बात उन दिनों की है जब अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वार्षिकोत्सव होने वाल था, और गांधी जी उस उत्सव का सभापति बनना था। सभा नेत्री के रूप में महादेवी जी ने आसन ग्रहण किया था। उस दौर में पहली बार मधुशाला इन्दौर की जनता के सामने आने वाली थी। बहुत से लोग मधुशाला का अर्थ नही समझते थे। किसी ने पूछा कि सेठजी मधुशाला शूं छे? सेठ जी ने उत्तर दिया मधुशाला शोई अपणी कांग्रेस, हिन्दू शभा मन्दिर, मुस्लिम लीग मस्जित।
किसी को मधुशाला से बैर था और उसने गांधी जी से शिकायत कर दी कि आप जिस सम्मेलन के सभापति है वहॉं मदिरा का गुणगान किया जाना है। दूसरे दिन अंतरंग सभा की बैठक थी, रात के 12 बजे थे। गांधी जी ने मुझे 11.55 पर मुझे सभा हाल के बगल वाले कमरे में बच्चन जी को मिलने के लिये बुलाया। बच्चन जी अपने गांधी मिलन की बात को बताते है- मुझे गांधी जी से मिलने की खुशी थी डर भी था, अगर कह दें कि मधुशाला न पढ़ा करूँया नष्ट कर दूँ तो उनकी आज्ञा को टलाना कैसे संभव होगा? गांधी जी ने शिकायत की चर्चा की और कुछ पद सुनने चाहे। कुछ मैने भी सर्तकता बतरती चुन चुन कर ऐसी सुबाइयां सुनाई जिनके संकेतार्थ शायद उन्हें ग्राह्य होते। बच्चन जी कुछ पक्तिंतयों को गाते है और कुछ देर बाद गांधी जी का यह उत्तर पा कर कि इसमें तो मदिरा का गुणगान नही है, गांधी जी के मुँह से यह शब्द सुनकर बच्चन जी की खुशी की सीमा ही न रही। यह गांधी जी के साथ बच्चन जी की पहली और अन्तिम भेंट थी। और इसका पूरा श्रेय मधुशाला और उसके विरोधियों को जाता है।
2 comments:
आभार इसे यहां उपलब्ध करवाने के लिए, लेकिन बेहतर होगा यदि आप मूल स्त्रोत का उल्लेख करते चलें!!
आशा है अन्यथा नही लेंगे!!
संजीत भाई साहब नमस्कार,
जहॉं तक मूल स्तोत की बात है तो यह रचनाऐं हरिवंश राय बच्चन जी व किसी एक रचना कार की रचना से प्रेरित होकर मूलत: नही छापा गया है।
बल्कि सम्पूर्ण रचनाओं का अध्ययन कर हमने अपनी भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
जहॉं तक पुस्तको के नामोंलेख की बात है तो बच्चन की आत्मकथा जिसके रचनाकार अजित कुमार है और अनेक लेखों के द्वारा है।
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