30 January 2008

पीता रहा हूँ मै

तन्हायइयों के संग जीता रहा हूँ मैं,
तेरी बेवफाई के ग़म में पीता रहा हूँ मै।
तन्हाइयों......

मेरा हाथ छोड़ा जो तुमने,
मेरे दिल को तोड़ा जो तुमने,
तेरे ख्वाकबों में तब से खोया रहा हूँ मै,
ओढ़कर कफ़न हर पल सोया रहा हूँ मै।
तन्हाइयों......

तुमको न पा सका कैसी तकदीर है मेरी?
टूटे आइने सी तहरीर है मेरी,
भर के दिल में लावे हर शाम फूटता रहा हूँ मै,
चटखता देखकर शीशा, टूटता रहा हूँ मै।
तन्हाइयों......

हवाएं चलती रही है फुफकार कर,
मै खडा हूँ हर शख्सइ से हार कर,
हर गिरे मोती को धागें में पिरोता रहा हूँ मै,
तुझे याद कर रात दिन रोता रहा हूँ मै,
तन्हाइयों......

26 January 2008

शेयर बाज़ार में भरी गिरावट के संभावित कारण :

शेयर बाज़ार में भरी गिरावट के संभावित कारण :
आप सब जानते हैं की पिछले दिनों शेयर बाज़ार में भारी गिरावट दर्ज की गयी ...
मेरी इस बारे में कई लोगों से बात हुई ..
उनका आंकलन यहाँ मैं लिख रहा हूँ:
....भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिका पर बहुत ज्यादा निर्भर कर रही है .. अतः अमेरिकी बाज़ार में गिरावट के कारण.. वस्तुतः अमेरिका ने अपने निवेश का काफी अंश वापस निकाल लिया..
...भारतीय शेयर बाज़ार में कुछ गलत मानसिकता और उद्देश्य वाले लोगों ने पैसा लगा रखा हो सकता है... जब बाज़ार डूबने लगा तो इन्होने पैसे वापस निकाल लिया..जिससे गिरावट में काफी तेजी आ गयी..
...बाज़ार में दो काफी बड़े IPOs आये थे जिसके कारण बाज़ार में पैसों की भारी किल्लत थी...इस कारण समय रहते निवेश करके गिरावट को संतुलित नहीं किया जा सका...
...भारत अमेरिका संबंध ठीक वैसे ही है जैसे सिंधु घटी सभ्यता के समय मेसोपोटामिया से भारत के संबंध थे,...भारत का कारोबार बहुत ज्यादा मेसोपोटामिया पर आश्रित था ...इसी कारण मेसोपोटामिया के बाज़ार में आयी गिरावट से भारत अछूता ना रह सका और यही सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण था...
शेयर बाज़ार में बहुत दिनों से तेजी का दौर था.. अतः थोरी गिरावट तो होनी थी जो काफी दिनों से बाकि चल रही थी...
...इस संबंध में आप सब की क्या राय है कृपया जरुर बताएं...

25 January 2008

क्या हम देशभक्त हैं?

आप सभी जानते हैं कि भारतीय लोकतंत्र/ गणतंत्र के दो सबसे मुख्य दिन होते हैं
गणतंतग दिवस और स्वतंत्रता दिवस
ये क्रमशः २६ जनवरी और१५ अगस्त को होते हैं....
इस दिन सारा भारत देश भक्ति के रंग में रंग जाता है...
सारे लोग अपनी देशभक्ति किस चीज़ से प्रदर्शित करते हैं:
भारतीय ध्वज़ (प्लास्टिक या कागज के) को साथ में लेकर, घरों पर लगा कर,
गाड़ियों के आगे लगा कर,बच्चों के हाथ में पकडा कर...

इसमें सबसे दुःख कि बात ये है कि शाम होते होते या उससे पहले ही ध्वज़ का बुरा हाल हो जाता है , और जो भारतीय ध्वज़ लोगों कि भारतीयता को प्रदर्शित कर रहा था (थोडी देर पहले ), वो कुदे के ढेर पर, नालियों, गटर में जीर्ण-शीर्ण हालत में पाया जाता है...
क्या ये राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय ध्वज़ का सम्मान है ?
क्या हम देशभक्त हैं?

22 January 2008

चित्रों में नेता जी सुभाष चन्‍द्र बोस

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नेताजी के जन्म्दिन पर.........

आप सभि लोगोन को नेताजी के जन्म्दिन कि हर्दिक बधाई १ किन्तु मुझे अत्यन्त अफ़्सोश के सथ कह्न पद रह है कि मेरे अधिक्तर मित्रों को उस सच्चे देश्भक्त के जन्म्दिन के बारे मैं मलूम ही नहीं होता १ हमैं २ अक्टूबर और १४ नवम्बर के अल्लव शायद हई किसे देश्भक्त का जन्म्दिन पत हो. मुझे अत्यन्त दुख होत है जब लोग कहते हैं कि हमैं नही पता ! जिस गान्धी और नेहरू ने देश को खरीद लिय क्या उस एश के देश्वसियोन के दिल मैनं भी नेताजी के लिये कोइ जगह नहीं.? जिन गान्धी और नेहरू ने अपअने निजी स्वार्थ के लिये नेताजी के खिलफ़्फ़ क्या क्या सद्यन्त्र रचे उस गन्धी को भी एक दिन कहना पदा कि नेताजी एक अद्वितीय रास्त्रभक्त थे. हमारे कितने देशवासियों को मलूम है कि अन्ग्रेजोन ने भारत चोदते समय शर्त रखी थी कि अगर नेताजी कभी ज़िन्दा य मुर्द मिल्ते हैं तो भारत उन्हैं ब्रिटिश को दे देगा और इस गन्धी और नेहरू ने ये शर्त मान ली ! और खरिद लिय अन्ग्र्जो> से देश को ! आज बन गया है गान्धी का देश जहां चारों तरफ़ गान्धी की फोतो दिखेगी क्य्योन्कि उसने ख्री द लिया इस देश को देश्भतूं कि कीमत पर???????
मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट इसी लिये नही खोली गयी कि अगर वो खुलती तो गान्धी और नेहरू से लेकर सोनिआ तक सब कत्घरे मैन खदे होते ! लेकिन प्रश्न यहां यह उथत है कि कब तक हम नेताजी को भुलाते रहैन्गे और गांधी और नेह्रू के देश मैं नेताजी और भगत सिन्घ जैसे लोगोन क अपमन होत रहेगा ! कया यही आज़दी है ! मेरे अनुसार तो ह्म गांधी के गुलाम ज्यदा है और देश भक्त कम !
किन्तु आज फ़िर भी मुझे खुशी है कि आज क युव वर्ग कुच सोच्ने लग है नेतजीए के बरे मैं , जानना चाह्ता है गन्धी की हकीकत ! आज उनके जन्म्दिन पर हमैं उनको आदर्श मान्कर देश के लिये आगे आन होगा नही तो देश को फ़िर से बेच दिय जायेगा!!!
जय हिन्द

महाशक्ति समूह मनाऐगा नेता जी सुभाष चन्‍द्र बोस जंयती

महाशक्ति समूह ने नेता जी सुभाष चन्‍द्र बोस जी के जन्‍मदिवस पर, उन्हे नमन करने के जंयती मनाने का फैसला किया है। नेता जी के जनम दिवस 23 जनवरी को महाशक्ति समूह पूरे दिन नेताजी सम्‍बन्धित सामग्री प्रकाशित की जायेगी।

21 January 2008

वो लोग...

सत्रहवें साल में आपने, मैंने सूनी एक कहानी
सुनकर छलक आई, मेरी आँखों से पानी...

उस कहानी में थी, वीरों की रवानी
जोश्वर्धक हर, नायक था हिन्दुस्तानी...

आपने पूर्वजों ने दी थी, कितनी ही कुर्बानी
हमें विरासत में मिली, आज़ाद हवा-पानी...

उनके कष्ट जान कर, अपने हुए बेमानी
होम करदी उन्होने, अपनी जिंदगानी...

ऐश से गुज़ार सकते थे, वो अपनी जवानी
देशभक्तिपूर्ण, उनके विचार थे लोहानी...

देश के लिए बहाया, रक्त जैसे पानी
चट्टान जैसा अडिग, देशप्रेम था जिस्मानी...

जुल्मों पर भी, अंग्रेजों की बात नहीं मानी
ओजपूर्ण लोग, सदा रहे स्वाभिमानी...

उत्पन्न करते थे, अंग्रेजों के लिए परेशानी
उन्होंने करा दी, सितमगर अंग्रेजों की रवानी...

देश को आजाद करा, वे हुए सैलानी
विचार स्वच्छ थे, जैसे कांच हो या पानी...

उनके राह पर हमनें, चलने की है ठानी
उनपर गर्व करता है, आज का हिन्दुस्तानी...

हे प्रभु

हे प्रभु, आप हमें बुद्धि विवेक शक्ति दें
और समस्त प्राणियों को आप अपनी भक्ति दें..

दीन दुखियों का, आप करें बेडा पार
आपके प्रताप सुखी हो हर परिवार..

स्वार्थ और अंहकार, आप मिटा दें सारे जग से
प्रेम का उद्भव हो, हर जीव के रग- रग से ..

सभी आपने कार्यों को, निस्वार्थ पूरा कर पाएं
द्वेष और कलह से, कोई कष्ट नहीं पाए....

सभी धर्मं मिलकर' हो जाये एक धर्मं
सभी मानव जानें मानवता का मर्म...

किसी भी कारण से ना हो, कोई किसी से रूष्ट
अग्रजों को सम्मान देकर, सभी अनुज बनें शिष्ट...

अनुजों को प्रेम देकर, सभी बढाएं अपना मान
भक्ति भाव से सभी, करें आपका ही गुणगान...

सभी जीवों के दिल से हो, आपकी जय-जयकार
आपकी करूणा से, सुखी हो समस्त संसार..

सभी जीवों का चित्त, पवित्र हो जाये
उनके अंतर्मन में,कोई क्लेश ना रह पाए....

सभी जीव आपसे जीवन में, प्रेरणा-शक्ति पाएं
चारों पहर हमसब आपकी, भक्ति किये जाएं..

20 January 2008

समझो भाई ब्लोगिंग तुम्हारे लिए नहीं....

कुछ लोग यहां बङे लेखक हैं,कुछ बङे तकनीकि विशेषज्ञ हैं.....सैल्फ मैड.शायद ब्लोगिंग को इन्होने बपौती समझ लिया है,उन्हें समझ लेना चाहिये.कि भाई लोग आप लोगों से ही परेशान होकर कुछ नया करने की चाह मैं लोगों ने ब्लोगिंग जैसे माध्यम को चुना है.और कचरा क्या है ये बंधुओ आप लोगों को अधिकार किसने दिया,संभवतया भारत के संविधान मैं तो नहीं.तो ये सब बहस किस लिये.आप को जो पढना है ,पढें न पढना है न पढें पर कम से कम  इतनी बात तो समझ लें कि यह माध्यम बेलाग,बेबाक  अभिव्यक्ति का माध्यम है और कम से कम इसमे तो कोई झूमरी तलैया या कचरा करने की कोशिश न करें.

रोज पढते हैं ..हम आप को,

सुनते हैं आप लोगों की बकवास...

टी वी के चैनलों पर

  ,आप की अभिव्यक्तियों को

जिन्हें बङी ही अटपटी

अंजान सी

पर प्रभावी सी दिखने वाली भाषा मैं लिपटी झूठ,

अब समझ आने लगी है,

अपने खुद के बनाये बुध्दिजीवी के झूठे प्रभामंडल को देख देख

उकता चुके लोगों को अपने कृत्रिम विश्लेषणों से

मुक्त होने दें अब,

हो सकता हैं आप पत्रकार हैं,या के लेखक या तकनीक विशेषज्ञ,तो क्यों नहीं आप लोग ही अपनी कोई इज्जतदार ,स्वायंभू,sobber,जगह तलाशें,क्यों कि यहां सब पके हुए लोग हैं ..........एन डी टी वीयों,आज तकों,और  सही मायने मै इन अभिव्यक्ति के ठेकेदारों से.सो बंधुओ आप लोग कोई दूसरी जगह तलाश लें और इन छोटे मोटे लोगों को बोलने दें,क्यों कि ये अब रुकने वाले नहीं है.और क्यों अपना भी कचरा कर रहें हैं.

19 January 2008

अरे भाई समझो ब्लोगिंग तुम्हारे लिए नहीं है

 

काहे परेशान होते हैं आप यहां देखें झूमरी तलैया है..या कबाङ खाना है ,ये है ही ऐसा माध्यम की जिसमें लिखने वाला कोई भी मेरे जैसा व्यक्ति जिसे कि अपने कोई बहुत बङा लेखक होने का मुगालता नहीं है,जो अपनी बात बिना किसी लाग लपेट के कहना चाहता है.और सच पूछो तो बहुत कुछ पत्रकार और पत्रकारिता नुमा चीज से परेशान उन लोगों की जुबान है जिन्हें कहना तो बहुत कुछ है पर इस मीडिया माफिया की टी आर पी रैटिंग बढाने वाली खबरों के बीच उसे कहीं कोई जगह नहीं मिल पाती,तो भैये

मुझे नहीं लगता कि कोई भी चिट्ठाकार अपने आप को बहुत बङा लेखक या विचारक साबित करने के लिए ये सब करता है.और जो करता भी है तो बहुत जल्दी समझ भी जाता है कि यह सब नहीं चलने वाला है.आप अच्छा सार्थक लिखते हैं तो ही तो कोई इसे पढने वाला है ,अन्यथा एक डिब्वा बंद फिल्म की तरह उसे कोई नहीं छेङने वाला है,इसलिए गाहे बगाहे जैसे कुछ लेखकनुमा या पत्रकार नुमा महानुभाव इम बात से परेशान हैं कि मुझ जैसे लोग जो कि चिकित्सक ,व्यापारी,प्रबंधक ,छात्र ,गृहिणियां,जैसे सामान्य लोग क्यों कर इन भाई लोगों की ठेकेदारी मैं भांजी मार रहैं हैं ,तो बंधु आप जैसे सुस्थापित लेखकों के लिए ब्लॉगिंग नहीं हैं ,आप के लिये हैं न इंडियन एक्सप्रैस,टाइम्स ऑफ इंडिया,हिंदुस्तान .......

17 January 2008

खेलती हूँ खेल ऐसा

खेलती हूँ खेल ऐसा,
जीत जिसमे हो हमेशा।
दिल में प्यार हो,
आखों में हो हौसला।।

खेल मेरी जिन्दगी है,
खेल मेरी मौत है।
खेल ही खेल में,
खेल की हार-जीत है।

खेल कों खेला है मैने,
केवल जीत के वास्तें,
उस जीत का मतलब है क्या ?
जो रोक किसी के रास्तें।

मै खिलाड़ी हूँ ,
खेल मेरी रग रग में है।
जीत का अपना मजा है,
कुछ अलग मजा है हार का।

12 January 2008

औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की विसंगतियां

 

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लेखक श्री भूपेन्द्र नाथ सिंह, इलाहाबाद उच्‍च न्‍यालय के वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता एवं सेवा व श्रम मामलों के विशेषज्ञ हैं।

औद्योगिक विवादों के शान्तिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण निराकरण, श्रमशान्ति, बनाये रखने के लिए, श्रमिक समस्याओं का त्वरित समाधान आवश्यक है। औद्योगिक उत्पादन प्रभावित न हो और कारखानों को हडताल और तालाबन्दी से मुक्त रखने हेतु औद्योगिक विवादों तथा उनसे सम्बन्धित विषयों के समाधान के लिए भारत सरकार द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 (अधिनियम सं0 14 सन् 1947) (केन्द्रीय अधि0) को विधि का रूप दिया गया। जिसमें औद्योगिक विवाद धारा 2 (K) में परिभाषित किया गया, जिसके अन्तर्गत औद्योगिक विवाद की परिभाषा व्यापक है।, सेवायोजक, एवं सेवायोजक कर्मकार एंव कर्मकार, सेवायोजक एवं कर्मकार के मध्य में उत्पन्न सभी विवाद अथवा मतभेद सम्मिलित है, जो नियोजन अथवा अनियोजन, नियोजन की शर्तों अथवा श्रमिक सेवा शर्तों से सम्बन्धित हों, औद्योगिक विवाद की परिधि में आता है। इसी क्रम में प्रदेश सरकार द्वारा, उ0 प्र0 औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 (उ0 प्र0 अधिनियम सं0 28 सन् 1947) ( प्रदेश अधि0 ) विधान मण्डल द्वारा पारित किया गया, जिसे राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त है और उ0 प्र0 में उक्त दोनों अधिनियम औद्योगिक विवादों के निराकरण के लिए प्रदेश में लागू हैं। यहां हम केन्द्रीय अधिनियम के प्राविधानों की चर्चा करगें। दोनों में लगभग समान प्राविधान है।

 

औद्योगिक विवादों के आपसी बातचीत द्वारा समाधान हेतु अधिनियम की धारा-4 के अन्तर्गत संराधन अधिकारी की नियुक्ति , उचित सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में प्रकाशन द्वारा करने की व्यवस्था है, जिन्हें औद्योगिक विवादों में मध्यस्थता करने, समाधान को प्रोत्साहित करने की जिम्मेंदारी दी गयी है। जो अपने क्षेत्र में आपसी बातचीत व सुलह द्वारा औद्योगिक विवादों के निराकरण करातें हैं। संराधन समझोता को एक विधिक व बाध्यकारी स्थित प्राप्त है। समझौता वार्ता असफल हो जाने पर श्रमशान्ति बनी रहे, संराधन अधिकारी की रिपोर्ट पर केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार जो कि सम्बन्धित सेवायोजक के मामले में उचित सरकार हो, केन्द्रीय अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत श्रमन्यायालयों, न्यायधिकरणों को विवाद के समाधान के लिए, सन्दर्भित करने का अधिकार दिया गया है उचित सरकार उत्पन्न समस्या को वाद विन्दु बनाकर अभिनिर्णय हेतु प्रेषित करती है। जिस पर श्रमन्यायालय अथवा न्यायाधिकरण को अपना एवार्ड देना अपेक्षित है। अधिनियम की धारा-7 में श्रमन्यायालय तथा धारा-7(A) में औद्योगिकन्यायाधिकरण के गठन का अधिकार उचित सरकार को (Appropriate Government) राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित कर करेगी। अधिनियम की द्वितीय अनुसूची के अन्तर्गत उन विवादों का विवरण दिया गया है जो श्रमन्यायालय तथा तृतीय अनुसूची में औद्योगिकन्यायाधिकरण द्वारा विचारणीय विवादों का उल्लेख किया गया है, किन्तु ऐसा कोई औद्योगिक विवाद जिसमें प्रभावित कर्मचारियों की संख्या 100 से कम है उचित सरकार श्रमन्यायालय को भी अभिनिर्णय हेतु भेज सकती है। अधिनियम की धारा 10 में उचित सरकार औद्योगिक विवाद के उत्पन्न होने की सम्भावना (Apprehension) पर भी विवाद को अभिनिर्णय हेतु श्रम न्यायालय, अथवा न्यायालयों को सन्दर्भित कर सकती है। केन्द्रीय अधिनियम की धारा 17 के अन्तर्गत श्रम न्यायालय/न्यायाधिकरण अपना एवार्ड उचित सरकार को प्रेषित करेगें तथा उचित सरकार एवार्ड के प्राप्ति के 30 दिन के अन्दर एवार्ड को प्रकाशित करेगी तथा अधिनियम की धारा 17 B में यह व्यवस्था की गयी है कि न्यायाधिकरणों द्वारा सेवा समाप्ति के विरूध्द पारित एवार्ड के विरूध्द यदि संवायोजक कोई कार्यवाही उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत करते हैं तो कर्मचारी को सेवा समाप्ति के पूर्व अन्तिम आहरित वेतन प्राप्त होता रहेगा, यदि कर्मचारी ने अपने बेकार होने विषयक शपथ पत्र सम्बन्धित न्यायालय में दे दिया है।

कर्मचारियों को अधिनियम के अन्तर्गत व्यक्तिगत विवाद उठाने का अधिकार नही था। औद्योगिक विवाद या तो सम्बन्धित कर्मचारियों की टे्रड यूनियन, जहॉ यूनियन न हो, कर्मचारियों का समूह 5 निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से ही उठा सकता था। जिससे कर्मचारियों के सेवा समाप्ति के विवादों में अनेक कठिनाईयां सामने आयी। केन्द सरकार द्वारा अधिनियम में धारा-2 ए (अधिनियम सं0 356 सन् 1965) संशोधित कर जोडा गया जो 1.12.1965 में प्रभावी हुआ। जिसके द्वारा कर्मचारियों के व्यक्तिगत सेवा समाप्ति के विवादों को औद्योगिक विवाद माना गया। इसके उपरान्त ही सेवा समाप्ति के विवादों को कर्मचारी स्वयं उठाने में सक्षम हुआ और उसे किसी युनियन अथवा कर्मचारियों के प्रर्याप्त सख्या के सहयोग की आवश्यकता नही रह गयी।

अधिनियम की धारा 9 ए, में सेवाशर्तों के बदलाव (Change of condition of Service )करने पर, परिवर्तन की सूचना (Notice of change) दियें बिना सेवाशर्तों में किसी प्रकार का परिवर्तन न किये जाने का प्राविधान है। अधिनियम की अनुसूची 4 में उन सेवाशर्तों का विवरण दिया गया है, जिनमें बिना 21 दिन पूर्व सूचना परिवर्तन नही किया जो सकता है। किन्तु कोई ऐसा परिवर्तन यदि किसी समझोते अथवा एंवार्ड पर आधारित है, अथवा उन कर्मचारियो पर जिनकीे सेवाशर्तें Fandamental and Supplementary Rules, Civil Service (Classification Control and Appeal) Rules जैसे केन्द्रीय नियम लागू होते है तो परिवर्तन की नोटिस देना आवश्यक नही है।

अधिनियम की धारा-2 (ra) में अनुचित श्रम अभ्यास (Unfair Labour Practice) का उल्लेख है जिनका उल्लेख उक्त अधिनियम की अनुसूची- V में दी गयी है। अनुसूची V, के खण्ड-1 में सेवायोजक अथवा सेवायोजक संघ के द्वारा किये जाने वाले 16 कार्यो को तथा खण्ड II में कर्मचारी अथवा उनके टे्रड यूनियन्स् द्वारा किये जाने वाले-8 कार्यो को अनुचित श्रम अभ्यास को सूची में डाला गया है। अधिनियम की धारा 25 (T) द्वारा अनुचित श्रम अभ्यास का निषेध किया गया है तथा धारा 25 (U) में अनुचित श्रम अभ्यास की कार्यवाही को दण्डित करने का प्राविधान किया गया है। जिसके अन्तर्गत 6 मास की सजा तथा रूपये 1000/- तक जुर्माना अथवा दोनों दण्ड दिया जा सकता हैं।

अत: अनुचित श्रम अभ्यास की कार्यवाही को करने का पूर्ण निषेध किया गया है। अधिनियम की धारा 25 (A), 25(R), 25(T), 25(U), 26, 27, 28, 29, 30(A), 31, 32, द्वारा अधिनियम के विभिन्न प्राविधानों के उल्लघन पर, अभियोजन एवं दण्ड की व्यवस्था की गयी है तथा धारा 34 में यह व्यवस्था दी गयी है कि कोई न्यायालय इस अधिनियम के अन्तर्गत घटित किसी अपराध अथवा उसके उत्प्रेरण के लिए तभी कार्यवाही करेगा जब ऐसा परिवाद उस व्यक्ति के द्वारा अथवा उचित सरकार की अधिकरिता के अन्तर्गत अधिकृत व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है। अधिनियम के उपबन्धों के उल्लघन के लिए कर्मचारियों तथा यूनियन स्वयं परिवाद नही प्रस्तुत कर सकते हैं। केवल उचित सरकार द्वारा अथवा उसकी अनुमति से किसी व्यक्ति द्वारा परिवाद किया जा सकता है।

अधिनियम के उपबन्धों कों और अधिक प्रभावी बनाने, अनुचित बिलम्ब को रोकने के लिए, निम्न संशोधन आवश्यक है। जिससे सेवायोजकों द्वारा जानबूझकर उक्त अधिनियम के प्राविधानों का उल्लघन न हों और नियोजकों द्वारा मनमानी पूर्ण कार्यवाही कर कर्मचारियों का उत्पीडन न किया जा सकें।

1- सेवा समाप्ति के समस्त प्रकार के व्यक्तिगत विवादों को संराधन तंत्र में न प्रस्तुत कर, सीधे श्रम न्यायालय में दाखिल करने की व्यवस्था की जाय जिससे संदर्भादेश में होने वाले अत्यधिक विलम्ब को समाप्त किया जा सकें।

2- सेवाशर्तों में अधिनियम के प्रविधानों का उल्लघन करते हुए किसी भी अनुचित परिवर्तन के विरूध्द कर्मचारी को सीधे श्रमन्यायालय में परिवाद पत्र प्रस्तुत करने की व्यवस्था की गयी तथा श्रम न्यायालयों, न्यायाधिकरणों को कार्य की दशाओं/सेवाशर्तो में एक पक्षीय परिवर्तन के विरूध्द स्थगन आदेश देने हेतु सक्षम बनाया जाय।

3- श्रम न्यायालयों को अथवा औद्योगिक न्यायाधिकरण को स्वयं अपने एवार्डों को लागू करने का अधिकार दिया जाय तथा देय धन लाभ की वसूली हेतु प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार दिया जाय।

4- श्रम न्यायालय न्याधिकरणों को अपने आदेश/एवार्ड का प्रतिपालन कराने और उनका उल्लघन करने के लिए सम्बन्धित नियोजक/व्यक्ति को अवमानना अधिनियम के अन्तर्गत दण्डित करने का अधिकार दिया जाय, जिससे इनके आदेशों/अभिनिर्णयों को प्रतिपालन हो सके ओैर सेवायोजको अनावश्यक विलम्ब करने, एवार्ड/आदेशों को निष्फल करने की प्रवृत्ति को रोका जा सके।

5- अधिनियम में सशोधन कर पीडित कर्मचारी अथवा उसके श्रम संघटन को संक्षम न्यायालय में अधिनियम के विभिन्न प्राविधानों के उल्लघन के लिए परिवाद पत्र दाखिल करने का अधिकार दिया जाय जिससे अधिनियम के प्राविधानों का जबरन उल्लघन सेवायोजको द्वारा न किया जा सके और औद्योगिक सम्बन्ध मधुर रह सके तथा श्रमिको की आस्था इस तत्र में बनी रहे और उन्हें अराजता अथवा औद्योगिक अशान्ति के लिए बाध्य न होना पडें।

6- अनुचित श्रम अभ्यास के मामले मे, कर्मचारी अथवा उसके श्रम संघ व नियोजक अथवा उनके श्रम संघ को श्रम न्यायालय अथवा न्यायाधिकरण में जिसकी विषय वस्तु हों, परिवादपत्र प्रस्तुत करने तथा श्रम न्यायालयों/न्यायाधिकरणों को उन पर सज्ञान लेने, दण्ड अधिरोपित करने हेतु अधिकृत किया जाय। अनुचित श्रम अभ्यास निरन्तर घटित होने से रोकने हेतु श्रम न्यायालय/न्यायाधिकरण को सम्यक अधिकार प्रदान किया जाय और आवश्यकता अनुसार अधिनियम की धारा 7 एवं 7A में उचित संशोधन कर श्रम न्यायालयों/न्यायाधिकरणों को सक्षम बनाया जाय जिससे औद्योगिक विवादों को रोका जा सके तथा औद्योगिक उत्पादन, प्रभावित न हो।

7- वैसे केन्द्रीय व राज्य अधिनियम में जो अप्रभावी विधि के रूप में है, उनमें अन्य परिवर्तन करने की आवश्यकता है, जिन पर फिर कभी चर्चा करेगें।

11 January 2008

महाशक्ति समूह मनाऐगा : विवेकानंद जयंती

महाशक्ति समूह ने विवेकानंद जंयती मनाने का फैसला किया है, दिनाँक 12/01/2008 को पूरे दिन लेख प्रकाशित करेगा। जिसमें स्वामी विवेकानंद जी लेख, फोटों, उक्तियाँ, भाषण तथा उनके सम्बन्धित अन्य सामग्रियाँ प्रकाशित की जायेगी।

उठो जागो और लक्श्य ..........

उठो जागो और लक्श्य तक पहून्चे बिना रुको मत...........
ऐसा कहना था भारत के उस महान संत स्वामी विवेकानन्द का ! किन्तु प्रिश्न यह उथत है लक्श्य क्या है? एक बदे लक्श्य को पने के लिये हमऐन कई मील के पथर पास कर्ने पडते हैं! मानव जीवन का लक्श्य तो पर्मात्मा को ही पाना है और भारत भूमि इसके लिये सब्से महान है जिसकी गोद मैं खेल खेल कर कितने हि लोगोन ने वो लक्श्य को पाया है ! तभी तो शिकागो सो लौट्ते समय उन्होने जहाज से ब्न्दर्गह पर चल्लन्ग लगा दी और इस पावन भारत की पवित्र मिट्टी मैन लोतैन मरने लगे और कहने लगे कि इतने दिन विदेश मैन रह्कर मेर शरीर अप्वित्र हो गया है और कआफ़ी देर तक उस मिट्टी मैन लोतते ब रहे ध्न्य है ऐस मत्रिभूमि से प्यर और धन्य है ऐसी भारत मां कई पावन माटी ..... उसे कोटि - कोटि प्रनाम...
उन्होने कहा था....."केवल तब और तब ही तुम हिन्दू कहलाने के लायक हो, जब उस शब्द को सुनते ही तुम्हारी रगों में से शक्ती की विद्युत तरंग दौड जाय"
किन्तु आज देश क दुर्भाग्य है कि आज पास्चत्य के अन्धानुकरन पर चल पडे हैन और ब भारत मै धर्म्परिवर्तन जैसे कुच लोगोन के जीवन क प्रमुख उद्देश्य बन ग्या है हमऐन इसे रोकना होग और भर्त को फ़िर से विश्वगुरु बनाना होगा !
शिकागो मओन उनके द्वर कहे गये कुच सुवचन....
"
The very idea of life implies death and the very idea of pleasure implies pain. The lamp is constantly burning out, and that is its life. If you want to have life, you have to die for it every moment. Life and death are only different expressions of the same thing looked at from different standpoints. They are the falling and rising of the same wave, and the two form one whole. One looks at the "fall" side and becomes a pessimist, another looks at the "rise" side and becomes an optimist."

२ "

You have not caught my fire yet--you do not understand me! You run in the old ruts of sloth and enjoyments. Down with all sloth, down with all enjoyments here or hereafter. Plunge into the fire and bring the people towards the Lord. That you may catch my fire, that you may be intensely sincere, that you may die the heroes' death on the field of battle--is the constant prayer of

We cannot add happiness to the world. Similarly, we cannot add pain to it either. The sum total of the energies of pleasure and pain displayed here on earth will be the same throughout. We just push it from this side to the other side, and from that side to this, but it will remain the same, because to remain so is its very nature. This ebb and flow, this rising and falling, is in the world's very nature; it would be as logical to hold otherwise as to say that we may have life without death."



आज उनके जन्म्दिन पर हमिन उन्हैं शत-शत नम्न ्कर्ते हुए भार्त को फ़िर से विश्वगुरू बनाने क प्रन करते हैं....
जय हिन्द


09 January 2008

ज्ञान निर्झर- सात बातें

माता-पिता, लक्ष्मी-नारायण के रूप हैं। उनका सदा बन्‍दन करना चाहिये।

सदाचारी पुत्र माता-पिता को सद्गति प्रदान करता है।

माता, पिता, गुरू, अतिथि और सूर्य ये प्रत्‍यक्ष देव है इसनकी सेवा करनी चाहिये।

बालक से निर्दोषता की सीख मिलती है।

माता सुशिक्षिता हो तो बालको को हजार शिक्षको से अधिक ज्ञान दे सकती है।

दूसरे के सुख में सुखी होना ही प्रेम का लक्षण है।

बड़ो के प्रति सहनशील, छोटो के प्रति दया, समवयस्‍कों के साथ मित्रता एवं जीवों के साथ समान व्‍यवहार करने से सर्वात्‍मा श्रीहरि प्रसन्‍न होते हैं।

08 January 2008

क्या गरीब इंजिनियर नहीं हो सकता......

मेरे पङौस मे रहने वाला गबरू डायबिटीज का रोगी है और छोटा मोटा मजदूरी का काम कर पेट पालता है. गबरू का बी पी एल कार्ड मैं अपनी तमाम जानकारियों के बाद भी नहीं बनवा पाया .क्यों कि उसने हमारे वर्तमान वार्ड मैंबर के विरोध में मतदान किया था.तो मुझे याद आई 4-5 साल पहले की एक घटना जब मै जोधपुर आयुर्विज्ञान महाविध्यालय से चर्म रोग  रोग विभाग  में एम डी करते समय , एक दिन एक अच्छा सूटेड बूटेड मरीज पिंपल्स दिखाने के लिए आया.चूंकि हम वरिष्ठ रेजिडेंट चिकित्सक थे,इसलिए रोगी को देखने के बाद उपचार लिखने का अधिकार भी हमें ही था.मैनें जैसे ही दवाई लिखने के लिए पैन चलाना प्रारंभ किया उसने अपना बी पी एल कार्ड आगे किया .चूंकि बी पी एल मरीजों को सरकार की नीति के अनुसार समस्त औषधियां मुफ्त में मिलती थी,इसलिए मैं चौंका ,क्यों कि चिकित्सालय अधीक्षक का मौखिक आदेश था कि ऐसे रोगियों को आवश्यक दवाईयां ही लिखी जायें,और पिंपल्स में ऐसी कोई समस्या नहीं कि जान पे बन आ रही हो .तो मैने उससे पूछा कि भाई आप क्या करते हैं तो उसने बोला कि मैं सिविल इंजिनियर हूं,तो मैने कहा कि इंजिनियर गरीब कैसे हो सकता है.....उसने आंखे तरेर कर मेरी तरफ देखा ,और बोला ...क्यों गरीब को इंजीनियर बनने का भी हक नहीं है क्या........सचमुच लोकतंत्र मैं कोई भी गरीब हो सकता है...बस एक सर्टिफिकैट चाहिये......... क्या गरीब इंजिनियर नहीं हो सकता......

लीपा-पोती और मामला रफ़ा-दफ़ा, शर्म करो बीसीसीआई…

एक बार फ़िर वही कहानी दोहराई गई, नेताओं ने हमेशा की तरह देश के आत्मसम्मान की जगह पैसे को तरजीह दी, कुर्सी को प्रमुखता दी| मैंने पिछले लेख में लिखा था कि “शरद पवार कम से कम अब तो मर्दानगी दिखाओ”…लेकिन नहीं| समूचे देश के युवाओं ने जमकर विरोध प्रकट किया, मीडिया ने भी (अपने फ़ायदे के लिये ही सही) दिखावटी ही सही, देशभक्ति को दो दिन तक खूब भुनाया| इतना सब होने के बावजूद नतीजा वही ढाक के तीन पात| शंका तो उसी समय हो गई थी जब NDTV ने कहा था कि “बीच का रास्ता निकालने की कोशिशें जारी हैं…”, तभी लगा था कि मामले को ठंडा करने के लिये और रफ़ा-दफ़ा करने के लिये परम्परागत भारतीय तरीका अपनाया जायेगा| भारत की मूर्ख जनता के लिये यह तरीका एकदम कारगर है, मतलब एक समिति बना दो, जो अपनी रिपोर्ट देगी, फ़िर न्यायालय की दुहाई दो, फ़िर भी बात नहीं बने तो भारतीय संस्कृति और गांधीवाद की दुहाई दो… बस जनता का गुस्सा शान्त हो जायेगा, फ़िर ये लोग अपने “कारनामे” जारी रखने के लिये स्वतन्त्र !!!

आईसीसी के चुनाव होने ही वाले हैं, शरद पवार की निगाह उस कुर्सी पर लगी हुई है, दौरा रद्द करने से पवार के सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खराब हो जाते, क्योंकि जो लोग हमसे भीख लेते हैं (वेस्टइंडीज, बांग्लादेश आदि) उनका भी भरोसा नहीं था कि वे इस कदम का समर्थन करते, क्योंकि इन देशों के मानस पर भी तो अंग्रेजों की गुलामी हावी है, इसलिये टीम को वहीं अपमानजनक स्थिति में सिडनी में होटल में रुकने को कह दिया गया, ताकि “सौदेबाजी” का समय मिल जाये| दौरा रद्द करने की स्थिति में लगभग आठ करोड़ रुपये का हर्जाना ऑस्ट्रेलिया बोर्ड को देना पड़ता| जो बोर्ड अपने चयनकर्ताओं के फ़ालतू दौरों और विभिन्न क्षेत्रीय बोर्डों में जमें चमचेनुमा नेताओं (जिन्हें क्रिकेट बैट कैसे पकड़ते हैं यह तक नहीं पता) के फ़ाइव स्टार होटलों मे रुकने पर करोड़ों रुपये खर्च कर सकता है, वह राष्ट्र के सम्मान के लिये आठ करोड़ रुपये देने में आगे-पीछे होता रहा| फ़िर अगला डर था टीम के प्रायोजकों का, उन्हें जो नुकसान (?) होता उसकी भरपाई भी पवार, शुक्ला, बिन्द्रा एन्ड कम्पनी को अपनी जेब से करनी पड़ती? इन नेताओं को क्या मालूम कि वहाँ मैदान पर कितना पसीना बहाना पड़ता है, कैसी-कैसी गालियाँ सुननी पड़ती हैं, शरीर पर गेंदें झेलकर निशान पड़ जाते हैं, इन्हें तो अपने पिछवाड़े में गद्दीदार कुर्सी से मतलब होता है|

तारीफ़ करनी होगी अनिल कुम्बले की… जैसे तनावपूर्ण माहौल में उसने जैसा सन्तुलित बयान दिया उसने साबित कर दिया कि वे एक सफ़ल कूटनीतिज्ञ भी हैं| इतना हो-हल्ला मचने के बावजूद बकनर को अभी सिर्फ़ अगले दो टेस्टों से हटाया गया है, हमेशा के लिये रिटायर नहीं किया गया है| हरभजन पर जो घृणित आरोप लगे हैं, वे भी आज दिनांक तक नहीं हटे नहीं हैं, आईसीसी का एक और चमचा रंजन मदुगले (जो जाने कितने वर्षों से मैच रेफ़री बना हुआ है) अब बीच-बचाव मतलब मांडवाली (माफ़ करें यह एक मुम्बईया शब्द है) करने पहुँचाया गया है| मतलब साफ़ है, बदतमीज और बेईमान पोंटिंग, क्लार्क, सायमंड्स, और घमंडी हेडन और ब्रेड हॉग बेदाग साफ़…(फ़िर से अगले मैच में गाली-गलौज करने को स्वतन्त्र), इन्हीं में से कुछ खिलाड़ी कुछ सालों बाद आईपीएल या आईसीएल में खेलकर हमारी जेबों से ही लाखों रुपये ले उड़ेंगे और हमारे क्रिकेट अधिकारी “क्रिकेट के महान खेल…”, “महान भारतीय संस्कृति” आदि की सनातन दुहाई देती रहेंगे|

सच कहा जाये तो इसीलिये इंजमाम-उल-हक और अर्जुन रणतुंगा को सलाम करने को जी चाहता है, जैसे ही उनके देश का अपमान होने की नौबत आई, उन्होंने मैदान छोड़ने में एक पल की देर नहीं की… अब देखना है कि भारतीय खिलाड़ी “बगावत” करते हैं या “मैच फ़ीस” की लालच में आगे खेलते रहते हैं… इंतजार इस बात का है कि हरभजन के मामले में आईसीसी कौन सा “कूटनीतिक” पैंतरा बदलती है और यदि उसे दोषी करार दिया जाता है, तो खिलाड़ी और बीसीसीआई क्या करेंगे? इतिहास में तो सिडनी में हार दर्ज हो गई…कम से कम अब तो नया इतिहास लिखो…

- सुरेश चिपलूनकर, उज्जैन

07 January 2008

व्‍यक्तिगत आक्षेप कितने सही ?

आज प्रमेन्‍द्र के महाशक्ति ब्‍लाग पर एक शीना की सलाह में एक टिप्‍पणी पढ़ने को मिली, जो वास्‍तव में व्‍यक्तिगत आक्षेपों से भरी हुई थी। क्‍या पेशे से डक्टर और उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त महिला अगर किसी पर पर व्‍यक्तिगत अक्षेप के साथ-साथ परिवारे के सदस्‍यों को भी जोड़े तो निश्चित रूप से निन्‍दा होनी चाहिऐ। मैने भी उक्‍त लेख पढ़ा था किन्‍तु लेख में ऐसा कुछ भी नही था कि व्‍यक्तिगत आक्षेपमय टिप्‍पणी किया जाना जरूरी होता?

लेखन का अपना महत्‍व है किन्‍तु जिस प्रकार उन्‍होने व्‍यक्तिगत टिप्‍पणी की उसके साथ ही साथ उसे अपने ब्‍लाग पर भी प्रकाशित किया जो सर्वथा निन्‍दीय है। अपनी बात कहना अलग विषय है किन्‍तु किसी पर व्‍यक्तिगत अक्षेप करना नितान्‍त ही गलत मर्यादा है। वैसे यह विषय मित्र प्रमेन्‍द्र जी का है और वही तय करेगें कि शीना जी की सलाह पर क्‍या लिखते है।

लेखन में जरूरी है कि व्‍यक्तिगत अक्षेप न हो, व्‍यकितगत अक्षेपों से तो बात बहुत दूर तक जायेगी।

शरद पवार जी कम से कम अब तो मर्दानगी दिखाओ…

अम्पायरों की मिलीभगत से पहले तो भारत को सिडनी टेस्ट में हराया गया और फ़िर अब हरभजन को “नस्लभेदी”(??) टिप्पणियों के चलते तीन टेस्ट का प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, यानी “जले पर नमक छिड़कना”…शरद पवार जी सुन रहे हैं, या हमेशा की तरह बीसीसीआई के नोटों की गड्डियाँ गिनने में लगे हुए हैं पवार साहब, ये वही बेईमान, धूर्त और गिरा हुआ पोंटिंग है जिसने आपको दक्षिण अफ़्रीका में मंच पर “बडी” कहकर बुलाया था, और मंच से धकिया दिया था विश्वास नहीं होता कि एक “मर्द मराठा” कैसे इस प्रकार के व्यवहार पर चुप बैठ सकता है हरभजन पर नस्लभेदी टिप्पणी का आरोप लगाकर उन्होंने पूरे भारत के सम्मान को ललकारा है, जो लोग खुद ही गाली-गलौज की परम्परा लिये विचरते रहते हैं, उन्होंने एक “प्लान” के तहत हरभजन को बाहर किया है, बदतमीज पोंटिंग को लगातार हरभजन ने आऊट किया इसलिये… आईसीसी का अध्यक्ष भी गोरा, हरभजन की सुनवाई करने वाला भी गोरा… शंका तो पहले से ही थी (देखें सायमंड्स सम्बन्धी यह लेख) कि इस दौरे पर ऐसा कुछ होगा ही, लेकिन भारत से बदला लेने के लिये ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी इस स्तर तक गिर जायेंगे, सोचा नहीं था…

अब तो बात देश के अपमान की आ गई है, यदि अब भी “बिना रीढ़” के बने रहे और गाँधीवादियों(??) के प्रवचन (यानी… “जो हुआ सो हुआ जाने दो…” “खेल भावना से खेलते रहो…” “हमें बल्ले से उनका जवाब देना होगा…” “भारत की महान संस्कृति की दुहाईयाँ…” आदि-आदि) सुनकर कहीं ढीले न पड़ जाना, वरना आगे भी उजड्ड ऑस्ट्रेलियाई हमें आँखें दिखाते रहेंगे सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब हमारा बोर्ड आईसीसी में सबसे अधिक अनुदान देता है, वेस्टईंडीज और बांग्लादेश जैसे भिखारी बोर्डों की मदद करता रहता है, तो हम किसी की क्यों सुनें और क्यों किसी से दबें…? कहा जा रहा है कि अम्पायरों को हटाकर मामला रफ़ा-दफ़ा कर दिया जाये… जबकि भारत के करोड़ों लोगों की भावनाओं को देखते हुए हमारी निम्न माँगें हैं… जरा कमर सीधी करके आईसीसी के सामने रखिये…

(1) सिडनी टेस्ट को “ड्रॉ” घोषित किया जाये
(2) “ब” से बकनर, “ब” से बेंसन यानी “ब” से बेईमानी… को हमेशा के लिये “ब” से बैन किया जाये
(3) हरभजन पर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया जाये
(4) अन्तिम और सबसे महत्वपूर्ण यह कि टीम को तत्काल वापस बुलाया जाये…

ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? आईसीसी दौरा बीच में छोड़ने के लिये भारतीय बोर्ड पर जुर्माना कर देगा? क्या जुर्माना हम नहीं भर सकते, या जुर्माने की रकम खिलाड़ियों और देश के सम्मान से भी ज्यादा है? राष्ट्र के सम्मान के लिये बड़े कदम उठाने के मौके कभी-कभी ही मिलते हैं (जैसा कि कन्धार में मिला था और हमने गँवाया भी), आशंका इसलिये है कि पहले भी सोनिया गाँधी को विदेशी मूल का बताकर फ़िर भी आप उनके चरणों में पड़े हैं, कहीं ऐसी ही “पलटी” फ़िर न मार देना… अब देर न करिये साहब, टीम को वापस बुलाकर आप भी “हीरो” बन जायेंगे… अर्जुन रणतुंगा से कुछ तो सीखो… स्टीव वॉ ने अपने कॉलम में लिखा है कि “इस प्रकार का खेल तो ऑस्ट्रेलियाई संस्कृति है”, अब हमारी बारी है… हम भी दिखा दें कि भारत का युवा जाग रहा है, वह कुसंस्कारित गोरों से दबेगा नहीं, अरे जब हम अमेरिका के प्रतिबन्ध के आगे नहीं झुके तो आईसीसी क्या चीज है… तो पवार साहब बन रहे हैं न हीरो…? क्या कहा… मामला केन्द्र सरकार के पास भेज रहे हैं… फ़िर तो हो गया काम…
- सुरेश चिपलूनकर

06 January 2008

क्या यही अहिंसा है

आज जिस गान्धी को अहिंसा का पुजारी ओर राष्‍ट्रपिता कहा जाता है और जो कांग्रेसी ऐसा कहते है मैं उन लोगों से पूछ्ता हूं कि उसी गान्धी की मौत के बाद उनकी आदर्श अहिंसा कहां गयी थी जब कितने हि बेकसूर संघ के कार्यकर्ताओं को एक बन्द कमरे मैं ज़िन्दा ज़ला दिया गया क्या कसूर था उन लोगों का केवल इतना कि उन्होंने अहिंसा क तथाकथित चोला नहीं ओड़ रखा था, और पूछना चाहता हूँ कि क्या स्वतन्त्रता गान्धी ने दिलवा दी थी या फ़िर उसकी तथाकथित अहिंसा ने ! अगर अहिंसा के बल पर हम अंग्रेजों को जो हमारे ऊपर पहले से ही राज कर रहे थे भगा सकते थे तो फ़िर आज़ादी के बाद सेना की आवश्यकता क्यों ? ज़ो पहले से ही घुसा हुआ है उसे हम भगा सकते हैं तो फ़िर तो ऐसी अहिंसा के होते हुए सेना की क्या जरूरत? अगर कोइ फ़िर भी आंख उठा कर देखे तो इन अहिंसा के पुजारियों को आगे आना चाहिये अहिंसा को लेकर...

परन्तु ये तो अहिंसा के नाम पर अपनी भारत को भी बेच दैंगे तब फ़िर आगे तो नेताजी और भगत सिंह जैसे लोगों को ही सीमा पर अपनी भारत मां की लाज़ बचाते हुए मरते देखा है ! ये पद्लोलुप अहिंस के पुजारी तो अपने स्वार्थ के लिये किस हद तक गिर सक्ते हैं इसकी कल्पना भी करना मुश्किल है ! जो अपने देश के वीर सपूत नेताजी और भगत सिंह के साथ एक आतंकवादी जैसा व्यवहार करवाते हैं और अफ़ज़ल को अपना दामाद बना कर उसकी मदद करते हैं ! ऐसे अहिंसा के पुजारी कांग्रेसियों को पैदा करके तो भारत मां भी रोती होगी, किन्तु अभी नेताजी भी हमारे दिल मैं हैं और हम उनके मंसूबों को सफ़ल नहीं होने दैंगे
जय हिन्‍द

03 January 2008

हिन्दुस्तान ! हत्यारे को सुरक्षा !

क्रिसमस डे के दिन जब सारा विश्व इसकी खुशियों में डूबा था उस उड़ीसा में चर्च सर्मथक हिन्दुओ के 85 साल के धार्मीक गुरु श्री लक्ष्मणानंद सरस्वती को जान से मारने की कोशीश में लगा था। इस आक्रमण में स्वयं सन्त लक्ष्मणानन्द सरस्वती और उनका वाहन चालक घायल हो गया जिन्हें कटक के अस्पताल में भर्ती कराया गया। श्री लक्ष्मणानंद सरस्वती वह व्यक्ति हैं जो उड़ीसा में चल रहे धर्मान्तरण का विरोध कई वर्षो से आवज उठाते आ रहे हैं। उनपर हमले का साफ मतलब हो सकता है इस पूरे मामले में चर्च और इससे जुड़े लोग उनके अभियान से खफा हैं और उनके मकसद में कहीं न कहीं बाधा पहुंच रही थी। बहरहाल, जो भी हो लेकिन उड़ीसा से अक्सर चर्चों द्वारा धर्मान्तरण कराने का मसला आता रहता है। अब चर्च का इतना हिम्मत बढ गया है कि खुले आम वो किसी भी धर्मगुरु को बीच रास्ते पर जानलेवा हमला कर सकते हैं तो यो आम आदमी का ये क्या हाल कर सकते हैं। इसका कारण सोनिया गाँधी का ईसाइ मूल का होना और धर्मान्तरण करने वाले और चर्च को आरोपियों को खुला राजनीतिक प्रश्रय का दिया जाना है। ईसाइयों के द्वारा कानून का खुलकर माखौल उडाया जाता है। प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं लेकिन चर्चों से गुप्त रूप से किसी भी खास पार्टी के लिए एकतरह से फतवा जारी होता है। ज्यादातर फायदा कांग्रेस के मोर्चे यूडीएफ यानी संयुक्त जनतांत्रिक मोर्चा को मिलता आया है। लेकिन अब इस दौर में वाम मोर्चा भी अब पीछे नहीं रही और इस समुदाय को अपना वोट बैंक बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। चर्च और इससे जुड़े लोग ऐसे ताकतवर के रूप में उभरे हैं कि वहां की राजनीतिक और सामाजिक जीवन में व्यापक बदलाव देखा जा सकता है। भारत में चल चर्च और मिशनरी लाख अपनी सफाई में यह कहते रहे कि वे यहां सिर्फ मानव सेवा के लिए हैं, लेकिन समय-समय पर इनके ऊपर उठती अंगुली से यह बात तो साफ है कि कहीं न कहीं कुछ रहस्य जरूर था जो अब तक पर्दे के अंदर से चल रहा था। लेकीन अब ये खुल कर धर्मान्तरण का खेल खेलते हैं और इनके रास्ते में आने बाले का जान लेने से भी नही चुकते है। हिन्दुस्तान की सरकार कभी कभी नीदं से जागती है और कानून बनाने कि बात करती है लेकिन ये कानून शायद आज तक नही बना और तथाकथीत हिन्दुओ कि पार्टी कहे जाने बाली भारतीय जनता पार्टी के शासन बाले राज्य में अगर कोई नया कानून बनता है तो अल्पशख्यक मानवाधीकार के नाम हाय तौबा मचाने लगते है (इन्हें काश्मीर में अल्पशख्यक हिन्दुओ कि हालत नही दिखता है) और उस कानुन का हाल सोनिया सरकार टाडा और पोटा जैसा बना देती है और भारत के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह यहा तक कहते है कि ईसाइयों को सुरक्षा मिलनी चहीये। भारत के गृह मन्त्री आक्रमणकर्ता के कुशलता जानने के लिये उड़ीसा दौरे दौरे जाते हैं। यह हिन्दुस्तान हि है जहा हमलावर को सुरक्षा मिलता है।
ऐसा तो नहीं कि ये मिशनरी भारत में मानव सेवा की आड़ में अपना कोई निजी एजेंडा चला रहे हों। उड़ीसा से ही नहीं बल्कि झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी आदिवासी बहुल इलाकों से बराबर यह खबर मिलती रही है कि वहां ये मिशनरी धमातरण जैसे मिशन पर काम कर रहे हैं। ये झुठ फरेव के द्वारा मिशनरी का प्रचार करते है। दिल्ली के आर्कविशप करम मसीही ने 5 जनवरी 99 को दिल्ली में संवादताता सम्मेलन में यह दावा किया था कि भारत में काई विदेशी मिशनरीज कार्यरत नहीं है, भारत सरकार किसी विदेशी को मिशनरी कार्य के लिए वीजा नही देती । उनके दावों की पोल कुछ ही दिनों में उड़ीसा में आस्ट्रेलियाई मिशनरी स्टेन्स और उसके दो पुत्रों की हत्या ने खोल दी कि भारत में विदेशी मिशनी हैं या नहीं । आज भी हजारों की संख्या में विदेशी मिशनी इस देश में कार्यरत है । सचमुच देश के सामने एक शोचनीय प्रश्न है कि धर्मान्तरण के कारण समाज का वातावरण विषैला होता जा रहा है। सरकार को चाहिए इन इलाको में चल रहे इन मिशनरियों के क्रियाकलाप पर नजर रखें और एक विस्तृत रिपोर्ट आम लोगों के समक्ष पेश करें। अगर कहीं ऐसा है तो जल्द से जल्द इन मिशनरियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। धर्मान्तरण पर विराम नहीं लगने से हिन्दुओं के अल्पमत में आने का खतरा बढ गया है।

लादेन बना पैगम्बर ?



अमेरिका सहित विश्व के सभी लोग इस्लाम कबूल करें, यदि आतंकवाद से मुक्ति चाहते हों तो? जी हां! यह समझौता रूपी बयान तीन साल बाद मांद से बाहर निकले अमेरिका के सबसे बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का मुख्य आरोपी और कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का। जिसने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के छठीं बरसी पर एक वीडियो टेप जारी कर यह बयान दिया है।

इस बयान की समीक्षा करें तो यह साफ है कि आतंकवाद सिर्फ और सिर्फ दुनिया को इस्लामिक देशों में तब्दील कर सभी धर्मो का सफाया करना है। यदि हम लादेन को नये युग का 'पैगम्बर' कहें तो अतिश्योक्ति न होगा। क्योंकि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने तो दुनिया में अपनी जनसंख्या बढ़ाकर इस्लाम धर्म को फैलाने का कार्य बखूबी किया था जिसके लिए उन्होेंने कई प्रकार के नियम और कानून बनाये यहां तक कितनों का कत्लेआम भी किया गया।

परन्तु इस 'पैगम्बर' ने तो आतंकवाद जैसे हथियार का प्रयोग किया है। जिसके बल पर सम्पूर्ण विश्व में मुस्लिम धर्म की स्थापना का संदेश दिया है। मैनें आतंकवाद को हथियार इसलिए कहा है कि हथियार का दूसरा नाम ही आतंकवाद है।

सच तो यह है कि ओसामा बिन लादेन ने सिर्फ दुनिया को ही नहीं वरन् अपने संतो (आतंकी गिरोहो के सरगना) को भी संदेश दे दिया है कि अब आतंकवाद का मुख्य मुद्दा आ गया है। जिसके लिए वह इतने सालों से प्रयासरत थे। इसके साथ ही सभी आतंकवादी संगठन अब 'जेहाद' के नाम पर विश्व के

समस्त मुस्लिम देश को एकता के सूत्र में पिरोना चाहेंगे और फिर शुरू होगा विश्व का सबसे बड़ा युध्द! यानी 'धर्मयुध्द' जिसमें सबकुछ होगा।

इस बयान पर यदि इस्लामिक देशों की बात करें तो उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। और कर भी नही सकते क्योकिं यदि आतंकवाद की बात करें तो सभी उस पर कार्रवाई की बात करतें है। परन्तु जब ऐसे तल्ख बयान आ रहे हों कि पूरे विश्व में इस्लाम फैलाया जायेगा तो उनका 'आपसी रिश्ता' मधुर होना लाजिमी है। जहां तक मेरा मानना है कि इस बयान से पूर्व किसी भी देश को आतंकवादियों का मुख्य मुद्दा समझ में नहीं आया रहा होगा कि आखिर इस भयानक और बड़े नरसंहार के क्या उद्देश्य हैं?

आतंकवाद जिसनें-गरीब-अमीर, मज़लूम, बेसहारा, ताकतवर, और निर्बल सभी को रक्तरंजित किया है। नाम सुनते ही रूह कांप उठती है और बरबस ही मुंह से इस काले कारनामें को अंजाम देने वाले के लिए बद्दुआ निकलती है। एक महत्वपूर्ण बात और भी समझ से परे है कि क्या मुसलमानों के पवित्र धर्म ग्रन्थ 'कुरान' में इस बात का जिक्र है कि किसी भी व्यक्ति को वह चाहे जिस वर्ग, धर्म, जाति, या देश का हो उसको किसी भी रूप अर्थात साम,दाम, दण्ड,भेद द्वारा इस्लाम धर्म ग्रहण करवाकर सम्पूर्ण विश्व को मुस्लिम देश बना दिया जाये।

यदि ऐसा है तो वह खुदा का लिखा नहीं हो सकता। क्योंकि खुदा से ऐसा लिखा ही नही जायेगा कि दूसरों का सर्वनाश करके तुम पाक हो जाओगे। और यदि नही लिखा है तो फिर इतने पवित्र ग्रन्थ (जिसके मात्र एक पन्ने के खण्डित होने पर इलाहाबाद सहर को पांच दिनों तक कर्फ्यू का दंश झेलना पड़ा) को मानने और उसी की राह पर चलने वाले ये आतंकवादी या तो मुसलमान नहीं हो सकते या फिर पवित्र धर्म ग्रन्थ 'कुरान' को नहीं मानते। यदि होते तो वह विश्व नहीं किसी क्षेत्र में खून-खराबें जैसे जघन्य अपराध करने का साहस न करते।

अब सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान जैसे देश जो इस्लामिक राष्ट्र है। वहां फिर आतंकवादी हमला क्यों? जबकि वहां पर मुस्लिमों का आधिपत्य है। वहां पर रहने वाले अन्य धर्म के लोग केवल नाम के दूसरे धर्म के हैं बाकी सभी कार्य मुस्लिम पध्दति से ही करते हैं। एक बात तो साफ है कि मुस्लिम देश यदि आतंकवाद का विरोध करते है तो वह महज छलावा है क्योंकि अब आतंकवाद का मुख्य मुद्दा उनकी समझ में आ गया है।

विश्व के अधिकांश राष्ट्र आतंकवाद का दंश झेल रहें है। जिसमें भारत भी है। यदि भारत के पहलुओ की बात करें तो यहां एक घटना का जख्म भरने से पहले दूसरे को अंजाम देने से नहीं चूकतें। इस बात का प्रमाण्ा तो मिल ही गया कि आखिर भारतीय मंदिरों, मठों तथा अन्य धार्मिक और पवित्र स्थलों, प्रतिष्ठानों पर ज्यादा आतंकी हमलें क्यों होतें है। भारत को ओसामा बिन लादेन के संत (दाउद इब्राहिम, अबू सलेम, छोटा राजन जैसे तमाम आतंकी) जो आतंकवाद को प्रचारित-प्रसारित कर रहें है उन्होनें इस विश्व के एक मात्र हिन्दू राष्ट्र को पूरी तरह से घेर रखा है। और जगह-जगह अपने 'आतंकी धर्मड्डा' की स्थापना कर रहें है।

एक प्रकार से यह भी कहा जा सकता है कि जिस प्रकार भारत में नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में विशेश धर्म प्रचारक नये धर्मों का प्रचार-प्रसार कर अपने धर्मानुयायी बनाये। ठीक उसी प्रकार यह आतंकी धर्म के अधिकंाशत: बेरोजगार लोग ही अनुयायी बन रहे है। जिसके लिए हमें अपने आपको सम्भालना होगा। अब वह दिन दूर नहीं जब ऐलान किया जायेगा कि सभी 'संत' अपने 'कार्य' को पूर्ण करें। तब मित्र राष्ट्र सहित विशेस धर्म राष्ट्र और आतंकी तथा मुस्लिम राष्ट्र के बीच ''जंग-ए-जेहाद'' छिड़ जायेगा