दिखाने चले है।
जो राज है सबकी ऑंखों के सामने,
उसको ये छिपाने चले है।

बेहोश होकर,
दुश्‍मनों से दोस्‍ती निभाने चले है।
मौत को समझकर दिलबर,
उसको आज रिझाने चले है।

जिसकी गिरफ्त में है सभी,
उसी को आज फसाने चले है।
आज ये जवां अपनी तकदीर को,
खाक बनाने चले है।

06 December 2007

एहस़ास

अपने बदन के चारों ओर,
मैने हवा को नाचते देखा है।
अपने आँगन के झरोखों से,
बादल को झाकते देखा है।

ग़र महसूस करों तुम,
भगवान भी नज़र आयेगें।
ऑंखें बन्‍द कर ख्‍व़ाब देखों,
तो शैतान भी नज़र आयेगें।

तुम भी हवा को छू लो,
जो तुम्‍हे छूकर उड़ी चली जाती है।
चलते चलो दोस्‍तो,
ये गली थोड़ा आगे भी जाती है।

ग़र शक्‍ल देखनी है आपनी,
तो मेरी ऑंखों में आखें डाल कर देखों
इन हुस्‍ऩ वालों को देखों,
मगर दिल सभांल कर देखों।

05 December 2007

गजल

ना जाने क्यों लोग,जिन्दगी भर साथ निभाने की बात करते हैं,
हमने तो तेरे संग चंद लम्हों मे जिन्दगी को जी लिया है.

मै तो तेरी यादों को भुला खुद ब खुद संभल ही गया,
तुमने नजरें मिलते ही, नजरों को क्यों झुका लिया है.

आशियॉ बनाने मे सदियों लगे थे,उजडने मे लम्हा,
तुम ने फिर से क्षणों मे आशियॉ कैसे सजा लिया है.

मेरी ख्वाबों की मल्लिका तुम और सिर्फ तुम हो,
ये जान नींद को भी दुश्मन हमने बना लिया है.

शिवमहिम्न स्तोत्र पुष्पदन्त


॥ ॐ नमः शिवाय ॥
॥अथ श्री शिवमहिम्नस्तोत्रम्‌॥



महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी
स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः ।
अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्‌
ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः॥ १॥
अतीतः पंथानं तव च महिमा वाङ्मनसयोः
अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि।
स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः
पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः॥ २॥
वाचः परमममृतं निर्मितवतः
तव ब्रह्मन्‌ किं वागपि सुरगुरोर्विस्मयपदम्‌।
मम त्वेतां वाणीं गुणकथनपुण्येन भवतः
पुनामीत्यर्थेऽस्मिन्‌ पुरमथन बुद्धिर्व्यवसिता॥ ३॥
तवैश्वर्यं यत्तज्जगदुदयरक्षाप्रलयकृत्‌
त्रयीवस्तु व्यस्तं तिस्रुषु गुणभिन्नासु तनुषु।
अभव्यानामस्मिन्‌ वरद रमणीयामरमणीं
विहन्तुं व्याक्रोशीं विदधत इहैके जडधियः॥ ४॥
किमीहः किंकायः स खलु किमुपायस्त्रिभुवनं
किमाधारो धाता सृजति किमुपादान इति च।
अतर्क्यैश्वर्ये त्वय्यनवसर दुःस्थो हतधियः
कुतर्कोऽयं कांश्चित्‌ मुखरयति मोहाय जगतः॥ ५॥
अजन्मानो लोकाः किमवयववन्तोऽपि जगतां
अधिष्ठातारं किं भवविधिरनादृत्य भवति।
अनीशो वा कुर्याद्‌ भुवनजनने कः परिकरो
यतो मन्दास्त्वां प्रत्यमरवर संशेरत इमे॥ ६॥
त्रयी साङ्ख्यं योगः पशुपतिमतं वैष्णवमिति
प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च।
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिल नानापथजुषां
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥ ७॥
महोक्षः खट्वाङ्गं परशुरजिनं भस्म फणिनः
कपालं चेतीयत्तव वरद तन्त्रोपकरणम्‌।
सुरास्तां तामृद्धिं दधति तु भवद्भूप्रणिहितां
न हि स्वात्मारामं विषयमृगतृष्णा भ्रमयति॥ ८॥
ध्रुवं कश्चित्‌ सर्वं सकलमपरस्त्वध्रुवमिदं
परो ध्रौव्याऽध्रौव्ये जगति गदति व्यस्तविषये।
समस्तेऽप्येतस्मिन्‌ पुरमथन तैर्विस्मित इव
स्तुवन्‌ जिह्रेमि त्वां न खलु ननु धृष्टा मुखरता॥ ९॥
तवैश्वर्यं यत्नाद्‌ यदुपरि विरिञ्चिर्हरिरधः
परिच्छेतुं यातावनलमनलस्कन्धवपुषः।
ततो भक्तिश्रद्धा-भरगुरु-गृणद्भ्यां गिरिश यत्‌
स्वयं तस्थे ताभ्यां तव किमनुवृत्तिर्न फलति॥ १०॥
अयत्नादासाद्य त्रिभुवनमवैरव्यतिकरं
दशास्यो यद्बाहूनभृत रणकण्डू-परवशान्‌।
शिरःपद्मश्रेणी-रचितचरणाम्भोरुह-बलेः
स्थिरायास्त्वद्भक्तेस्त्रिपुरहर विस्फूर्जितमिदम्‌॥ ११॥
अमुष्य त्वत्सेवा-समधिगतसारं भुजवनं
बलात्‌ कैलासेऽपि त्वदधिवसतौ विक्रमयतः।
अलभ्या पातालेऽप्यलसचलितांगुष्ठशिरसि
प्रतिष्ठा त्वय्यासीद्‌ ध्रुवमुपचितो मुह्यति खलः॥ १२॥
यदृद्धिं सुत्राम्णो वरद परमोच्चैरपि सतीं
अधश्चक्रे बाणः परिजनविधेयत्रिभुवनः।
न तच्चित्रं तस्मिन्‌ वरिवसितरि त्वच्चरणयोः
न कस्याप्युन्नत्यै भवति शिरसस्त्वय्यवनतिः॥ १३॥
अकाण्ड-ब्रह्माण्ड-क्षयचकित-देवासुरकृपा
विधेयस्याऽऽसीद्‌ यस्त्रिनयन विषं संहृतवतः।
स कल्माषः कण्ठे तव न कुरुते न श्रियमहो
विकारोऽपि श्लाघ्यो भुवन-भय- भङ्ग- व्यसनिनः॥ १४॥
असिद्धार्था नैव क्वचिदपि सदेवासुरनरे
निवर्तन्ते नित्यं जगति जयिनो यस्य विशिखाः।
स पश्यन्नीश त्वामितरसुरसाधारणमभूत्‌
स्मरः स्मर्तव्यात्मा न हि वशिषु पथ्यः परिभवः॥ १५॥
मही पादाघाताद्‌ व्रजति सहसा संशयपदं
पदं विष्णोर्भ्राम्यद्‌ भुज-परिघ-रुग्ण-ग्रह- गणम्‌।
मुहुर्द्यौर्दौस्थ्यं यात्यनिभृत-जटा-ताडित-तटा
जगद्रक्षायै त्वं नटसि ननु वामैव विभुता॥ १६॥
वियद्व्यापी तारा-गण-गुणित-फेनोद्गम-रुचिः
प्रवाहो वारां यः पृषतलघुदृष्टः शिरसि ते।
जगद्द्वीपाकारं जलधिवलयं तेन कृतमिति
अनेनैवोन्नेयं धृतमहिम दिव्यं तव वपुः॥ १७॥
रथः क्षोणी यन्ता शतधृतिरगेन्द्रो धनुरथो
रथाङ्गे चन्द्रार्कौ रथ-चरण-पाणिः शर इति।
दिधक्षोस्ते कोऽयं त्रिपुरतृणमाडम्बर-विधिः
विधेयैः क्रीडन्त्यो न खलु परतन्त्राः प्रभुधियः॥ १८॥
हरिस्ते साहस्रं कमल बलिमाधाय पदयोः
यदेकोने तस्मिन्‌ निजमुदहरन्नेत्रकमलम्‌।
गतो भक्त्युद्रेकः परिणतिमसौ चक्रवपुषः
त्रयाणां रक्षायै त्रिपुरहर जागर्ति जगताम्‌॥ १९॥
क्रतौ सुप्ते जाग्रत्‌ त्वमसि फलयोगे क्रतुमतां
क्व कर्म प्रध्वस्तं फलति पुरुषाराधनमृते।
अतस्त्वां सम्प्रेक्ष्य क्रतुषु फलदान-प्रतिभुवं
श्रुतौ श्रद्धां बध्वा दृढपरिकरः कर्मसु जनः॥ २०॥
क्रियादक्षो दक्षः क्रतुपतिरधीशस्तनुभृतां
ऋषीणामार्त्विज्यं शरणद सदस्याः सुर-गणाः।
क्रतुभ्रंशस्त्वत्तः क्रतुफल-विधान-व्यसनिनः
ध्रुवं कर्तुः श्रद्धा-विधुरमभिचाराय हि मखाः॥ २१॥
प्रजानाथं नाथ प्रसभमभिकं स्वां दुहितरं
गतं रोहिद्‌ भूतां रिरमयिषुमृष्यस्य वपुषा।
धनुष्पाणेर्यातं दिवमपि सपत्राकृतममुं
त्रसन्तं तेऽद्यापि त्यजति न मृगव्याधरभसः॥ २२॥
स्वलावण्याशंसा धृतधनुषमह्नाय तृणवत्‌
पुरः प्लुष्टं दृष्ट्वा पुरमथन पुष्पायुधमपि।
यदि स्त्रैणं देवी यमनिरत-देहार्ध-घटनात्‌
अवैति त्वामद्धा बत वरद मुग्धा युवतयः॥ २३॥
श्मशानेष्वाक्रीडा स्मरहर पिशाचाः सहचराः
चिता-भस्मालेपः स्रगपि नृकरोटी-परिकरः।
अमङ्गल्यं शीलं तव भवतु नामैवमखिलं
तथापि स्मर्तॄणां वरद परमं मङ्गलमसि॥ २४॥
मनः प्रत्यक्चित्ते सविधमविधायात्त-मरुतः
प्रहृष्यद्रोमाणः प्रमद-सलिलोत्सङ्गति-दृशः।
यदालोक्याह्लादं ह्रद इव निमज्यामृतमये
दधत्यन्तस्तत्त्वं किमपि यमिनस्तत्‌ किल भवान्‌॥ २५॥
त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवहः
त्वमापस्त्वं व्योम त्वमु धरणिरात्मा त्वमिति च।
परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रति गिरं
न विद्मस्तत्तत्त्वं वयमिह तु यत्‌ त्वं न भवसि॥ २६॥
त्रयीं तिस्रो वृत्तीस्त्रिभुवनमथो त्रीनपि सुरान्‌
अकाराद्यैर्वर्णैस्त्रिभिरभिदधत्‌ तीर्णविकृति।
तुरीयं ते धाम ध्वनिभिरवरुन्धानमणुभिः
समस्तं व्यस्तं त्वां शरणद गृणात्योमिति पदम्‌॥ २७॥
भवः शर्वो रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सहमहान्‌
तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम्‌।
अमुष्मिन्‌ प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि
प्रियायास्मैधाम्ने प्रणिहित-नमस्योऽस्मि भवते॥ २८॥
नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमः
नमः क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नमः।
नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमः
नमः सर्वस्मै ते तदिदमतिसर्वाय च नमः॥ २९॥
बहुल-रजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नमः
प्रबल-तमसे तत्‌ संहारे हराय नमो नमः।
जन-सुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौ मृडाय नमो नमः
प्रमहसि पदे निस्त्रैगुण्ये शिवाय नमो नमः॥ ३०॥
कृश-परिणति-चेतः क्लेशवश्यं क्व चेदं
क्व च तव गुण-सीमोल्लङ्घिनी शश्वदृद्धिः।
इति चकितममन्दीकृत्य मां भक्तिराधाद्‌
वरद चरणयोस्ते वाक्य-पुष्पोपहारम्‌॥ ३१॥
असित-गिरि-समं स्यात्‌ कज्जलं सिन्धु-पात्रे
सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति॥ ३२॥
असुर-सुर-मुनीन्द्रैरर्चितस्येन्दु-मौलेः
ग्रथित-गुणमहिम्नो निर्गुणस्येश्वरस्य।
सकल-गण-वरिष्ठः पुष्पदन्ताभिधानः
रुचिरमलघुवृत्तैः स्तोत्रमेतच्चकार॥ ३३॥
अहरहरनवद्यं धूर्जटेः स्तोत्रमेतत्‌ पठति
परमभक्त्या शुद्ध-चित्तः पुमान्‌ यः।
स भवति शिवलोके रुद्रतुल्यस्तथाऽत्र
प्रचुरतर-धनायुः पुत्रवान्‌ कीर्तिमांश्च॥ ३४॥
महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुतिः।
अघोरान्नापरो मन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरोः परम्‌॥ ३५॥
दीक्षा दानं तपस्तीर्थं ज्ञानं यागादिकाः क्रियाः।
महिम्नस्तव पाठस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्‌॥ ३६॥
कुसुमदशन-नामा सर्व-गन्धर्व-राजः
शशिधरवर-मौलेर्देवदेवस्य दासः।
स खलु निज-महिम्नो भ्रष्ट एवास्य रोषात्‌
स्तवनमिदमकार्षीद्‌ दिव्य-दिव्यं महिम्नः॥ ३७॥
सुरगुरुमभिपूज्य स्वर्ग-मोक्षैक-हेतुं
पठति यदि मनुष्यः प्राञ्जलिर्नान्य-चेताः।
व्रजति शिव-समीपं किन्नरैः स्तूयमानः
स्तवनमिदममोघं पुष्पदन्तप्रणीतम्‌॥ ३८॥
आसमाप्तमिदं स्तोत्रं पुण्यं गन्धर्व-भाषितम्‌।
अनौपम्यं मनोहारि सर्वमीश्वरवर्णनम्‌॥ ३९॥
इत्येषा वाङ्मयी पूजा श्रीमच्छङ्कर-पादयोः।
अर्पिता तेन देवेशः प्रीयतां मे सदाशिवः॥ ४०॥
तव तत्त्वं न जानामि कीदृशोऽसि महेश्वर।
यादृशोऽसि महादेव तादृशाय नमो नमः॥ ४१॥
एककालं द्विकालं वा त्रिकालं यः पठेन्नरः।
सर्वपाप-विनिर्मुक्तः शिव लोके महीयते॥ ४२॥
श्री पुष्पदन्त-मुख-पङ्कज-निर्गतेन
स्तोत्रेण किल्बिष-हरेण हर-प्रियेण।
कण्ठस्थितेन पठितेन समाहितेन
सुप्रीणितो भवति भूतपतिर्महेशः॥ ४३॥
॥ इति श्री पुष्पदन्त विरचितं शिवमहिम्नःस्तोत्रं समाप्तम्‌॥