आखि़र कौन हुँ मै ????
इस छल कपट और फरेबी दुनिया मे,
जहाँ हर वक्त, बेबसी मौत से हारती है,
कौन है अपना कौन पराया?
जिन्दगी हर वक्त इस सवाल का हल ढूढ़ती नजर आती है.
रिश्ते जो अपनी आखिरी साँसों में कहीं उलझा,
कहानियों में अपने होने का एहसास करती है,
कौन हिन्दु?
कौन मुस्लिम?
कौन सिख?
कौन ईसाई?
मानवता खुद का यूँ अब अपना परिचय करवाती है,
जिन्दगी भर जिस बेटे कि खातिर अपनी खुशियो से समझौता किया,
आज उस बेटे के पास, चिता मे आग देने के लिये, वक्त कि कमी पड़ जाती है.
हीर राझा, सोनी महिवाल, सी मोहब्बत,
चंद रुपयो मे, एक रात में सज जाती है.
हाँ कौन हूँ मै ?
जो इस दुनिया मे, मै रिश्तो की बात करता हूँ,
कोई मेरा भी है इस दुनिया मे,उसको ढुढने का असंभव प्रयास करता हूँ,
मोहब्बत की दुनिया सजेगी कभी इस जहाँ मे,ऐसे सपने आँखो मे लिये चलता हूँ,
एक ऐसा दोस्त जो सिर्फ मेरा है,ऐसे दोस्त की बात करता हूँ मै,
हाँ कौन हु मै?
जो मौहब्ब्त को ईमान और चाहत को धर्म मानता है,
वो उसूल जो, आज किस्से और कहानियों के हिस्से है,
उन उसूलों को आज भी आत्मसात करता हूँ.
हा, शायद मेरी कोई हस्ती नही है इस दुनिया मे,
क्यो कि मै सच को सच बोलता हूँ,
और शायद इसी लिये,समाज के बनाये, नियमो के कठघरे कि पीछे खडे़,
खुद से ये सवाल करता हूँ,
आखिर कौन हूँ मै, आखिर कौन हूँ मै.. ????
6 comments:
बहुत से सवाल उठाती..एक बढिया रचना है।बधाई।
अद्भुत रचना...
जीवन की सच्चाई और व्यक्तित्व की कठिनाई, दोनों पहलुओं से साक्षात्कार कराती ये कविता, सचमुच में अपने आप में पूरा जीवन-दर्शन है. बहुत गहरी सोच है आपकी, मासूम जी.
आपकी कविताओं के भाव निश्चित रूप से व्यथित कर देते है और सोचने पर विवश करते है।
वाकई आपको पढ़ने में मजा आ जाता है।
उत्साहवर्धन करने के लिये सभी को बहुत बहुत धन्यवाद.... पर ये सवाल अब तक अधुरा है, क्योंकी ये सवाल हर किसी के जेहन मे उठता है, और इसका जवाब हमेशा ही अधुरा रह जाता है. हम सब इस समाज के अहम हिस्से है, और हर रोज अपनी जिन्दगी मे ऐसे हादसों से दो चार होते है, और मुक दर्शक बने देखते है... फिर भी खुद से ये सवाल पुछते है, आखिर कौन हुं मै. कहीं ऐसा तो नहीं हम सब भी इन्ही हादसों के पात्र है???? प्रतिक्रियाऔं का इन्तजार रहेगा...
हिन्दी लेखनी मे त्रुति के लिये क्षमाप्राथी...
100% सच
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