23 February 2010

कोई मुझे बतायेगा…..वो कौन थी…….

जून जुलाई की गर्म मैं करीब चार बजे दुपहर बाद मैं अपने क्लिनिक पर बैठा बार बार  पहले से ही गीली हो चुकी रुमाल से अपना चेहरा पोंछता  कैन फोलैट के पिलर्स आफ अर्थ मैं माथा गङाये हुए बैठा मरीजों का इंतजार कर रहा था….एक नये डाक्टर के लिए इससे ज्यादा भारी समय कोई नहीं होता….खैर ….

मैं आई कम इन सर…..एक भद्र सुरीली आवाज ने मेरा ध्यान तोङा….मैं सजग होकर बैठ गया ..हां अंदर आईये…. शेखावाटी मैं इस तरह की अंदर आने की रिक्वैस्ट कम ही सुनने को मिलती हैं…बल्कि धङाक से गैट खोलकर अंदर आने के बाद ही लोग कहते हैं….कि साब कै होरियो है……

हां …..आईये….

नमस्ते सर ….एक अधेङ महिला ने अंदर प्रवेश किया ….पीछे पीछे जींस टीशर्ट मैं एक सुंदर सी कन्या ….औऱ साथ मैं एक बङी सी बिंदी लगाये एक और संभ्रांत सी दिखने वाली महिला ….शायद लङकी की मां ….

मैने मरीज को स्टूल पर बैठने को इशारा किया….(तीनों मैं जो भी हो..)लङकी आगे बढी और उस पर बैठ गई…..यूं लगा जैसे किसी ने जबर्दस्ती उसे बिठाया हो…….मुझे कुछ नहीं हुआ है…जैसे उसने मुंह फुला रखा हो…..लङकी बोली

क्या….मैने पूछा कुछ तो होगा ….खुजली ..पिंपल्स …..मैं उसके चेहरे पर खोजने लगा…

नहीं सर ऐसी बात नहीं हे….ये मेरी भांजी है…कुछ परेशान है …..आप इसे समझाईये…

पर हुआ क्या हैं….ये मानसिक रूप से कुछ परेशान हैं…..मैं असमंजस से कुछ बोलना चाहता था…..मैं तो स्किन स्पेशियलिस्ट हूं ……पर उन्होंने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया…..वो बताने लगी …..बीच बीच मैं कुछ लङकी से भी सवाल करता…….

लङकी का नाम अमृता था……..अच्छे तीखे नाक नक्श….शरीर भी भरा पूरा…..टाईट जींस और टी शर्ट मैं कुछ ज्यादा ही आकरषक लग रही थी पर शक्ल उसने ऐसी बना रखी थी जैसे अभी अभी रो कर आ रही हो…..  उसका  एम बी ए कर रही थी …..अच्छी होशियार….. मैने नंबर वगैरा पूछे ….अच्छे ग्रैड मैं पास होती रही थी…..पर कुछ समय से उसने पढाई मैं मन लगाना कम कर दिया….उदास रहने लगा थी….घर वाले रिश्ते की बात करते तो भी कोई बहाना बनाकर टाल जाती …..बढिया से बढिया रिश्तों के लिए मना कर चुकी थी …….जैसे की एक वर्तमान मंत्री के लङके को वो रिजैक्ट कर चुकी थी…..

मुझे ये जिंदगी नीरस लगने लगी हैं….मैं कुछ वो करना चाहती हूं…..पर समझ नहीं पा रही हूं………………………………..वो बोलती रही मैं सुनता रहा..कुल मिलाकर मुझे ये समझ आया कि लङकी या तो जबर्दस्त डिप्रेशन मैं है या उसका किसी और के साथ चक्कर है…सो वो घर वालों को चक्कर दे रही है……..पर फिर भी ये मेरा तो कैस नहीं था…..

बहन जी आप को किसी साईकियाट्रिस्ट को या साईकोलोलिजस्ट को दिखाना चाहिये….ये मेरा काम नहीं है…..मैने पीछा छुङाने की गरज से कहा.

मैं जानती हूं….लङकी की मौसी बोली…पर मैं आप के पास पहले भी आ चुकी हूं …..मुझे ये पता है कि आप इसे बहुत अच्छी तरह समझ पाओगे और बहुत अच्छी तरह इसे समझा पाओगे…..आप ही कुछ कीजियें…

जीवन आसान नहीं …पर उसे पर संपूर्ण रूप मैं जीने मैं ही जीवन का आनंद है…..आप प्रोफेशनल और पारिवारिक दोनों को संतुलित करे तो ही जीवन की संपूर्णता को हम छू पाते हैं……..etc…etc……………

खैर …..मैं भी चाहता था कि सब कुछ ठीक हो जाये….

मैने उसे पुस्तक दी….. cognitive therapy शायद by robert black…मैने किसी मित्र के कहने पर क्रोस वर्ड नामक बुक स्टोर से खरीदी थी…… मुझे वो पुस्तक ऐसे मरीजों के लिए बहुत उपयोगी लगी थी….उसमें हमारे मन मस्तिष्क मैं चलने वाले अनचाहे विचारों को पहचान कर उन्हें दूर करने का बहु ही कारगर और सरल तरीका समझाया हुआ था….

आप इसे पढें ….ये बहुत हैल्प करने वाली है….      निश्चित रूप से आप अच्छा महसूस करेंगी…….एक महिने बाद वापिस आयें….

वो दिन गया…. बात गई …..…..दिन…..हफ्ते …..महिने बीत गये…..मैं भी भूल गया……………………………..

मेरी साढे छै सो मैं खरीदी हुई पुस्तक ….मैं भी करीब करीब भूल ही गया…….

करीब छ- महिने बाद सर्दी की एक नर्म दुपहर को वही मौसी मुझे दिखाने आई…..अचानक मुझे याद आई मेरी …..साढे छः सौ रुपये की….राबर्ट ब्लैक…..कोग्निटिव…..बहन जी आप पहले भी यहां आई हैं…….

हां आई थी….डाक्टर….मेरी भांजी के साथ…..

क्या हुआ फिर उसका…..वो रो पङी जोर से …..जोर से आंसु निकल आये उसके …….आपके पास आने के कुछ दिन बाद ही उसने आत्म हत्या कर ली……मै चुप …..मैने भी दुःख प्रकट किया…मुझे अपने आप पर शर्म आ रही थी….कहां उनकी जवान भांजी की मरने की बात चली और मैं अपने साढे छः सो रूपये को रो रहा था….        ……………अब मुझे भूल जाना था…………………………किताब को …………साढे…छः……………………यूं ही किसी को नहीं मर जाना चाहिये जीवन बङा अमूल्य होता है……सचमुच मेरा दिल भी थोङा भारी हो चला था…………………………………………………………………………….

उस बात को बीते करीब करीब चार साल गुजर चुके थे…….

तुम्हारे मरीज तुम्हे बहुत याद करते हैं…….सरिता…….मेरी धर्मपत्नी ने बङी शरारत से देखते हुए कहा जो

अभी अभी जयपुर से बस मैं लौटी थी और मेरे साथ चाय….. पी रहीं थी……क्यों तुम्हें कोई मिला था……मेरे पास की सीट पर एक लङकी बैठी थी…..बहुत याद कर रही थी तुम्हें….कह रही थी तुमने उसकी जिंदगी बदल दी……

 

कैसे बदली मैंने उसकी जिंदगी …..जरा मैं भी तो सुनुं….मैने हंसते हुए कहा…….

कह रही थी ….वो बहुत परेशान थी…..बता रही थी कि एक बार तो सने  आतमहत्या की भी सोची थी …पर आपसे मिलिने के बाद जैसे उसाका जिंदगी के प्रति नजरिया ही बदलिया … मैं मन ही मन मुस्कुराया चलो कोई इस रूप मैं भी याद करता है हमें…….

क्या नाम था उसका….

.अमृता……..

  अब मेरी चाय गले मैं अटकने लगी थी….क् क् क्या…..उसकी बांयी आंख हल्की सी छोटी है…….हां वही

पर वो तो मर चुकी है…….

सरिता मेरी तरफ बङी अजीब सी नजरों से देखते हुए बोली….तुम शायद कंफ्यूज हो रहे हो कह रही थी कोई किताब दी थी आपने उसे कोई cognitive therapy….

हां वही तो………मेरे शरीर मैं झुरझुरी सी दौङ गई…….हां मैने ही उसे किताब दी थी ….और उसने कुछ दिनों बाद ही आत्म हत्या कर ली थी….मेरी तरफ देखती हुई सरिता की शक्ल देखने लायक थी…..उसकी क्या मेरी भी……

क्या आप बतायेंगे ….वो कौन थी….

3 comments:

Dr.Rakesh said...

जैसे आपको नहीं पता कि वो कौन थी वैसे हमें भी नहीं पता । पहले जरा आत्महत्या वाली बात तो कन्फ्र्म कर लें । फिर किसी तांत्रिक से मिलें...

श्रद्धा जैन said...

arry aapki kitaab hadapne ke liye
mousi ne jhoot bola hoga
baki kuch sahi nahi hai

राज भाटिय़ा said...

जिस ने आत्महत्या की, पहले यह पता हो कि उस ने केसे आत्महत्या की, शायद उस की जगह कोई ओर ही मर गया हो ओर पहचान गलत हो गई हो, ओर लडकी अमर्ता का प्यार का चककर किसी लडके से हो ओर जब देखा की घर वाले रो धो कर हार गये ओर उसे मरा समझ गये तो लडकी ने भी बात को ढप रहने दी, यह बस वाली वोही लडकी थी, कोई भुतनी नही