आज सात साल बाद अचानक रुबिया को देख मनोहर के पॉव जैस थम से गये थे, और वह उसके सामने जा, इस हक से खडा हो गया जैसे आखिर उसकी तपस्या रंग ले आयी हो, और अब उसको रुबिया को अपना बनाने से दुनिया की कोई मजहबी दीवार नही रोक सकती.
उसे सात साल पहले के वो मंजर याद आ गये जब उसने पहली बार रुबिया को अपने कॉलेज मे देखा था, ठीक इसी तरह उस दिन भी तो वो अचानक खडा हो गया था और बस रुबिया को देखता जा रहा था, और रुबिया उसके बगल से स्टुपिड बोल हॅसती हुई चली गई थी. प्रेम धर्म और मजहब की दीवार को नही मानता, यही सोच मनोहर ने रुबिया के दिल मे प्यार जगाने के लिये क्या क्या जतन नही किये थे. रुबिया के छोटे पंसद से ले बडे पंसद के अनुसार खुद को बदल डाला था और एक दिन रुबिया के दिल मे प्यार के दिये को जला ही दिया था, और फिर रुबिया ने भी तो खुद को पुरी तरह से मनोहर के अनुसार ढाल लिया था .
पर प्रेम धर्म और मजहब की दीवार को नही मानता जैसी बातें सिर्फ मोटी मोटी किताबें और धर्मग्रंर्थ मे ही शोभा देती है. मनोहर और रुबिया के प्यार मे भी आखिर धर्म के ठेकेदारों ने अपनी ठेकेदारी के झंडे गाड ही दिये. मनोहर के पिता ने साफ साफ शब्दों मे कह दिया था की, उसे या तो अपने परिवार को चुनना होगा या रुबिया को. वहीं किस्सा रुबिया के घर पर भी था, रुबिया की मॉ ने तो ऐलान कर दिया था की, अगर रुबिया मनोहर से निकाह करती है तो,उनके घर से एक साथ दो लोग निकलेगें, एक तो रुबिया अपनी डोली मे, तो दुसरी उसकी मॉ की अपनी जनाजे मे.
कहा जाता है, जहॉ चाह वहॉ राह. अगर प्यार में सच्चाई हो तो, प्यार की ही जीत हमेशा होती है. और वही हुआ. बहुत मान मन्नौवल के बाद मनोहर के पिता और रुबिया की अम्मी, दोनो ने इनके प्यार पर अपनी मोहर लगाने की इज्जाजत दे दी थी, पर शर्त सिर्फ एक थी - मनोहर के पिता के अनुसार अगर रुबिया हिन्दु धर्म अपनाने को तैयार हो जाती है तो उन्हें कोई ऐतराज नही है, ठीक उसी तरह रुबिया की अम्मी की शर्त थी की, मनोहर को मुस्लिम धर्म अपनाना होगा.
शादी के नये फ्रॉमुले को सुन मनोहर और रुबिया एक दुसरे को देख पहले तो बहुत देर तक हॅसते रहे, फिर उतनी ही देर वो एक दुसरे को पकड रोते भी रहे. और फिर उन दोनो ने भी वही फैसला लिया जो हमेशा से होता आया है. अपनी घर वालों के खातिर उन दोनों का अलग होना ही अच्छा है.
आज सात साल बाद अचानक रुबिया को देख मनोहर के खुशी का कोई ठिकाना नही था और रुबिया तो युं चहक रही थी की जैसे आज सारा आसमॉ उसका हो. दोनो ने एक साथ एक दुसरे से पुछा - कैसे हो मनोहर, कैसी हो रुबिया??? थोडी देर की खामोशी के बाद... रुबिया ने कंपकंपाती आवाज मे कहा - मनोहर अब मै रुबिया नही हुं, मैने अपना धर्म बदल लिया है, और अब मै हिन्दु हुं, और मेरा नाम रुपा है, बोल वो बहुत तेज तेज हॅसने लगी जैसे की वो धर्म के ठेकेदारों के मुहॅ पर तमाचा मार रही हो, और कह रही हो, देखो मैने अपने प्यार को आखिर पा ही लिया. पर मनोहर के ऑसु तो थमने के नाम ही नहीं ले रहे थे, वो तो बस अपनी ड्बडबायी ऑखों से अपनी रुबिया नही रुपा को देखता जा रहा था, और अचानक पीछे मुड जाने लगा. रुबिया नही रुपा पीछे से उसे अवाज देती रही पर मनोहर अपने कदमों की रफ्तार को और तेज करता हुआ, सोचता जा रहा था, की वो किस मुहॅ से अपनी रुबिया नही रुपा को बताये की, मजहब तो उसने भी अपना बदल लिया है और अब वो मुस्लमान है और उसका नाम मौहम्म्द मुस्स्तफा है. और मजहब की दीवार आज भी जस कि तस बरकरार है, बस दिशायें बदल गई हैं.
20 comments:
दिल को छू गई....
मैने आपकी कहानी का प्रिन्ट ले लिया है शाम तक धासू प्रक्रिया करूँगा। :)
काश ........प्यार के बीच मजहब दीवार ना बनें।मार्मिक....
वैसे मौलिक कहानी है, तुलना करना अच्छी बात नहीं होगी, पर फ़िर भी, एक बार तो "ओ हैनरी" की कहानी ऐ गिफ्ट ऑफ़ मैगी स्मरण हो आई. किसी को जताना नही, बस प्यार के लिए सब कुछ न्योछावर कर देना ही जब प्यार का मकसद बन जाए तो फ़िर कुछ और मायने नहीं रखता. बहुत ही कम शब्दों में कही गई एक सार्थक प्रेम कहानी.
मजहब.........
प्यार की इससे कभी नहीं बनी... इतिहास में भी ऐसी सैंकड़ो कहानियाँ है...प्यार और मज़हब के बीच लड़ाई वर्षों से जारी है और शायद लम्बे समय तक जारी रहेगी... अब तक तो जीत हमेशा ही मज़हब की ही हुई है... आगे देखते हैं...
अच्छी प्रस्तुति, बधाई स्वीकार करें!
hey ashu da!!! nice story bt waiting fr the end of the story...as it is still incomplete...vo aisa h na k if it is nt a happy ending then it's nt an end....movie or in this case story abhi baaki h mere dost..... :)
by the way really a very nice story...
बहुत अच्छे. बधाई.
haan bhai ji story achi hai ...bt yaar is baar fir tumne story adhuri chod di ...or sun bhai pahley wali story ko tu complete kar de...
apki kahani main dard bhi hai aur pyaar bhi.....is dard aur pyar ki kahani mere dil ko chu gai.....aise hi likhte rahiye....meri shubhkamnayen aapke saath hain
Humko bahut achchi lagi aapki kahani parantu yahan ek baat kehna chahengey....
Kya hi achcha hota agar aap ise yun likhtey ki yeh zara hutke lagti. Kehne ka arth hai ki sab bilkul waisa hai jaisa hona chahiye , bus aankh mein aaso zara jaldi aatey to .....
Saransh yah hai ki aap bahut unnati karengey, bhasha ka bhi sahi prayog kiya gaya hai.Jeetey rahiiye .
अभी अभी पूरी तसल्ली से आपकी कविता को पढ़ा पाया हूँ। पूरी कविता पढ़ा साथ ही उसके एहसाह को भी छूने की कोशिस किया। सच कहूँ तो मै कल हिन्दू विधि पढ़ रहा था उसमें यही बात सामने आ ही थी कि कौन कैसे कैसे हिन्दु कहलायेगा। आज अपकी यह कहानी न सिर्फ प्रश्न खड़ा करती है अपितु एक उत्तर भी लेकर आती है। आपकी कहानी में थोड़ा अधूरा पन लग रहा था किन्तु बाद एहसास हुआ कि यही अधूरा पन ही कहानी की पूर्ति करती है। अभी भी मेरे मन में प्रश्न उठ रहा है वह हिन्दु और मुसलमान कैसे बने ? और मेरे सामने उसके कई उत्तर भी है। मै इस बात से सहमत हूँ कि आप की भाषा और प्रवाह ओजस्वी है। आपकी यह कहानी बधाई और प्रशंसनीय है। वैसे आपसे इसका उत्तर जरूर जानना चाहूँगा।
आशुतोष जी आपकी कहानी अच्छी लगी, शुरू से अन्त तक आपने बाधे रखा।
सुन्दर बुनावट.
bahut khoob............
सुन्दर!
अच्छी प्रस्तुती
अच्छी कहानी है
aapki kahani film banane layak hai. mein in dinon films direction ke liye try kar raha hoon. jab kabhi safalta mil jaigi mein aapki is kahani par film zaroor banaunga. aap achcha likhte hein, prayas jari rakhiye. meri dua aapke saath hai...
यह बहुत अच्छी कहानी है इसने मेरे दिल को छू लिया वास्तव में धर्म के ठेकेदार प्रेम में आड़े आते हैं
यह बहुत अच्छी कहानी है इसने मेरे दिल को छू लिया वास्तव में धर्म के ठेकेदार प्रेम में आड़े आते हैं
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