17 May 2015

मैं


जब भी अच्छा काम हो श्रेय ले जाते हैं वे
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं

मैं यों तो छोटा सा है शब्द
मगर फैलाता है बडा दुख- दर्द
मौसम चाहे सर्द हो चाहे हो गर्म
मै ही है सबसे बडा मर्म

" मैं" " मैं" करते लुट गए कई लाख
मिट्टी में मिलकर होना है सबको खाख

मिट्टी में मिलकर भी नही मिटता है मैं
क्योंकि उनके सिर चढा है मैं

कई बुत व सडकें बनती हैं उनके नाम पर ,
कई बातें गढ़ी जाती हैं उनके काम पर,
समाज में ऊँचा रूतबा होता है उनका ,
लूटते हैं जिसे वे   वह होती है जनता,
गुपचुप करते हैं धन्धे चोरी के ,
भाषणों में बनते हैं निन्दक चोरी के ,

कईयों का खाख में मिलाकर ,
अपने रस्ते से मिटाकर ,
जब खुद जाते हैं खाख में ,
तब भी नही मिटता है मैं
क्योंकि उनके सिर चढा है मै, और
हर अच्छे काम का श्रेय ले गये हैं वे।
कवि - श्री तरूण जोशी ''नारद''
                                              

1 comment:

Anonymous said...

श्री तरूण जोशी ''नारद''
bhaut badhia kavita hi, jo vastavikta ka bodh karati hi
shubh kamanai