नज़र मुझे जब भी आये तुम,
मेरी घड़कनों में उतर आये तुम।
अपनी ऑंखों मे शराब छिपाए तुम,
खोजते-खोजते जब मेरे पास आये तुम।।
मुझे लगता है आज रात आओंगें तुम,
मेरे सपने में एक झलक दिख जाओगें तुम।
मेरे दिल की सुलगती आग को ब़ुझाओंगे तुम,
रात भर का सफर बिताकर नयी सुबह लाओंगे तुम।
खोजता हूँ जहॉं जहाँ वहाँ हो तुम,
तुम्हाहरा हुस्ना है बेपनाह कहॉं हो तुम ?
ये जान लो मेरे दिल ओ जहॉं हो तुम,
आईना बोलता होगा- तुम हसीं हो जवॉं हो तुम।।
मेरे राज हो, आवाज हो, आगाज तुम,
मेरे जीवन की मंजिज हो ‘साज’ तुम।।
मेरे दिल में सोये आशिक के अंदाज तुम,
मेरे करीब हो मेरे तख्तेआ-ताज तुम।।
घर-घर से गुजरती डगर पर मेरे हम सफर तुम,
मेरे जान से ऊँचे मेरे जिगर तुम,
इधर उधर आस-पास आ जाते तुम,
कुछ पल गुजरे है अब तो आओं नज़र तुम।।
3 comments:
अद्भुत काव्य-कृति है. पूरी कविता में भावनावों और शब्दों का अनुपात अद्भुत है. इतनी उत्तम रचना के लिए आपको धन्यवाद....
कल थे तुम, आज हो तुम
मेरे दिल की धड़कन हो
मेरे सरताज हो तुम
मेरे पंख हो तुम
मेरे परवाज हो तुम
मेरा चेहरा हो तुम
मेरा अंदाज हो तुम
तुम थे तुम हो
और तुम ही रहोगे
सोचता हूँ क्या होगा
जब तुम मिलोगे
मैं क्या जवाब दूँगा
और तुम क्या कहोगे
अपने दिल की
भावनाओं में बहोगे
कवि को समर्पित मेरी कुछ पंक्तियाँ.....आपकी रचना शानदार है.
घर-घर से गुजरती डगर पर मेरे हम सफर तुम,
मेरे जान से ऊँचे मेरे जिगर तुम,
इधर उधर आस-पास आ जाते तुम,
कुछ पल गुजरे है अब तो आओं नज़र तुम।।
kafi achchhi lagi.
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