धातु: कमण्डलुजलं तदरूक्रमस्य,
पादावनेजनपवित्रतया नरेन्द्र ।
स्वर्धन्यभून्नभसि सा पतती निमार्ष्टि,
लोकत्रयं भगवतो विशदेव कीर्ति: ।।
( श्रीमद्भा0 8।4।21)
(श्रीशुकदेवजी ने परीक्षित् से कहा) राजन् ! वह ब्रह्माजी के कमण्डलुका जल, त्रिविक्रम (वामन) भगवान् के चरणों को धोने से पवित्रतम होकर गंगा रूप में परिणत हो गया। वे ही (भगवती) गंगा भगवान् की धवल कीर्ति के समान आकाश से (भगीरथी द्वारा) पृथ्वी पर आकर अब तक तीनों लोकों को पवित्र कर रही है।
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जय गंगा मैइया
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