ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥
ॐ ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥१॥
व्याख्या :- अखिल विश्व मे जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब मे ईश्वर अपनी गतिशीलता के साथ व्याप्त है उस ईश्वर से सम्पन्न होते हुये से तुम त्याग भावना पूर्वक भोग करो। आसक्त मत हो कि धन अथवा भोग्य पदार्थ किसके है अथार्थ किसी के भी नही है ? अत: किसी अन्य के धन का लोभ मत करो क्योकि सभी वस्तुऐ ईश्वर की है। तुम्हारा क्या है क्या लाये थे और क्या ले जाओगे।
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