22 May 2015

सप्तदचिरजीवि स्तुति:

अश्वत्थारमा बलिर्व्या सो हनुमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तैते विरजीजीविन:।।
सत्ते्तान् संस्मररेन्नित्यं मार्कण्डेवयमथाष्टमम्।
जीवेद् वर्षशतं सो‍Sपि सर्वव्यातधिविवर्जित:।।

स्‍तुति पाठ से लाभ- उक्‍त स्‍तुति के पाठ करने से यात्रा सुखद होती है, रोग-व्‍याधि का निवारण हो आयु में वृद्धि होती है। इस मंत्र के उत्‍तम परिणाम के लिये नित्‍य प्रात: व रात्रि में आठ-आठ बार वाचन करना चाहिए।

17 May 2015

मैं


जब भी अच्छा काम हो श्रेय ले जाते हैं वे
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं

मैं यों तो छोटा सा है शब्द
मगर फैलाता है बडा दुख- दर्द
मौसम चाहे सर्द हो चाहे हो गर्म
मै ही है सबसे बडा मर्म

" मैं" " मैं" करते लुट गए कई लाख
मिट्टी में मिलकर होना है सबको खाख

मिट्टी में मिलकर भी नही मिटता है मैं
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं

कई बुत व सडकें बनती हैं उनके नाम पर ,
कई बातें गढ़ी जाती हैं उनके काम पर,
समाज में ऊँचा रूतबा होता है उनका ,
लूटते हैं जिसे वे   वह होती है जनता,
गुपचुप करते हैं धन्धे चोरी के ,
भाषणों में बनते हैं निन्दक चोरी के ,

कईयों का खाख में मिलाकर ,
अपने रस्ते से मिटाकर ,
जब खुद जाते हैं खाख में ,
तब भी नही मिटता है मैं
क्योंकि उनके सिर चढा है मै, और
हर अच्छे काम का श्रेय ले गये हैं वे।
कवि - श्री तरूण जोशी ''नारद''
                                              

13 May 2015

क्‍लासिकल दृष्टिकोण (Classical Approach)

अर्थशास्‍त्र धन का विज्ञान है इस उक्ति का पूरा श्रेय एडम स्मिथ को जाता है। उनकी प्रसिद्ध पु‍स्‍तक “An Enquiry into the Nature and Causes of Welth of Nations.” रखा और कहा कि ‘’राष्‍ट्रो के धन के स्‍वरूप तथा कारणों की जॉंच करना’’ ही अर्थशास्‍त्र की विषय समग्री है। एडम स्मिथ के अनुसार अर्थशास्‍त्र का प्रमुख उद्देश्‍य राष्‍ट्रों की भौतिक सम्‍पत्ति में वृद्धि करना है।

क्‍लासिकल अर्थशास्त्रिओं में प्रमुख एडम स्मिथ (Adam Smith) ने धन को ही अर्थशास्‍त्र की विषय वस्‍तु माना तथा उनके साथी आर्थिक विचारकों ने स्मिथ के बातों का पूर्णरूपेण सर्मथन करते हुऐ कहते है-

जान स्‍टुअर्ट मिल- रा‍जनैतिक अर्थशास्‍त्र का सम्‍बन्‍ध धन के स्‍वाभाव उनके उत्‍पादन और वितरण के नियम से है......... अर्थशास्‍त्र मनुष्‍य से सम्‍बन्धित धन का विज्ञान है।

जे. बी. से - अर्थशास्‍त्र वह विज्ञान है जो धन का अध्‍ययन कराता है।

वाकर - अर्थशास्‍त्र ज्ञान की वह शाखा है जो धन से सम्‍बन्धित है।

उपरोक्‍त क्‍लासिकल अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्‍त्र को धन केन्द्रित कर दिया था। इसको हम सरल भाषा में कह सकते है कि इन अर्थशास्त्रिओं के जुब़ान से धन की बू आती है। इसी धन की बू को देखकर कुछ अ‍ार्थिक विचारकों ने इसकी धन सम्‍बन्‍धी परिभाषाओं की कटु आलोचना भी की-

1. क्‍लासिकल आर्थिक विचारकों ने धन को लौकिक वस्‍तु के रूप में प्रयोग किया अर्था‍त जिसकों छुआ जा सकें। इसके अध्‍ययन के विषय वस्‍तु केवल वही मनुष्‍य बन सके जो उपभोग और उत्‍पादन में लगे है। अन्‍य मनुष्‍यों के क्रियाऐं इसके अध्‍ययन की विषय वस्‍तु नही बन सकी।

2. धन के‍न्द्रित होने के कारण इसकी परिभाषाऐं अर्थशास्‍त्र के श्रेत्र को सक्रीर्ण करती है।

3. धनाधारित होने के कारण कुछ विद्वानों तथा राजनीतिज्ञों ने ‘धन के विज्ञान’ के रूप में अर्थशास्‍त्र की परिभाषाओं की कटु आलोचनाऐं की। इन परिभाषाओं की सबसे बड़ी कमी यह रही कि धन की ही धन को ही अर्थशास्‍त्र का प्रधान लक्ष्‍य बना दिया गया। जबकि प्रधान लक्ष्‍य तो मानव कल्‍याण है तथा धन तो उसे प्राप्‍त करने का साधन मात्र।

क्‍लासिकल विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषा का श्रेत्र संकुचित था तथा इसे सर्वमान्‍य परिभाषा के रूप में मान्‍यता देना ठीक न होगा। तथा इसकी कमियॉं बताती हुई एक और परिभाषा आई जिसका पतिपादन मार्शल ने किया था। मार्शल की इस परिभाषा को भौतिक कल्‍याण से सम्‍बन्धित दृष्टिकोण या नियो-क्‍लासिकल दृष्टिकोण (Neo Classical Approach) कहा गया। इसके बारे में आगे बात करेंगें।

एडम स्मिथ की धन सम्‍बन्धी परिभाषा या क्‍लासिकल दृष्टिकोण (Classical Approach)







07 May 2015

क्षणिकायें - मयखाना

1
हर शराबी का बस दो ही ठिकाना है,
होश मे रहा तो मयखाना,
नशे मे रहा तो,वो दीवाना है.
2
पंडित कहे,शराब पाप है,
शराबी कहे, हम पापी है,
मयकदे मे दोनो संग संग,
कौन सचा कौन झूठा???
3
जब तक तुम थे, मै आशिक,
तुम चले गये, मै शराबी,
कौन निभा गया मुझसे वफा???
4
मन्दिर मे पुजारी,
मस्जिद मे मौलविय,
समाज मे सिपाही,
जहां तीनों मिले,
वो जगह, मयकदा कहलाये.
5
कौन पारो, कहॉं की चन्द्र्मुखी,
वो तो शराब थी,
जो देवदास, देवदास हुआ फिरता है.
6
किसके पास वक्त,
जो थामे मेरा हाथ,
शराब पी के जो लडखडाया,
कई हाथ मयकदे मे एक साथ उठ गये.
7
ना कोई ठोर ना कोई ठिकाना,
बस हाथ मे मय,
चार दोस्त मिले,
बन गया अपना आशियाना
8
हर कोई ग़म के साथ आता है,
मुस्कुराता हुआ जाता है,
कितना गम है मयकदे मे,
फिर भी हर पहर जगमगाता है.

9
कोई शराबी कभी,
खामोश नही होता,
वो सच कहता है,
और दुनिया उसे शराबी.
10
आज मौलविय ने भग्वान को याद किया,
पंडित ने खुदा से अजान किया,
मयकदा भी क्या क्या रंग दिखाता है,
की शराबियों की कोई जात नही होती,