13 December 2014

ये कागजी शेरये कागजी शेर

प्रत्येक वर्ष 6 दिसम्बर को सेकुलर समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं बाबरी की दुहाई देते हुए लम्बे-लम्बे आलेखप्रकाशित कर हिन्दुओं को नसीहत देने का प्रयास करते हैं। बंगलादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मलेशियामें हिन्दुओं पर हो रहे घोर अत्याचारों पर इनकी कलम क्यों नहीं चलती? क्या इन सेकुलरों को पता नहीं है किपाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं की संख्या निरन्तर घट रही है? इसके पीछे मुख्य कारण है जिहादीअत्याचार। पूरी दुनिया जानती है कि इन देशों में अल्पसंख्यकों का क्या हाल है। कट्टरपंथी हिन्दुओं कोमतान्तरण के लिए प्रताड़ित करते हैं। प्रताड़ना सहकर भी जो लोग मतान्तरण नहीं करते उनका जीना दूभर कररखा है इन कट्टरपंथियों ने। बंगलादेश और पाकिस्तान में सैकड़ों मन्दिरों को 1947 और उसके बाद खण्डित और अपवित्र किया गया है। पाकिस्तान, बंगलादेश और अब मलेशिया में हिन्दुओं की स्थिति बद से बदतर हो रही है, लेकिन इनके विरुध्द लिखने वाली कितनी कलमें हैं? तस्लीमा नसरीन ने इन मुद्दों पर कलम चलायी तो उनकी कलम ही तोड़ दी गयी। ये सेकुलर उस समय बेजुबान क्यों हो जाते हैं जब कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर से भगाया जाता है? क्यों नहीं चलती इनकी कलम उन आतंकवादियों के खिलाफ जो जिहाद के नाम पर हिन्दुओं के रक्त सेखूनी होली खेलते हैं? जब भी हिन्दू अंगड़ाई लेता है तो ये चिल्लाने लगते हैं कि हिन्दू जग रहा है। आखिर हिन्दुओंके जगने पर इतना बवाल क्यों? कागजों पर हिन्दुओं के शौर्य को कलंकित करने वाले ये कागजी शेर कठमुल्लाओंकी जरा सी फूंक के सामने हवा में उड़ जाते हैं, क्योंकि इन्हें पता है कि इनके खिलाफ लिखा तो अगले ही दिनफतवा जारी कर दिया जाएगा। हिन्दू तो कोई फतवा निकालने वाले हैं नहीं, तो फिर हिन्दुओं के खिलाफ ही जमकर लिखा जाए। इससे कुछ और नहीं तो सेकुलर सरकार का चेहरा खिल उठेगा और फिर मिलेंगे सम्मान पत्रऔर ढेरों पुरस्कार। ऐसी दूषित सोच ने ही भारत के सम्मान को हमेशा बट्टा लगाया है।

लेखक - श्री कुमुद कुमार

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