09 January 2010

कागज के पुराने टुकड़ो से - औरो को सताने वाले खुद चैन नहीं पाते हैं...

आज पुराने चंद कागज मिले उसमे मेरी खुद की लिखी रचना मिली . यह रचना मेरे द्वारा उस समय लिखी गई थी जब पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद चरम सीमा पर था. आपकी सेवा में आज प्रस्तुत कर रहा हूँ.


औरो को सताने वाले खुद चैन नहीं पाते हैं

औरो को जलाने वाले भी खुद जला करते हैं.

गरीबो के घरौदे जलाकर तुम्हे क्या मिलता है

गरीब की आह हर मोड़ पे तुझे बरबाद कर देगी

गुरुर है तो खुद अपना आशियाँ जलाकर देखो.

ऐ मानवता के दरिन्दे महेंद्र तुझे सलाह देता है.

शांति मिलेगी गरीब की कुटिया सजाकर देखो.

तुम औरो को बेवजह जलाकर खुद न जलो

मानवता के पुजारी बन चैन की वंशी बजाओ.


कागज के पुराने टुकड़ो से -
रचनाकार - महेंद्र मिश्र

7 comments:

निर्मला कपिला said...

ऐ मानवता के दरिन्दे महेंद्र तुझे सलाह देता है.

शांति मिलेगी गरीब की कुटिया सजाकर देखो.

तुम औरो को बेवजह जलाकर खुद न जलो

मानवता के पुजारी बन चैन की वंशी बजाओ.
आपके पुराने टुकडों की अहमियत अभी भी बरकरार है सुन्दर स्न्देश देती कविता बधाई

दिगम्बर नासवा said...

आपका लिखा आज भी उतना ही सार्थक और सत्य है जितना पहले था ........ बहुत अच्छा लिखा है ........

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब , बधाई स्वीकार करें इस लाजवाब रचना के लिए ।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना, शिक्षा प्रद

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत ही अच्‍छी कविता, सही मर्म

BrijmohanShrivastava said...

महेन्द्र जी बहुत अच्छी कविता लिखी थी आपने -बहुत अच्छे विचार है कविता मे आपके ।मानवताबादी द्रष्टिकोण वाली एक कविता है ये ।
एक निवेदन करूं क्रिपया बुरा मत मानियेगा -प्रस्तावना मे ""मेरी खुद की लिखी ""वाक्य पर पुन:विचार करें

MEDIA GURU said...

sundar ati sundar..........