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10 May 2008

नही मिलेगा उड़न खटोला, बंगले की बात मत करना

आज खबर मिली की भारत के माननीय मुख्‍य न्‍यायधीश को महामहीम राष्‍ट्रपति जी की तरह विमान नही मिलेगा। क्यों याचिका खारिज कर दी गई, अच्‍छा ही हुआ नही तो कल को राष्‍ट्रपति भवन जैसे भवन की भी मॉंग होने लगती तो दूसरा राष्‍ट्रपति भवन कहॉं से लाया जाता ? :)

एक बात तो स्‍पष्‍ट है कि इस तरह की फिजूल की याचिकाओं पर रोक लगनी चाहिये नही तो कोई न्‍यायधीश तो कोई किसी के नाम पर याचिका लेकर चला आता है। जब भारतीय संसद खुद इतनी मेहबान रहती है तो भारतीयों को किसी प्रकार की चिन्‍ता नही करनी चाहिये। सरकार को जितनी चिंता आम आदमी की नही होती है उतनी अधिक अधिकारियों की होती है, और समय समय पर वह नियमों को फेरबदल कर सुविधा लेते देते रहते है।

निश्चित रूप से यह एक अच्‍छा फैसला है।

फिर मिलना होगा ..... 

03 April 2008

पुत्र लालसा का मिथक तोड़ते 105 परिवार

बेटियों के लिए नकारात्मक नज़रिया रखने वालों के लिए जबलपुर जिले के १०५ परिवारों से सीख लेना चाहिए जिनने केवल २ बेटियों के बाद परिवार कल्याण को अपना लिया ये जानते हुए
कि इसके बाद उनको पुत्र प्राप्ति न हों सकेगी ,


["बाल विवाह मत करना माँ"अपनी माँ को रक्षा सूत्र बांधती एक बेटी ]
ये खुलासा तब हुआ जब मैं अपने सहयोगी स्टाफ के साथ म० प्र० सरकार की लाडली लक्ष्मी योजना की उपलब्धि के बाद आंकडों का विश्लेषण कर रहा था । 500 लाडली लक्ष्मीयों में से 89 वो हैं जिनकी बड़ी बहन ही है और भाई अब नहीं आ सकेगा , 6 बालिकाओं के तो न तो बहन होगी न ही भाई , यानी 21 प्रतिशत परिवारों ने पुत्र की लालसा के मिथक तोड़ दिए, क्यों न सकारात्मक सोच को उभार के हम कुरीतियों से निज़ात पाएं ....!!
अब शायद म० प्र० सरकार के इस प्रयास की सराहना सभी को करनी ही होगी ।

01 March 2008

पिछली पोस्‍ट एग्रीगेटरों के शिकंजे से बच निकली

इस ब्‍लाग की पिछली पोस्‍ट एग्रीगेटरों के शिकंजे से बच निकली, ऐसा कैसे हुआ मुझे पता नही चल सका। यह देखना है कि यह किस कारण हुआ मुझे पता नही चल पाया। यह देखने के लिये यह पोस्‍ट कर रहा हूँ।

पिछली पोस्‍ट का लिंक निम्‍न है - भारत विकासशील देश है या नहीं?

11 January 2008

महाशक्ति समूह मनाऐगा : विवेकानंद जयंती

महाशक्ति समूह ने विवेकानंद जंयती मनाने का फैसला किया है, दिनाँक 12/01/2008 को पूरे दिन लेख प्रकाशित करेगा। जिसमें स्वामी विवेकानंद जी लेख, फोटों, उक्तियाँ, भाषण तथा उनके सम्बन्धित अन्य सामग्रियाँ प्रकाशित की जायेगी।

29 November 2007

जिन्दगी/मौत : एक तलाश???


मेरे जेहन मे अचानक ख्याल आया की, क्यों ना मौत की परिभाषा ढुढीं जाये। क्या सांसो के रुकने को ही मौत का नाम दिया जा सकता है या मौत की कोई और भी परिभाषा हो सकती है । पर सर्वप्रथम ये जानना जरुरी है की जिन्दगी क्या है? क्योकीं जिन्दगी और मौत एक सिक्के के दो पहलु है, और एक को जाने बिना दुसरे को जानना नामुमकिन है ।

जिन्दगी चलने का नाम है, जो कभी नही रुकती, किसी के लिये भी, चाहे शाहंशाह हो या फकीर। जिन्दगी हॅसने, खेलने, और मुस्कुराने का नाम है। कहना कितना आसान है, पर हकीकत से कोसों दुर।

जिन्दगी की शुरुआत होती है, जब बच्चा माँ के गर्भ मे आता है,हर तरफ खुशियां। प्रसवपीडा के असहनीय दर्द को सहते हुये, जब माता अपने पुत्र/पुत्री को निहारती है, तो उसे जैसे एह्सास होता है, जैसे ये दर्द तो जिन्दगी की उन खुशियों मे से है, जिसका इन्तजार वो वर्षों से कर रही हो। और शुरुआत होती है, एक नयी जिन्दगी की, सिर्फ पुत्र की नहीं वरन माता की भी। दुसरा पहलु आधुनिक युग २१वीं सदी...जहाँ माता मातृत्व के सुख से दुर होने की कोशिश कर रहीं, सिर्फ अपनी काया को बचाये रखने के लिये । अपनी ना खत्म होने वाली महत्वाकांक्षी आकाक्षओं की पुर्ति के लिये । क्या इसे भी जिन्दगी का नाम दिया जा सकता है, शायद नही, ये भी तो मौत का ही एक रुप है, जहां एक तरफ माँ की मौत हो रही है तो दुसरी तरफ उस बालक की जो इस संसार मे अपने अस्तिव को तलाशने लिये उत्सुक है।

श्रवण कुमार, जिसने अपने अँधे माता पिता को अपने काँधे पर बैठा कर तीर्थयात्रा का प्रयोजन किया और पुत्रधर्म को निभाते निभाते स्वर्गवासी हो गया । दुसरी तरफ आज का युवा, आखों मे हजारों सपने, बस वक्त नही है तो अपने मातापिता के लिये । लेकिन लेकिन लेकिन ये कहना गलत होगा की आज का युवा पुत्रधर्म नही निभाता है । पुत्रधर्म आज भी निभाया जा रहा है, वृद्धाआश्रम मे कुछ रुपयों को दे कर । फिर से एक ही चरित्र, “पुत्र “ जो एक तरफ मौत को गले लगाता है, और रिश्तों को जी जाता है, और दुसरी तरफ, दूसरा पुत्र हंस रहा है, खेल रहा है, गा रहा है, बस कुछ रुपये वृद्धाआश्रम मे दे कर। पर शायद ये भी जिन्दगी है, जो एक पुत्र रिश्तों के मौत पर जीता है।

सांसो के शुरुआत से लेकर सांसो के बंद होने तक, एक इन्सान ना जाने कितनी बार जन्म लेता है,और कितनी बार मरता है, फिर शोक हमेशा सांसो के बंद होने के बाद ही क्यों मनाया जाता है? अगर सांसो का बंद होना ही मृत्यु है, तो आज हम महात्मा गान्धी, भगत सिंह्, सुभाषचन्द्र बोस जैसे अनगिनत विभुतियों के नाम क्यों याद रखते है? क्यों हर बार अपनी बातों मे इनका जिक्र ले आते है? क्योकि शायद ये विभुतियां आज भी जिन्दा हैं ।मैने सुन रखा है, "जिन्दगी चंद सांसो की गुलाम है,जब तक सांसे है तब तक जिन्दगी है", पर शायद ये अधुरा सच है, क्योंकि पुरे सच मे "मौत चंद सांसो की गुलाम है, जो इन्तजार करती है की कब ये सांसे रुके और मै कब अपना दामन फैलाऊं। और जिन्दगी उन कर्मों का नाम है, जो कभी खत्म नही होती, इतिहास के पन्नों मे कैद हो कर, सदा सदा के लिये जीवित रहती है"।

मौत तो बेवफा है,फकत चंद सांसो के ले जायेगी,
जिन्दगी तो महबुबा है, अपने कर्मों के संग,
इतिहास के पन्नों मे मुझको लिखवा कर,
सदा के लिये जीवित कर जायेगी

दु:खद समाचार

ईश्वर भी कितनी निष्ठुर हो सकता है, मुझे इसका अनुमान न था। हमारे समूह श्री आशुतोष “मासूम” जी के 21 वर्षीय छोटे भाई दीपक का दो दिनों पूर्व देहान्‍त हो गया। परिवार को जो छति हुई उसी क्षतिपूर्ति किसी भी प्रकार नही की जा सकती है। दीपक के जाने शून्‍य स्‍थापित हुआ है वह भरा नही जा सकता है। विपत्ति की इस घड़ी में ईश्‍वर से प्रार्थना है कि शोक संतप्‍त परिवार को बल प्रदान करें और दिवंगत आत्‍मा को शान्ति प्रदान करें।

09 November 2007

दीपोत्‍सव की हार्दिक शुभकामनायें

महाशक्ति समूह के सभी सदस्‍यों की ओर से सभी सम्‍माननीय पाठको एवं चिट्ठाकारों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें। मॉं लक्ष्‍मी की अनुकम्‍पा समस्‍त भक्‍तों पर रहें ऐसी कामना है, देश और देशवासी उन्‍नति के मार्ग पर चलते रहे।