ब्रिटिस सरकार ने 15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने की घोषण की। यह घोषणा उस सरकार ने किया था, जिसने अत्यन्त ही चतुराई से इस देश पर कब्जा किया था ऐसे लोग जो छल को ही वीरता मानते है, जो अपने ही कहीं बात के विपरीत हो जाते है जिसके चरित्र में ही घोखा हो, वह भला ईमानदारी पूर्वक कोई काम कैसे कर सकता है? अंग्रेजों में उक्त सभी गुण थे। भला वो ईमानदारी से अपनी हार कैसे मान लेते? कैसे यह घोषणा कर देते कि हम भारत के क्रान्तिकारियों से भयभीत हो गये है? इन क्रान्तिकारियों के भय से हम देश छोड़कर जा रहे है। इस भय का अंदाजा उस समय भारत में रह रहे अंग्रेजो के पत्रों से लगाया जा सकता है। एक अंग्रेज अपने पत्र में लिखा था कि – जी चाहता है कि यहॉं के सब लोगों को गोली से उठा दूँ अथवा मै स्वंय अत्महत्या कर लूँ।
इस परिस्थिति में भारत को आज़ाद होने से भला कौन रोक सकता है? यदि Freedom of India Act के माध्यम से अंग्रेज इस देश को आजाद न करते तो निश्चय ही छला को जीते गये हिन्दुस्थान को यहॉं के जांबाज नौयुवक उन्हे छका कर जीत लेते। ऐसे में भारत से शायद ही कोई अंग्रेज हताहत हुऐ बिना जा पाता। यहाँ के योद्धा अपनी वीरता और शौर्य से ऐसा करते उससे पहले ही अंग्रेजों ने एक ऐसी चाल चली, जिसका खामियाजा आज भी देश भोग रहा है। देश के तमाम बुद्धिजीवी, विचारवान क्रान्तिकारी और योद्धा नेपथ्य में चले गये। उनकी राष्ट्रीय विचारधारा के अंकुर को आज़ाद भारत ने कभी पनफने नही दिया। सत्ता परिवर्तन के नाटक के साथ एक बड़ी घटना हुई, वह घटना थी वर्तमान पाकिस्तान में लाखों निरीह लोगों की हत्या, महिलाओं का बलात्कार और अपहरण। इस संकट के काल में जहॉं एक हिन्दुस्थानी मर रहा था, वही दूसरा आज़ादी का जश्न मना रहा था, स्वतंत्र देश का रेडियों परतंत्र ही रहा, उसपर सिर्फ उत्सव के समाचार ही दिये जाते रहे।
हिन्दुस्थान के पाकिस्तानी हिस्से में जो कुछ हुआ, वह तो हो ही गया, भले ही किसी सान्तवना के एक भी शब्द नही कहे। किन्तु जो भारत में हुआ वह तत्कालीन शासन कर्ताओं के संवेदन हीनता का प्रबल उदाहरण है। यह घटना इस बात का भी उदाहरण है कि तात्कालीन महान लोग कितने महान थे ? उनकी देश भक्ति क्या और कैसी थी? आज मेरे सामने यह प्रश्न है कि कहीं महान बनाने का गुप्त अभियान तो नही चलाया गया था? क्योकि कोई भी संवेदनशील व्यक्ति, देश भक्त, सच्चा नेत्तृव कर्ता कभी यह स्वीकार न करता कि एक ओर देश के निर्माण करने वाले जन की हानि हो रही हो, और दूसरी ओर ये सत्ता लोलुप लोग जश्न मना रहे हो। यह जश्न मारे जा रहे लोगों का था अथवा उनके सत्ता प्राप्त करने का अथवा दोनो का ? यह पूरे राष्ट्र को अभी समझना है।
2 comments:
ji padhkar bahut achchha laga aage bhi likhate rahiye.
"निश्चय ही छला को जीते गये हिन्दुस्थान को यहॉं के जांबाज नौयुवक उन्हे छका कर जीत लेते। ऐसे में भारत से शायद ही कोई अंग्रेज हताहत हुऐ बिना जा पाता।"
बहुत सही!! मेरे मन की बात कह दी आप ने. स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है एव हम इसे किसी भी कीमत पर जरूर प्राप्त कर लेते -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
Post a Comment