सजधज के जैसे ही नववर्ष मनाने हम घर से निकले,
राह मे अचानक एक बच्चे को देख कदम संभल गये,
नहीं नही वो बच्चा मामूली नही था,
वह कूडों के ढेर मे, अपना भविष्य खोज रहा था,
बचपने मे ही, बडों जैसी सिलवटे उसके माथे पर दिख रहा था.
मेरे दिल मे अचानक ख्याल आया, हर तरफ नये वर्ष की धूम है,
फिर ये छोटा सा बच्चा, क्यों इतना खामोश और गुम है??
और मैने डरते डरते उससे ये सवाल पूछ डाला,
उसने बडी मासूमियत से मुझको देखा, और बोला,
साहब हजारों की सूट पहनने के बाद, आपको खामोशी दिखती है,
पर वो भूख नही दिखता,
जो मै इन कचडों से भरने की कोशिश कर रहा हुँ,
और आप किस नये साल की बात कर रहे हैं,
हमारे लिये तो हर दिन एक भूख ले कर आता है,
और जिस दिन, बगैर गाली और मार के,
भर पेट खाना मिल जाता है,
हमारा तो नया साल उसी दिन आ जाता है.
हॉ साहब मुझे पता है, आज करोडो रुपये,
कबाब,शावाब और पार्टी के नाम पर उडाये जायेगें,
और जो नेता,अभिनेता,समाजसेवक नये वर्ष मे,
कहीं नये भारत की बात कर रहे होगें,
आज अपनी जूठन इसी कचडे मे फेंक कर जायेगें,
और कल हम भी उसी जुठन से अपने पेट को भर,
शायद नये साल का जश्न मनायेगें.
और आप जो खुद को युवा पीढी बोलते हो,
मेरी बात सुन दो मिनट के लिये शायद सोच मे पड जाओगे,
और फिर कुछ नही बदलने वाला है,ये बोल,आप भी सब कुछ भूल जाओगे.
नववर्ष आपके लिये मंगलमय हो...
2 comments:
नववर्ष में आपकी उक्त कविता सीख देती है,और वास्तविक सच्चई का वर्णन करती है
ईसाइओ के नववर्ष कि आप सब को हार्दिक सुभकामना
63 ईसाइ देशा में मनाया जाने वाल ये नववर्ष अब हिन्दुस्तान में भी मनाया जाने लगा है और हम हिन्दु नववर्ष को भुल हि गये हैं अपने आपको सबसे पुरानी सभ्यता का मानने बाले हिन्दुस्तानीयों को शायद हि अपना नववर्ष जानते हो 2.1 अरब जनसंख्या बाले ईसाइ का 63 देश और 1.4 अरब जनसंख्या वाले हिन्दुओ का ना अपना कोई देश और ना नववर्ष
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